कौआ और उल्लू
एक बार सभी पक्षियों ने जंगल में एकत्रित होकर अपना नया नेता चुनने का निर्णय किया। चतुर और जिम्मेदार होने के कारण सबने एक मत से उल्लू को अपना नेता बनाना निश्चित किया। सभी उत्साहित और प्रसन्न थे। सभी तैयारियाँ हो चुकी थीं। दो पक्षी हार भी ले आए थे। उल्लू का राजतिलक होने ही वाला था कि एक कौआ आ गया। उसने कहा कि इतने अच्छे-अच्छे पक्षियों के होते हुए दिन में अंधे पक्षी उल्लू को वे सब राजा क्यों बना रहे हैं। बात पक्षियों को समझ आ गई। उल्लू को कौए पर बहुत क्रोध आया। उसने कहा कि आज से वह उसका शत्रु होगा। सभा समाप्त हो गई। सभी पक्षियों के चले जाने के पश्चात् कौए ने सोचा, “मैंने बेकार में उल्लू को अपना वैरी बना लिया।” कौए को आश्चर्य हो रहा था कि आखिर उसने उल्लू से झगड़ा मोल ही क्यों लिया।
सीख: एक बार बोले गये शब्द वापस नहीं लिए जा सकते।
मछुआरा और नन्हीं मछली
एक बहुत ही गरीब मछुआरा था। वह प्रतिदिन मछली पकड़ता और उन्हें बेचकर परिवार को पालता था। एक बार सारे दिन प्रयत्न करने के बाद भी वह एक भी मछली नहीं पकड़ सका। वह बहुत दुःखी हो गया क्योंकि अपने परिवार को खिलाने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। उसने साहस जुटाकर अंतिम बार जाल डाला तो एक नन्हीं मछली फँसी । चलो कुछ तो मिली… यह सोचकर उसे खुशी-खुशी ज्योंही वह अपनी टोकरी में डालने लगा, मछली बोली, “ श्रीमान् ! मुझे अभी छोड़ दीजिए। मैं बहुत छोटी हूँ। पर मैं वादा करती हूँ कि बड़ी होकर मैं आपका भोजन स्वयं बनूंगी पर अभी मुझे जाने दें।” यह सुनकर मछुआरे को उस पर बहुत दया आई। वह पल भर के लिए सोच में पड़ गया फिर उसने कहा, “नहीं, यदि मैंने तुम्हें छोड़ दिया तो फिर तुम्हें पकड़ नहीं पाऊँगा। तुम मेरे हाथ नहीं आओगी। मैं बच्चों को क्या खिलाऊँगा….”
सीख: बड़े-बड़े वादों से तो छोटा लाभ कहीं अच्छा है।
शहरी चूहा और देहाती चूहा
एक बार एक शहरी चूहा अपने चचेरे भाई से मिलने देहात गया। देहाती चूहा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शहरी चूहे का स्वागत लड्डू और दूध से किया। वापस लौटते समय शहरी चूहे ने अपने चचेरे भाई से कहा, “चलो शहर चलते हैं। मैं तुम्हें सुस्वादु भोजन कराऊँगा।” देहाती चूहा ऐसा निमंत्रण पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और वह भी शहर आ गया। शहर में वे दोनों एक बड़े से भोजनकक्ष में गए जहाँ उन्होंने बड़े प्रेम से मछली और तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद लिया। अचानक भौंकने और गुर्राने की आवाज सुनकर देहाती चूहा बेहद डर गया। शहरी चूहे ने कहा- अरे यह तो कुत्ते की आवाज है। पर देहाती चूहा बेहद घबरा गया था। वह वहाँ एक पल भी रुकना नहीं चाहता था। उसने कहा, “अलविदा भाई, शांति से मिला हुआ अनाज और दूध, भय में रहकर केक खाने से अच्छा है… और वह चला गया।
सीख: भय से जीने से अच्छा शांतिपूर्वक जीना है। ‘संतोषम् परम् सुखम् !’
