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रामायण कथा – सम्पूर्ण अरण्यकाण्ड

खर-दूषण से युद्ध

शूर्पणखा का रक्त-रंजित मुखमण्डल देखकर वह क्रोध से काँपते हुये बोला, बहन! मूर्छा और घबराहट छोड़ मुझे बताओ कि किसने तुम्हें रूपहीन बनाया है? किसने आज इस निद्रानिमग्न नागराज को छेड़ने की मूर्खता की है? किसके सिर पर काल नाच रहा है? मुझे शीघ्र उसका नाम बताओ, उस अपराधी को मेरे क्रोध से देवता, गन्धर्व, पिशाच और राक्षस कोई भी नहीं बचा सकता। खर के मुख से निकले इन वचनों सुन कर शूर्पणखा का कुछ धैर्य बँधा। उसने रोते-रोते खर से कहा, राम और लक्ष्मण नामक दो राजकुमार, जो अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र हैं, इस वन में आये हुये हैं। उनके साथ राम की भार्या सीता भी है। वे दोनों ही बड़े सुन्दर, पराक्रमी और तपस्वी प्रतीत होते हैं। जब मैंने उनसे राम की पत्नी के विषय में पूछा तो वे चिढ़ गये और उनमें से एक ने मेरे नाक-कान काट लिये। भैया! तुम शीघ्र उन्हें परलोक भेज कर उनसे मेरे अपमान का प्रतिशोध लो। मेरे हृदय को शान्ति तभी मिलेगी जब मैं उन तीनों का गरम-गरम रुधिर पी लूँगी।

तत्काल ही खर ने अपनी सेना के चौदह यमराज के समान भयंकर योद्धा एवं पराक्रमी राक्षसों को आज्ञा दी कि शूर्पणखा के साथ जा कर उन तीनों का वध करो। मेरी बहन को वहीं उनके शरीर का गरम-गरम रक्त पिला कर इसके अपमान की ज्वाला को शान्त करो। खर की आज्ञा पाते ही वे राक्षस भयंकर अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर राम, लक्ष्मण तथा सीता का वध करने के लिये शूर्पणखा के साथ चल पड़े।
शूर्पणखा के साथ इस राक्षस दल को देखकर राम लक्ष्मण से बोले, लक्ष्मण! तुम सीता के पास खड़े होकर उसकी रक्षा करो। मैं अभी इन राक्षसों को मार कर यमलोक भेजता हूँ। इसके पश्चात् राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर बाण सँभालकर उन राक्षसों से बोले, दुष्टों! हम लोग तपस्वी धर्म का पालन कर रहे हैं और किसी निर्दोष पर कभी वार नहीं करते। तुम सब पापात्मा तथा ऋषियों का अपराध करने वाले हो। उन ऋषि-मुनियों की आज्ञा से ही मैं धनुष-बाण लेकर तुम लोगों का वध करने आया हूँ। तुम्हें यदि युद्ध से संतो प्राप्त होता हो तो यहाँ ही खड़े रहो अन्यथा लौट जाओ।

उन राक्षसों ने एक साथ राम पर अपने शस्त्रों से आक्रमण कर दिया। प्रत्युत्तर में राम ने एक साथ चौदह बाण छोड़े जिन्होंने उनकी छातियों में घुस कर उनके प्राणों का हरण कर लिया। वे भूमि पर गिर कर तड़पने लगे और मृत्यु को प्राप्त हुये। सभी राक्षसों के इस प्रकार मर जाने पर शूर्पणखा रोती-बिलखती खर के पास जाकर बोली, उन सब राक्षसों को अकेले राम ने ही वध कर डाला। वे सब मिल कर भी उसका कुछ न कर सके। मुझे तो प्रतीत होता है कि तुम महासमर में सबल होने के बाद भी राम के सामने युद्ध में नहीं ठहर सकोगे। यदि तुम स्वयं को शूरवीर समझते हो तो तुम अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर उससे युद्ध करो। यदि तुमने शत्रुघाती राम का वध नहीं किया तो मैं तुम्हारे समक्ष ही आत्महत्या करके अपना प्राण त्याग दूँगी। शूर्पणखा के द्वारा इस प्रकार तिरस्कृत होने पर खर ने क्रोधित होकर कहा, शूर्पणखे! तू व्यर्थ ही भयभीत हो कर आत्महत्या करने का प्रलाप कर रही है। मैं तत्काल जाकर उन दोनों भाइयों का वध कर डालूँगा। मेरे समक्ष उनका तेज वैसे ही है जैसे कि सूर्य के सामने जुगनू। तू अकारण चिंता करना त्याग दे।

