svg

श्रीमद् भागवत महापुराण (स्कन्ध 2) | Shrimad Bhagavatam Hindi

अध्याय 3: शुद्ध भक्ति-मय सेवा : हृदय-परिवर्तन

श्लोक 1: श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे महाराज परीक्षित, आपने मुझसे मरणासन्न बुद्धिमान मनुष्य के कर्तव्य के विषय में जिस प्रकार जिज्ञासा की, उसी प्रकार मैंने आपको उत्तर दिया है।

श्लोक 2-7: जो व्यक्ति निर्विशेष ब्रह्मज्योति तेज में लीन होने की कामना करता है, उसे वेदों के स्वामी (भगवान् ब्रह्मा या विद्वान पुरोहित बृहस्पति) की पूजा करनी चाहिए; जो प्रबल कामवासना का इच्छुक हो, उसे स्वर्ग के राजा इन्द्र की और जो अच्छी सन्तान का इच्छुक हो, उसे प्रजापतियों की पूजा करनी चाहिए। जो सौभाग्य का आकांक्षी हो, उसे भौतिक जगत की अधीक्षिका दुर्गादेवी की पूजा करनी चाहिए। जो अत्यन्त शक्तिशाली बनना चाहे, उसे अग्नि की और जो केवल धन की इच्छा करता हो, उसे वसुओं की पूजा करनी चाहिए। यदि कोई महान् वीर बनना चाहता है, तो उसे शिवजी के रुद्रावतारों की पूजा करनी चाहिए। जो प्रचुर अन्न की राशि चाहता हो, उसे अदिति की पूजा करनी चाहिए। जो स्वर्ग-लोक की कामना करे, उसे अदिति के पुत्रों की पूजा करनी चाहिए। जो व्यक्ति सांसारिक राज्य चाहता हो, उसे विश्वदेव की और जो जनता में लोकप्रियता का इच्छुक हो, उसे साध्यदेव की पूजा करनी चाहिए। जो दीर्घायु की कामना करता हो, उसे अश्विनीकुमारों की और जो पुष्ट शरीर चाहे, उसे पृथ्वी की पूजा करनी चाहिए। जो अपनी नौकरी (पद) के स्थायित्व की कामना करता हो, उसे क्षितिज तथा पृथ्वी दोनों की सम्मिलित पूजा करनी चाहिए। जो सुन्दर बनना चाहता हो, उसे गन्धर्व-लोक के निवासियों की और जो सुन्दर पत्नी चाहता हो, उसे अप्सराओं तथा स्वर्ग की उर्वशी अप्सराओं की पूजा करनी चाहिए। जो अन्यों पर शासन करना चाहता हो, उसे ब्रह्माण्ड के प्रमुख भगवान् ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए। जो स्थायी कीर्ति का इच्छुक हो, उसे भगवान् की तथा जो अच्छी बैंक-बचत चाहता हो, उसे वरुणदेव की पूजा करनी चाहिए। और यदि कोई अच्छा वैवाहिक सम्बन्ध चाहता है, तो उसे शिवजी की पत्नी, सती देवी उमा, की पूजा करनी चाहिए।

श्लोक 8: ज्ञान के आध्यात्मिक विकास के लिए मनुष्य को चाहिए कि भगवान् विष्णु या उनके भक्त की पूजा करे और वंश की रक्षा के लिए तथा कुल की उन्नति के लिए उसे विभिन्न देवताओं की पूजा करनी चाहिए।

श्लोक 9: जो व्यक्ति राज्य-सत्ता पाने का इच्छुक हो, उसे मनुओं की पूजा करनी चाहिए। जो व्यक्ति शत्रुओं पर विजय पाने का इच्छुक हो, उसे असुरों की और जो इन्द्रियतृप्ति चाहता हो, उसे चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो किसी प्रकार के भोग की इच्छा नहीं करता, उसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की पूजा करनी चाहिए।

श्लोक 10: जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है, वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो, उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परमपूर्ण भगवान् की पूजा करे।

श्लोक 11: अनेक देवताओं की पूजा करनेवाले विविध प्रकार के लोग, भगवान् के शुद्ध भक्त की संगति से ही सर्वोच्च सिद्धिदायक वर प्राप्त कर सकते हैं, जो भगवान् पर अविचल आकर्षण के रूप में होता है।

श्लोक 12: भगवान् हरि विषयक दिव्य ज्ञान वह ज्ञान है, जिससे भौतिक गुणों की तरंगें तथा भँवरें पूरी तरह थम जाती हैं। ऐसा ज्ञान भौतिक आसक्ति से रहित होने के कारण आत्मतुष्टि प्रदान करनेवाला है और दिव्य होने के कारण महापुरुषों द्वारा मान्य है। तो भला ऐसा कौन है, जो इससे आकृष्ट नहीं होगा?

