बंदर और कील
बहुत समय पहले एक जंगल में एक बड़े से आम के वृक्ष पर बंदरों का एक झुंड रहता था। उन झुंड में से एक बंदर जिज्ञासु और बहुत शरारती था। उसे नई नई चीजों के साथ खेलने में बहुत मजा आता था। और वह उस झुण्ड में सबसे अलग तरीके की प्राणी था। एक बार पास के ही गांव में एक मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा था। दोपहर के समय सभी गांव वाले जो मंदिर निर्माण के कार्य में लगे हुए थे वह दोपहर का भोजन ग्रहण करने के घर गए हुए थे, तभी बंदर का झुण्ड वहाँ आ गए। और शरारती बंदर भी वहां आ पहुंचा और उसने आरी से आधे कटे हुए लट्ठे में कील फंसा हुआ देखा। क्यूंकि उसके लिए यह अजीब था तो उसने सोचा, “कील को निकालकर देखता हूँ क्या होता है…”
उस शरारती बंदर ने किसी तरह लट्ठे को हिला-हिलाकर कील को निकाल दिया। जबकि बाकि बंदर की झुंड को इससे कोई लेना-देना नहीं था। कील निकलने से लटठों के बीच की जगह बंद हो गई और उस शरारती बंदर का पैर वही बीच में ही फँस गया। और यह हुआ सिर्फ उसकी शरारतों की वजह से। वह लहूलुहान होकर दर्द से वह कराहने लगा। तभी अन्य साथी उसके पास आ पहुंचे और उन साथी बंदरों की सहायता से किसी तरह बड़ी कठिनाई से उसने अपना पैर बाहर निकाल तो लिया पर वह बुरी तरह घायल हो गया था।
सीख: दूसरों के काम में टांग नहीं अड़ानी चाहिए।
साधु का समाधान
एक गांव में एक साधु रहता था। बहुत सारे लोग उससे समय-समय पर आशीर्वाद और सलाह लिया करते थे। गाँव में भिक्षाटन में मिले हुए भोजन से ही वह अपना पेट भरता था। खाने के बाद बचा हुआ भोजन एक मटके में डालकर वह छत से लटके हुए सिकहर पर रख देता था। एक दिन उसने एक चूहे को मटके से खाना चुराते हुए देख लिया। वह उसे भगाने की बहुत चेष्टा करता पर आँख बचाकर वह चूहा ऊपर पहुँच ही जाता था। एक दिन एक सज्जन साधु से मिलने आया। उसने देखा कि साधु हाथ में एक छड़ी लिए बैठा थोड़ी-थोड़ी देर में उसे पटकता रहता था। एक चूहा बिल से निकलता और ठक-ठक की आवाज सुनकर भाग जाता था। वह सारा माजरा समझ गया। उसने साधु से चूहे के बिल को ढूँढकर उसे ही नष्ट कर देने के लिए कहा। क्योंकि मूल समस्या चूहा था उसका घर छोड़कर भगाना ही अच्छा था।
सीख: समस्या का निदान मूल कारण को नष्ट करने में ही है।
कौआ और हिरण की मित्रता
एक कौए और हिरण में गाढ़ी मित्रता थी। एक कुटिल सियार हिरण को खाना चाहता था। उसने हिरण की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया। हिरण उसकी बातों में आ गया और उसने उससे मित्रता कर ली। एक दिन एक शिकारी ने हिरण को पकड़ने के लिए जाल बिछाया। हिरण उसमें फँस गया। सियार उसकी सहायता करने की जगह शिकारी के जाने की छिपकर प्रतीक्षा करने लगा। कौए ने अपने हिरण मित्र को जाल में फँसा हुआ देखकर उसे एक युक्ति सुझाया। उस युक्ति के अनुसार हिरण साँस रोककर लेट गया। शिकारी ने उसे मरा हुआ समझकर जाल हटाया। जाल हटते ही हिरण उठा और भाग खड़ा हुआ। शिकारी ने एक छड़ी हिरण की ओर फेंकी किन्तु वह छिपे हुए सियार को जा लगी।
सीख: मित्र का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
दो सौदागर
दो सौदागर अपने सामान को बेचने जा रहे थे। उन्हें एक रेगिस्तान से होकर जाना था इसलिए उन्होंने ढेर सारा पानी अपने साथ रख रखा था। पहले सौदागर की मुलाकात एक राक्षस से हुई जिसने एक राजकुमार का रूप धारण किया हुआ था। उसने सौदागर से कहा कि आगे बहुत पानी उन्हें मिलेगा इसलिए पानी फेंक कर अपना बोझ कम कर लेना चाहिए। उसकी बातों में आकर सौदागर ने पानी फेंक तो दिया पर उसे कहीं पानी नहीं मिला। जब दूसरा सौदागर जा रहा था तब पुनः राजकुमार रूपी राक्षस ने प्रकट होकर वही बात कही। किन्तु सौदागर उसकी लाल आँखों को देखकर उसे पहचान गया। उसने कहा कि पानी मिलने के बाद ही वह पानी फेंकेगा। वस्तुतः प्यासे लोगों को राक्षस पकड़ लिया करता था पर उसकी दाल न गली। वह चुपचाप चला गया।
सीख: दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए, बहुत सोच समझ कर काम करना चाहिए।
श्रेष्ठ धनुर्धर
वर्षों पूर्व, एक राजा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार असदृश को ज्ञानार्जन के लिए भेजा। विभिन्न कलाओं में वह प्रवीण होकर वापस आ गया। राजा अपनी वृद्धावस्था के कारण असदृश को राजगद्दी पर बैठाना चाहता था। असदृश के प्रस्ताव ठुकरा देने के कारण राजा ने अपने छोटे पुत्र को राजगद्दी दे दी। राजा की मृत्यु के पश्चात् छोटा राजकुमार असदृश से घृणा करने लगा। असदृश राज्य छोड़कर एक सुदूर राज्य में चला गया। वहाँ धनुर्विद्या में निपुणता के कारण उसे प्रमुख सेनापति का पदभार सौंपा गया। कई वर्षों के बाद एक दिन उसे पता चला कि उसके भाई का राज्य दुश्मनों से घिर गया था। असदृश ने वहाँ जाकर अत्यंत वीरता से युद्ध किया और शत्रुओं को मार भगाया। छोटे भाई को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने अपने बड़े भाई असदृश से जाकर क्षमा याचना करी और शासन भार संभालने का अनुरोध किया पर उसने मना कर दिया।
सीख: योद्धा को सत्ता का लोभ नहीं होता।