शूर्पणखा को सान्त्वना देकर खर अपनी विशाल सेना, जिसमें चौदह सहस्त्र विकट योद्धा थे, को साथ लेकर राम से संग्राम करने के लिये तीव्र गति से चला। विशाल सेना के साथ खर को आते देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, महाबाहो! ऐसा प्रतीत होता है कि राक्षसराज अपने पूरे दल-बल के साथ चला आ रहा है। आज आर्य और अनार्य के मध्य संघर्ष होगा और निःसन्देह आर्य की विजय होगी। तुम सीता की रक्षा के लिये उसे साथ ले कर शीघ्र ही किसी गुफा में चले जाओ ताकि मैं निश्चिंत होकर युद्ध कर सकूँ।

लक्ष्मण ने तत्काल अपने अग्रज की आज्ञा पालन किया। वे सीता को ले कर पर्वत की एक अँधेरी कन्दरा में चले गये। अभेद्य कवच धारण कर के राम युद्ध के लिये तैयार हो गये। देवता, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि सभी राम के विजय के लिये परमात्मा से इस प्रकार प्रार्थना करने लगे कि हे त्रिलोकीनाथ! वीर पराक्रमी रामचन्द्र को इतनी शक्ति प्रदान करो कि उनके हाथों गौ, ब्राह्मणों तथा ऋषि-मुनियों को अनेक प्रकार से कष्ट देने वाले राक्षसों का नाश हो सके। राक्षसों की सेना ने राम को चारों ओर से घेर लिया तथा आक्रमण की तैयारी करने लगे।

राम ने भीषण विनाश करने वाली अग्नि बाण छोड़ दिया जिससे राक्षस हाहाकार करने लगे। राम तत्परता के साथ राक्षसों के द्वारा छोड़े गये बाणों को अपने बाणों से आकाश में ही काटने लगे। इस पर राक्षसों ने अत्यन्त क्रोधित होकर एक साथ बाणों की वर्षा करना आरम्भ कर दिया और राम चारों ओर से उनके बाणों से आच्छादित हो गये। राम ने अपने धनुष को मण्डलाकार करके अद्भुत हस्त-लाघव का प्रदर्शन करते हुये बाणों को छोड़ना आरम्भ कर दिया जिससे राक्षसों के बाण कट-कट कर भूमि पर गिरने लगे। यह ज्ञात ही नहीं हो पाता था कि कब उन्होंने तरकस से बाण निकाला, कब प्रत्यंचा चढ़ाई और कब बाण छूटा। राम के बाणों के लगने से राक्षसगण निष्प्राण होकर भूमि में लेटने लगे। अल्पकाल में ही राक्षसों की सेना उसी भाँति छिन्न-भिन्न हो गई जैसे आँधी आने पर बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। पूरा युद्धस्थल राक्षसों के कटे हुये अंगों से पट गया।

खर-दूषण वध

खर की सेना की दुर्दशा देख कर दूषण अपनी विशाल सेना को साथ ले कर राम के समक्ष आ डटा। कुछ ही काल में राम के बाणों से उसकी सेना की भी वैसी ही दशा हो गई जैसा कि खर की सेना की हुई थी। अपनी सेना की दुर्दशा देख कर क्रुद्ध दूषण ने मेघ के समान घोर गर्जना की और तीक्ष्ण बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उसके इस आक्रमण से कुपित होकर राम ने चमकते खुर से दूषण के धनुष को काट डाला तथा एक साथ चार बाण छोड़ कर उसके रथ के चारों घोड़ों को बींध दिया जिससे चारों घोड़े निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़े। पुनः राम ने एक अर्द्ध चन्द्राकार बाण छोड़कर दूषण के सारथी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। इस पर क्रोधित दूषण एक परिध उठा कर राम को मारने झपटा। राम ने भी पलक झपकते ही अपना खड्ग निकाल लिया और दूषण के दोनों हाथ काट डाले। पीड़ा से छटपटाता हुआ वह मूर्छित होकर धराशायी हो गया। दूषण की ऐसी दशा देख कर सैकड़ों राक्षसों ने एक साथ राम पर आक्रमण कर दिया। प्रत्युत्तर में रामचन्द्र ने स्वर्ण तथा वज्र से निर्मित तीक्ष्ण बाण छोड़ कर उन सभी राक्षसों का नाश कर दिया। इस प्रकार से दूषण सहित उसकी अपार सेना यमलोक पहुँच गई।