श्लोक 13: शौनक ने कहा : व्यास-पुत्र श्रील शुकेदव गोस्वामी अत्यन्त विद्वान ऋषि थे और बातों को काव्यमय ढंग से प्रस्तुत करने में सक्षम थे। अतएव जो कुछ उन्होंने कहा, उसे सुनने के बाद महाराज परीक्षित ने उनसे और क्या पूछा?

श्लोक 14: हे विद्वान सूत गोस्वामी, आप हम सबों को ऐसी कथाएँ समझाते रहें, क्योंकि हम सुनने को उत्सुक हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसी कथाएँ, जिनसे भगवान् हरि के विषय में विचार-विमर्श हो सके, भक्तों की सभा में अवश्य ही कही-सुनी जाँय।

श्लोक 15: पाण्डवों के पौत्र महाराज परीक्षित अपने बाल्यकाल से भगवान् के महान् भक्त थे। वे खिलौनों से खेलते समय भी अपने कुलदेव की पूजा का अनुकरण करते हुए भगवान् कृष्ण की पूजा किया करते थे।

श्लोक 16: व्यासपुत्र शुकदेव गोस्वामी दिव्य ज्ञान से पूर्ण भी थे और वसुदेव-पुत्र भगवान् श्रीकृष्ण के महान् भक्त भी थे। अतएव भगवान् कृष्ण-विषयक चर्चाएँ अवश्य चलती रही होंगी, क्योंकि बड़े-बड़े दार्शनिकों द्वारा तथा महान् भक्तों की सभा में कृष्ण के गुणों का बखान होता ही रहता है।

श्लोक 17: उदय तथा अस्त होते हुए सूर्य सबों की आयु को क्षीण करता है, किन्तु जो सर्वोत्तम भगवान् की कथाओं की चर्चा चलाने में अपने समय का सदुपयोग करता हैं, उसकी आयु क्षीण नहीं होती।

श्लोक 18: क्या वृक्ष जीते नहीं हैं? क्या लुहार की धौंकनी साँस नहीं लेती? हमारे चारों ओर क्या पशुगण भोजन नहीं करते? या वीर्यपात नहीं करते?

श्लोक 19: कुत्तों, सूकरों, ऊँटों तथा गधों जैसे पुरुष, उन पुरुषों की प्रशंसा करते हैं, जो समस्त बुराइयों से उद्धार करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का कभी भी श्रवण नहीं करते।

श्लोक 20: जिसने भगवान् के शौर्य तथा अद्भुत कार्यों की कथाएँ नहीं सुनी हैं तथा जिसने भगवान् के विषय में गीतों को गाया या उच्चस्वर से उच्चारण नहीं किया है, उसके श्रवण-रंध्र मानो साँप के बिल हैं और जीभ मानो मेंढक की जीभ है।

श्लोक 21: शरीर का ऊपरी भाग, भले ही रेशमी पगड़ी से सज्जित क्यों न हो, किन्तु यदि मुक्ति के दाता भगवान् के समक्ष झुकाया नहीं जाता तो वह केवल एक भारी बोझ के समान है। इसी प्रकार चाहे हाथ चमचमाते कंकणों से अलंकृत हों, यदि भगवान् हरि की सेवा में नहीं लगे रहते, तो वे मृत पुरुष के हाथों के तुल्य हैं।

श्लोक 22: जो आँखें भगवान् विष्णु की प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियों (उनके रूप, नाम, गुण आदि) को नहीं देखतीं, वे मोर पंख में अंकित आँखों के तुल्य हैं और जो पाँव तीर्थ-स्थानों की यात्रा नहीं करते (जहाँ भगवान् का स्मरण किया जाता है) वे वृक्ष के तनों जैसे माने जाते हैं।

श्लोक 23: जिस व्यक्ति ने कभी भी भगवान् के शुद्धभक्त की चरण-धूलि अपने मस्तक पर धारण नहीं की, वह निश्चित रूप से शव है तथा जिस व्यक्ति ने भगवान् के चरणकमलों पर चढ़े तुलसीदलों की सुगन्धि का अनुभव नहीं किया, वह श्वास लेते हुए भी मृत शरीर के तुल्य है।

श्लोक 24: निश्चय ही वह हृदय फौलाद का बना है, जो एकाग्र होकर भगवान् के पवित्र नाम का उच्चारण करने पर भी नहीं बदलता; जब हर्ष होता है, तो आँखों में आँसू नहीं भर आते और शरीर के रोम-रोम खड़े नहीं हो जाते।

श्लोक 25: हे सूतगोस्वामी, आपके वचन हमारे मनों को भानेवाले हैं। अतएव कृपा करके आप हमें यह उसी तरह बतायें जिस तरह से दिव्य ज्ञान में अत्यन्त कुशल परम भक्त शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित के पूछे जाने पर उनसे कहा।

Leave a reply

Loading Next Post...
svgSearch
Popular Now svg
Scroll to Top
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...