सरकंडा और ओक का पेड़
किसी समय की बात है, एक जंगल में एक विशाल ओक का वृक्ष था। अकडू ओर घमंडी ओक को अपनी शक्ति का बहुत घमंड था। पास ही एक नदी बहती थी। उसके किनारे पर कुछ सरकंडे उग आए थे। हवा चलती तो सरकंडे आराम से झूमा करते थे। एक दिन खूब हवा चली। ओक अपनी जगह अकड़ा हुआ खड़ा रहा, झुकना तो दूर हिला भी नहीं । सरकंडा झुक गया और हवा को जाने दिया। ओक ने उसकी हंसी उड़ाई और कहा, “तुम कितने कमजोर हो… जब भी हवा चलती है तो तुम्हें झुकना पड़ता है।” सरकंडे को बुरा लगा पर उसने हिम्मत नहीं हारी । बोला, “हाँ, मैं तुम्हारी तरह विशाल नहीं हूँ पर सुरक्षित हूँ।” फिर एक रात जोरों का तूफान आया तेज हवा चली और खूब बारिश हुई। ओक का पेड़ जड़ से उखड़ गया पर सरकंडे ने नीचे झुककर अपनी जान बचा ली।
सीख: स्वयं को स्थिति के अनुरूप ढालने में ही भलाई है।
भेड़िया और सारस
एक बार भोजन करते समय एक भेड़िए के गले में एक हड्डी अटक गई। उसे निकालने का भेड़िए ने हर संभव प्रयत्न किया पर असफल रहा। उसे किसी के सहायता की आवश्यकता थी क्योंकि वह दर्द से परेशान था। वह हड्डी किसी से निकलवाना चाहता था। दर्द से परेशान वह इधर-उधर भटक रहा था। घूमते-घूमते उसकी मुलाकात एक लोमड़ी से हुई । अपना दर्द उसने लोमड़ी को बताकर सहायता मांगी। पर वह हड्डी नहीं निकाल पाई। फिर भेड़िए की मुलाकात एक सारस से हुई। उसने सारस से सहायता मांगी और पुरस्कार देने का प्रलोभन भी दिया। अपनी लंबी चोंच से सारस ने गले में फंसी हुई हड्डी निकालकर अपना पुरस्कार मांगा। भेड़िए ने कहा, “तुमने अपना मुँह मेरे मुँह में डाला पर मैंने तुम्हें नहीं मारा। यही तुम्हारा सबसे बड़ा पुरस्कार है। खुशी मनाओं कि तुम जीवित हो।”
सीख: स्वार्थी न बनें।
सर्प का विवाह
एक नि:संतान दंपती को एक बार जंगल में एक सर्प मिला। वे उसे घर ले आए और अपने पुत्र की भांति उसका लालन-पालन करने लगे। कई वर्ष बीत गए । पुत्र विवाहयोग्य हो गया था। वह औरत अपने सर्पपुत्र का विवाह करना चाहती थी। एक दिन वह आदमी अपने मित्र के पास गया। बिना यह जाने कि उसका पुत्र एक सर्प है मित्र ने अपनी कन्या का विवाह उसके पुत्र से करने की सहमति दे दी। लोगों ने दुल्हन को विवाह न करने के लिए कहा पर वह नहीं मानी। एक रात उसने एक खूबसूरत पुरुष को देखा। उसने बताया कि वह ही उसका पति है। उस रात के बाद सर्प हर रात पुरुष बन जाता और प्रातः होते ही सर्प में बदल जाता। एक रात दंपति ने चुपचाप अपने पुत्र का सर्परूपी केंचुल उठाकर जला दिया। केंचुल जल जाने से वह वापस सर्प न बन सका। सभी प्रसन्न हो गए क्योंकि पुत्र को श्राप से मुक्ति मिल गई थी और उसे पुरुष रूप मिल गया था।
सीख: प्रेम में बहुत शक्ति होती है।