अब केवल दो लोग ही शेष रह गये थे – खर और उसका सेनापति त्रिशिरा। खर का मनोबल टूट चुका था। अतः उसे धैर्य बँधाते हुये त्रिशिरा ने कहा, हे राक्षसराज! धैर्य धारण कीजिये। मैं अभी राम का वध करके अपने सैनिकों के वध का प्रतिशोध लेता हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं उस तपस्वी को अवश्य मारूँगा अन्यथा मैं युद्धभूमि में अपने प्राण त्याग दूँगा। खर को सान्त्वना दे कर वह राम की ओर द्रुत गति से झपटा। उसे अपनी ओर आते देख राम ने तत्परतापूर्वक बाण चलना आरम्भ कर दिया। राम के बाणों से त्रिशिरा के सारथी, घोड़े तथा ध्वजा कट गये। रथ तथा सारथी विहीन सेनापति हाथ में गदा ले कर राम की ओर दौड़ा, किन्तु पराक्रमी राम ने उसे अपने निकट पहुँचने के पहले ही तीक्ष्ण बाण छोड़ा जो उसके कवच को चीर कर हृदय तक पहुँच गया। हृदय में बाण लगते ही त्रिशिरा हतप्राण होकर भूमि पर गिर गया। उस स्थान की सारी भूमि रक्त-रंजित हो गई।

सेनापति के वध हुआ देख कर क्रुद्ध खर राम पर अंधाधुंध बाणों की वर्षा करने लगा। उसके बाण वायुमण्डल में सभी दिशाओं में फैल गये। इस पर राम ने अग्निबाणों की बौछार करना आरम्भ कर दिया। और भी क्रुद्ध होकर खर ने एक बाण से रामचन्द्र के धनुष को काट दिया। खर के इस अद्भुत पराक्रम को देख कर यक्ष, गन्धर्व आदि भी आश्चर्यचकित रह गये, किन्तु अदम्य योद्धा राम तनिक भी विचलित नहीं हुये। उन्होंने अगस्त्य ऋषि के द्वारा दिया हुआ धनुष उठा कर क्षणमात्र में खर के घोड़ों को मार गिराया। रथहीन हो जाने पर अत्यन्त क्रोधित हो कर पराक्रमी खर हाथ में गदा ले राम को मारने के लिये दौड़ा। उसे अपनी ओर आता देख राघव बोले, हे राक्षसराज! यदि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी भी निर्दोषों तथा सज्जनों को दुःख देता है तो उसे अन्त में अपने पापों का फल भोगना ही पड़ता है। तुझे भी निर्दोष ऋषि-मुनियों को भयंकर यातनाएँ देने का परिणाम भुगतना पड़ेगा। मैं तुझ जैसे अधर्मी, दुष्ट- दानवों का विनाश करने के लिये ही वन में आया हूँ। अब तेरा भी अन्तिम समय आ पहुँचा है। अब किसी भाँति तू बच नहीं सकता।

राम के वचनों को सुन कर खर ने कहा, हे अयोध्या के राजकुमार! तुमने स्वयं के मुख से स्वयं की प्रशंसा करके अपनी तुच्छता का ही परिचय दिया है। तुममें इतना सामर्थ्य नहीं है कि तुम मेरा वध कर सको। मेरी यह गदा आज यह तुम्हें चिरनिद्रा में सुला देगी। इतना कह कर खर ने अपनी शक्तिशाली गदा को राम के हृदय का लक्ष्य करके फेंका। राम ने एक ही बाण से उस गदा को काट दिया और एक साथ अनेक बाण छोड़ कर खर के शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। क्षत-विक्षत होने परे भी खर क्रुद्ध सर्प की भाँति राम की ओर झपटा। उसे अपनी ओर लपकते देख कर राम ने अगस्त्य मुनि द्वारा दिये गये एक ही बाण से खर का हृदय चीर डाला। भयानक चीत्कार करता हुआ खर विशाल पर्वत की भाँति धराशायी हो गया और उसकी इहलीला समाप्त हो गई।

राम के विजय पर ऋषि-मुनि, तपस्वी आदि उनकी जय-जयकार करते हुये उन पर पुष्प वर्षा करने लगे। उन्होंने राम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुये कहा, हे राघव! आपके इस महान उपकार को दण्डक वन के निवासी तपस्वी कभी न भुला सकेंगे। इन राक्षसों ने अपने विप्लव से हमारा जीवन, हमारी तपस्या, हमारी शान्ति सब कुछ नष्टप्राय कर दिये थे। आज से हम लोग आपकी कृपा से निर्भय और निश्चिन्त हो गये हैं। परमपिता परमात्मा आपका कल्याण करें। आशीर्वाद देकर वे अपने-अपने निवास स्थानों को लौट गये। लक्ष्मण भी सीता को गिरिकन्दरा से ले कर लौट आये। अपने महापराक्रमी पति की शौर्य गाथा सुन कर सीता का हृदय गद्-गद् हो गया।

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