111 Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral

ढोंगी सन्यासी

एक समय की बात है… राजा का मंत्री किसी कार्यवश शहर से बाहर गया हुआ था। एक ढोंगी सन्यासी ने शहर में आकर लोगों के बीच अपनी धाक जमा ली। राजा ने प्रभावित होकर उसे अपना अतिथि बना लिया। एक दिन सन्यासी ने दावा किया कि वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्ग जा सकता है। मूर्ख राजा ने उस पर विश्वास कर लिया। वह पूरे समय सन्यासी की बातों में खोया रहता था। राज काज से भी राजा का ध्यान हटने लगा। मंत्री ने वापस आकर यह सारा माजरा देखा। उसने सन्यासी से दिव्य शक्तियों के प्रदर्शन के लिए कहा। सन्यासी एक चबूतरे पर बैठ गया। उसने कहा कि एक दिव्य शरीर धारण कर, पार्थिव शरीर छोड़ वह स्वर्ग जाएगा। मंत्री ने चारों ओर आग लगाकर उसके पार्थिव शरीर को जलाने की योजना बनाई जिससे सभी दिव्य शरीर को स्वर्ग जाता देख सकें। मंत्री की योजना काम कर गई। आग जलते ही ढोंगी सन्यासी जान बचाकर भाग गया।

सीख: ढोंगी का ढोंग सामने आ ही जाता है।

बढ़ई और शेर

एक बढ़ई जंगल में लकड़ी काट रहा था। तभी उसे एक शेर आता हुआ दिखा। भयभीत बढ़ई ने बुद्धिमत्ता से काम लिया और शेर को अपना भोजन खिलाया। शेर को भोजन बहुत अच्छा लगा। उसने बढ़ई को निडरतापूर्वक जंगल में घूमने के लिए कहा। बढ़ई ने उसका धन्यवाद किया और आभार स्वरूप प्रतिदिन अकेले ही भोजन के लिए शेर को आने को कहा। बढ़ई स्वादिष्ट भोजन लाया करता दोनों साथ-साथ भोजन करते थे। शेर के सहायक सियार और कौआ यह जानने को परेशान थे कि हुजूर आखिर कहाँ जाते थे। एक दिन दोनों साथ सियार और कौए ने भोजन पर साथ चलने की जिद की। बढ़ई ने शेर को आता देखा तो पास के वृक्ष पर चढ़ गया। शेर ने बढ़ई से उसके भय का कारण पूछा। बढ़ई ने कहा, “मुझे आपसे भय नहीं है पर आपके मित्रों पर विश्वास नहीं है।”

सीख: समझदार सोचकर ही मित्रता करते हैं।

कृतघ्न सोनार

एक बार एक आदमी जंगल से जा रहा था। उसने एक कुएँ में बाघ, बंदर, सर्प और सोनार को देखा। उसने जानवरों को कुएँ से बाहर निकाला। जानवरों ने उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया पर सोनार की सहायता करने से रोका। फिर भी उसने सोनार को बाहर निकाला। यात्रा के समय बंदर ने उस व्यक्ति को फल दिए । बाघ ने आभूषण दिए। उस व्यक्ति ने सोनार को बाघ के दिए आभूषण देकर पैसे मांगे किन्तु सोनार आभूषणों को राजा के पास लेकर चला गया। वे आभूषण रानी के निकले। उस व्यक्ति को चोर समझकर राजा ने कैद में डलवा दिया। कैद में सर्प ने उस व्यक्ति से जाकर कहा, “मैं रानी को काटूंगा और केवल तुम ही उसे ठीक कर पाओगे।” सर्प के कथनानुसार ही व्यक्ति ने किया। बीमार रानी ठीक हो गई। फिर उस व्यक्ति ने पूरी कथा राजा को सुनाई। राजा ने सोनार को कैद में डलवा दिया।

सीख: दयालुता और सत्यता की ही अंततः विजय होती है।

कृतघ्न चूहा

जंगल में एक ऋषि रहते थे। कठोर तप के बल से उन्हें कई सिद्धियाँ प्राप्त हो गई थीं। एक दिन ऋषि तपस्या कर रहे थे। तभी कहीं से एक चूहा उनके पास दौड़ता हुआ आया और सहायता मांगने लगा। उसने ऋषि से कहा कि कृपया उसे बिल्ली से बचा लें। ऋषि ने उसे बिल्ली बना दिया। कुछ दिनों के बाद चूहा फिर दौड़ता हुआ आया और कुत्तों से बचाने की गुहार करने लगा। ऋषि ने इस बार उसे कुत्ता बना दिया। कुछ दिनों बाद फिर आकर उसने कहा कि बाघ उसके पीछे पड़ा था। अपनी शक्ति से ऋषि ने उसे बाघ में परिवर्तित कर दिया। फिर एक दिन बाघ बने चूहे ने ऋषि के पास आकर कहा कि उसे बहुत भूख लगी थी और वह उन्हें खाना चाहता था। ऋषि ने उसे शिक्षा देना आवश्यक समझा बाघ ऋषि पर झपटने ही वाला था तभी ऋषि ने तुरंत उसे फिर से चूहा बना दिया।

सीख: अधिकार उसे ही देना चाहिए जो उसके लायक हो।

गुरु की सलाह

एक बार, एक गुरु ने अपने शिष्य को किसी के प्रति भी निर्दयी नहीं होने की सलाह दी। शिष्य ने गुरु की सलाह पर ध्यान नहीं दिया और एक शिकारी बन गया। वह निरपराध जानवरों को बिना किसी कारण के सताकर आनन्दित होता था। एक दिन वह एक जंगल से गुजर रहा था। उसने तीन बंदर बैठे देखे। उसने अपना धनुष उठाया, निशाना साधा और तीर छोड़ दिया। वे घायल हो गये। प्रसन्न मन से वह अपने घर की ओर चल दिया। अचानक जोरों की बारिश होने लगी। घर पहुँचकर उसने देखा कि बिजली गिरने से उसका घर क्षतिग्रस्त हो गया था। उसके बच्चे और पत्नी घायल हो गए थे। तभी एक खम्भा उसके सिर पर पीछे की ओर से गिरा और वह भी घायल हो गया। दर्द से वह कराह उठा। तकलीफ होने पर उसे अपने गुरु की बात याद आयी और वह पश्चात्ताप करने लगा।

सीख: निर्दयतापूर्ण व्यवहार विनाश लाता है।

बुनकर और राजकुमारी

एक बुनकर और एक बढ़ई अच्छे मित्र थे। बुनकर एक सुंदर राजकुमारी से प्रेम कर बैठा । मन ही मन विवाह की इच्छा से परेशान होकर एक दिन उसने अपने बढ़ई मित्र से कहा कि वह उस राजकुमारी से विवाह करना चाहता था। बढ़ई ने एक बड़ी सी लकड़ी की चिड़िया बनाई और अपने मित्र को उसे उड़ाने का तरीका सिखा दिया। उसने बुनकर से कहा कि वह राजकुमारी के कमरे के बाहर उड़कर जाए और राजकुमारी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखे। राजकुमारी ने उसे कोई देवता समझा और प्रभावित होकर विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी। कुछ वर्षों के बाद राज्य पर आक्रमण हुआ। राजा ने अपने बहादुर दामाद से युद्ध करने के लिए कहा। बुनकर ने ईश्वर से सहायता मांगी। ईश्वर ने उसकी पुकार सुनकर शत्रुओं से युद्ध कर राज्य को बचाने में बुनकर की सहायता की।

सीख: सच्चे दिल से चाहने वालों की ईश्वर सदा सहायता करते हैं।

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