आत्म नियंत्रण कैसे करें | How to Master Self-Control

Self-Control(आत्म नियंत्रण) – Hello दोस्तों, अपने अंदर सेल्फ-कण्ट्रोल या डिसिप्लिन होने का मतलब है कि एक इंसान को ये फर्क नहीं पड़ता की उसके आसपास कितनी लालच है या फिर बाकी लोग क्या कर रहे हैं। वो सिर्फ वही करेगा जो उसे सही लगता है। ये एक ऐसी एबिलिटी है जिसकी मदद से आप जरुरी कामों को टालना बंद कर सकते हो और बुरी आदतों को फाइनली overcome करके अपने गोल्स को अचीव कर सकते हो।

आत्म नियंत्रण कैसे करें?

एक स्टडी में देखा गया था की जिन लोगों में सेल्फ कण्ट्रोल ज्यादा होता है वो –

  • अपने स्कूल और कॉलेज में अच्छा परफॉर्म करते हैं।
  • उनकी सेल्फ-स्टीम ज्यादा होती है।
  • उन्हें ईटिंग डिसऑर्डर्स कम होते हैं।
  • और उनकी रिलेशनशिप्स की क्वालिटी भी बेटर होती है।

लेकिन आमतौर पर सेल्फ-कण्ट्रोल के रास्ते में जो चीज आती है वो होती है किसी इंसान, चीज या काम के लिए हमारी डिजायर।

डिजायर हमें लालच देती है की हमें प्रेजेंट मोमेंट में मजेदार चीज करनी चाहिए। और अपने जरुरी कामों को इग्नोर कर देना चाहिए।

साइकोलॉजी में सेल्फ-कण्ट्रोल डिफाइन करा जाता है एक ऐसे मेंटल प्रोसेस की तरह, जो एक इंसान की बेहवियर्स को एडजस्ट करता है किसी स्पेसिफिक गोल को अचीव करने के लिए।

और रिसर्च बताती है की हमें सेल्फ-कण्ट्रोल को एक मसल् की तरह देखना चाहिए, जो यूज़ करने पर ही इम्प्रूव होती है।

क्यूंकि जब भी हम सिर्फ एक छोटे समय के लिए सेल्फ-कण्ट्रोल को यूज़ करते हैं तब एक पॉइंट के बाद हमारा कण्ट्रोल खत्म हो जाता है।

लेकिन जब हम सेल्फ-कण्ट्रोल को एक लम्बे समय के लिए प्रैक्टिस करते हैं, जैसे महीनों या सालों तक, तब हम अपना डिसिप्लिन ज्यादा आसानी से मेन्टेन कर पाते हैं।

हालाँकि सबसे जरुरी क्वेश्चन ये है कि –

हम सेल्फ-कण्ट्रोल प्रैक्टिस की शुरुवात कहाँ से करें?

सबसे पहले आपको ये समझना है कि आपकी चाहे जो भी डिस्ट्रक्शन हो, चाहे आप बस आलस करके अपने कामों को इग्नोर करते हो।

टेंशन दूर करने के लिए किसी बुरी आदत का सहारा लेते हो। या फिर आप मीठा खा कर बार बार अपनी डाइट ख़राब कर लेते हो।

तो वहां गलती कभी भी उस चीज की नहीं होती, जो आपको लुभाती है और आपको अपना डिसिप्लिन तोड़ने को बोलती है।

इसलिए ऐसी एडवाइस जो हमें बोलती है की हमें सेल्फ-कण्ट्रोल बढ़ाने के लिए अपने आगे से सारी लालच भगा लेनी चाहिए, वो एडवाइस एकदम गलत है।

एक अमेरिकन साइकोलोजिस्ट जोनाथन ब्रिकेर ने अपनी रिसर्च में देखा है कि सेल्फ-कण्ट्रोल बढ़ाने का सिर्फ एक ही तरीका है जो है Willingness.

यानी जब आप अपनी मर्जी से अपनी लालच को आते और जाते हुए देखते हो और कॉन्ससियसली अपना फोकस अपने उनकंससियस माइंड से निकले ऑटोमैटिक प्रोसेस पर ले आते हो, तब आपको पता चलता है की आपकी लालच और आपमें कितना ज्यादा गैप है।

आपकी सारी लालच असल में आपकी है ही नहीं।

जैसे अगर आप एक कॉन्ससियस डिसिशन लेते हो की आपको कुछ देर बैठ कर पढ़ना चाहिए, उस टाइम पर आपके दिमाग में चल रहे उनकंससियस प्रोसेसेज आपको डिस्ट्रैक्ट करने लगते हैं।

और आपको बोलते हैं कि आपको अब अपना स्मार्टफोन चेक करना चाहिए या फिर कुछ खाने के लिए ढूँढना चाहिए।

ऐसे समय पर ये मत सोचो की ये मोटिवेशंस आपकी अपनी है, क्यूंकि आपकी कण्ट्रोल से बाहर है।

साइको एनालिसिस में इन मोटिवेशंस को हमारी सब-पर्सनालिटीज माना जाता है।

इसका मतलब हमारी हर हैबिट, या रिएक्शन अपने आपमें एक पर्सनालिटी की तरह काम करते हैं।

एक्साम्प्ल के तौर पर आप अपनी भूख को ही देख लो की कैसे जब भी आपको कुछ जरुरी काम करते हुए एकदम से बहुत भूख लग जाती है, तब आपका पूरा बिहैवियर ही बदल जाता है।

और आप अपनी एनवायरनमेंट को एक अलग नजर से देखना स्टार्ट कर देते हो।

आप ढूंढने लगते हो की कौनसी खाने की चीज आपको सटिस्फाई करेगी। वो आपसे कितनी दूर पड़ी है, आपको क्या करना होगा, उसके पास पहुँचने के लिए।

आप सोचते हो कि आप बस जल्दी से कुछ खाओगे और वापस से अपने काम को कंटिन्यू करने लगोगे, लेकिन ऐसा कभी भी नहीं होता।

आप पहले कुछ खाना शुरू करते हो और देखते ही देखते आप अगले सेकंड टीवी पर कोई मूवी देखना स्टार्ट कर देते हो और अपने काम को भूल जाते हो।

इस तरह से आपकी एक के बाद एक सब-पर्सनालिटी या मोटिवेशंस बाहर आती है और आपको आपके गोल से भटकाती है।

ये मोटिवेशंस हमारी बायोलॉजी में इतना डीपली रोटेड होती है की हम इन्हें चाहा कर भी शांत नहीं कर सकते, क्यूंकि इनकी अपनी ही एक पर्सनालिटी होती है जो आपसे अपना काम कराती हैं और काम पूरा होने के बाद और आपके एक्शन्स और थिंकिंग का कण्ट्रोल आपको वापस दे जाती है।

और तभी डॉक्टर जोनाथन ब्रिकेर ने बताया हैं कि आप कभी भी अपनी इन मोटिवेशन से लड़कर अपना सेल्फ-कण्ट्रोल नहीं बढ़ा सकते।

क्यूंकि आप हर बार इस लड़ाई में हार जाते होगे। इसलिए अपने आपको डिसिप्लिन बनाने का सही तरीका है अपनी लालच, डिस्ट्रक्शंस या इमोशंस को एक अलग दृष्टिकोण के साथ ऑब्ज़र्व करना है।

ये आईडिया स्टोसिस्म और बुद्धिज़्म दोनों प्रिंसिपल में डिसकस करा गया है।

कि हमें अपनी नेचर के अगेंस्ट नहीं जाना चाहिए, बल्कि हमें अपनी नेचर के साथ एडजस्ट करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की हम अपने इमोशंस और गोल्स को अलाइन कर पाए।

जितना आपके इन कॉन्ससियस और उनकंससियस मेन्टल प्रोसेसेज में दुरी होगी, उतना ही आप अपना सेल्फ-कण्ट्रोल खोते जाओगे, और आपके सारे उनकंससियस इमोशंस, रिएक्शंस और लालच या डिजायर आपको कण्ट्रोल करने लगेंगी।

और देखते ही देखते आप या तो एडिक्ट बन जाओगे या फिर लाइफ में कभी भी कुछ यूनिक नहीं कर पाओगे।

इसका मतलब जब भी आपके मन में ये ख्याल आये की आपको कुछ उनप्रोडक्टिव काम करके अपना टाइम वेस्ट करना चाहिए, तब बस इस ख्याल को दूर से देखो, उसे जो बोलना है बोलने दो।

और देखो की क्या वो ख्याल अपने आप शांत होता है, ज्यादातर केसेस में आप यही ऑब्ज़र्व करोगे की ये ख्याल इतना कन्विंसिंग नहीं है, अगर हम इसे अपनी अटेन्शन नहीं देते तो ये ख्याल खुद व् खुद चला भी जाता है।

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