श्रीमद् भागवत महापुराण (स्कन्ध 6) | Shrimad Bhagavatam Hindi

अध्याय 6: दक्ष की कन्याओं का वंश

संक्षेप विवरण: इस अध्याय में बताया गया है कि प्रजापति दक्ष की पत्नी असिक्नी के गर्भ से साठ पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं। जनसंख्या बढ़ाने के उद्देश्य से वे विभिन्न पुरुषों को दान…

श्लोक 1: श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा, हे राजन्! तदनन्तर ब्रह्माजी की प्रार्थना पर प्रजापति दक्ष ने, जिन्हें प्राचेतस कहा जाता है, अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं। सभी कन्याएँ अपने पिता को अत्यधिक स्नेह करती थीं।

श्लोक 2: उन्होंने धर्मराज (यमराज) को दस, कश्यप को तेरह, चन्द्रमा को सत्ताईस तथा अंगिरा, कृशाश्व एवं भूत को दो-दो कन्याएँ दान स्वरूप दे दीं। शेष चार कन्याएँ कश्यप को दे दी गईं (इस प्रकार कश्यप को कुल सत्रह कन्याएँ प्राप्त हुईं)।

श्लोक 3: अब मुझसे इन समस्त कन्याओं तथा उनके वंशजों के नाम सुनो, जिनसे ये तीनों लोक पूरित हैं।

श्लोक 4: यमराज को प्रदत्त दस कन्याओं के नाम थे भानु, लम्बा, ककुद, यामि, विश्वा, साध्या, मरुत्वती, वसु, मुहूर्ता तथा संकल्पा। अब उनके पुत्रों के नाम सुनो।

श्लोक 5: हे राजन्! भानु के गर्भ से देव-ऋषभ नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसके इन्द्रसेन नाम का एक पुत्र हुआ। लम्बा के गर्भ से विद्योत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने समस्त बादलों को जन्म दिया।

श्लोक 6: ककुद के गर्भ से संकट नाम का पुत्र हुआ जिसके पुत्र का नाम कीकट था। कीकट से दुर्गा नामक देवतागण हुए। यामी के पुत्र का नाम स्वर्ग था जिससे नन्दि नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।

श्लोक 7: विश्वा के पुत्र विश्वदेव हुए, जिनके कोई सन्तान नहीं थी। साध्या के गर्भ से साध्यगण हुए जिनके पुत्र का नाम अर्थसिद्धि था।

श्लोक 8: मरुत्वती के गर्भ से मरुत्वान तथा जयन्त नामक दो पुत्रों ने जन्म लिया। जयन्त भगवान् वासुदेव के अंश हैं और उपेन्द्र कहे जाते हैं।

श्लोक 9: मुहूर्ता के गर्भ से मौहूर्तिकगण नामक देवताओं ने जन्म ग्रहण किया। ये देवता अपने- अपने कालों में जीवात्माओं को उनके कर्मों का फल प्रदान करने वाले हैं।

श्लोक 10-11: संकल्पा का पुत्र संकल्प कहलाया जिससे काम की उत्पत्ति हुई। वसु के पुत्र अष्ट वसु कहलाये। उनके नाम सुनो—द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वास्तु तथा विभावसु। द्रोण नामक वसु की पत्नी अभिमति से हर्ष, शोक, भय इत्यादि पुत्रों का जन्म हुआ।

श्लोक 12: प्राण की पत्नी ऊर्जस्वती के गर्भ से सह, आयुस तथा पुरोजव नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव की पत्नी का नाम धरणी था जिसके गर्भ से विभिन्न नगरों की उत्पत्ति हुई।

श्लोक 13: अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से कई पुत्र उत्पन्न हुए जिनमें तर्ष प्रमुख था। अग्नि नामक वसु की पत्नी धारा से द्रविणक इत्यादि कई पुत्र उत्पन्न हुए।

श्लोक 14: अग्नि की दूसरी पत्नी कृत्तिका से स्कन्द (कार्तिकेय) नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जिसके पुत्रों में विशाख प्रमुख था। दोष नामक वसु की पत्नी शर्वरी से शिशुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो श्रीभगवान् का अंश था।

श्लोक 15: वास्तु नामक वसु की पत्नी आंगिरसी से महान् शिल्पी विश्वकर्मा का जन्म हुआ। विश्वकर्मा आकृती के पति बने जिनसे चाक्षुष मनु ने जन्म ग्रहण किया। मनु के पुत्र विश्वदेव तथा साध्यगण कहलाये।

श्लोक 16: विभावसु की पत्नी ऊषा के तीन पुत्र उत्पन्न हुए—व्युष्ट, रोचिष तथा आतप। इनमें से आतप के पञ्चयाम (दिन) उत्पन्न हुआ जो समस्त जीवात्माओं को भौतिक कार्यों के लिए प्रेरित करता है।

श्लोक 17-18: भूत की पत्नी सरूपा ने एक करोड़ रुद्रों को जन्म दिया, जिनमें से प्रमुख ग्यारह रुद्र ये हैं—रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपात्, अहिर्ब्रध्न, बहुरूप तथा महान्। भूत की दूसरी पत्नी भूता से उनके साथी भयंकर भूतों तथा विनायकादि का जन्म हुआ।

श्लोक 19: प्रजापति अंगिरा के दो पत्नियाँ थीं—स्वधा तथा सती। स्वधा ने समस्त पितरों को पुत्र रूप में स्वीकार किया और सती ने अथर्वांगिरस वेद को ही पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया।

श्लोक 20: कृश्वाश्व के अर्चिस् तथा धिषणा नामक दो पत्नियाँ थीं। अर्चिस् से धूमकेतु और धिषणा से वेदशिरा, देवल, वयुन तथा मनु नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए।

श्लोक 21-22: कश्यप अर्थात् तार्क्ष्य की चार पत्नियाँ थीं—विनता (सुपर्णा), कद्रू, पतंगी तथा यामिनी। पतंगी ने नाना प्रकार के पक्षियों को जन्म दिया और यामिनी ने टिड्डियों को। विनता (सुपर्णा) ने भगवान् विष्णु के वाहन गरुड़ तथा सूर्यदेव के सारथी अनूरु अथवा अरुण को जन्म दिया। कद्रू के गर्भ से अनेक प्रकार के नाग उत्पन्न हुए।

श्लोक 23: हे भारतश्रेष्ठ महाराज परीक्षित! कृत्तिका नामक राशियाँ चन्द्रदेव की पत्नियाँ थीं। चूँकि प्रजापति दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दिया था कि उसे क्षय रोग हो जाये, अत: किसी भी पत्नी से कोई सन्तान नहीं हुई।

श्लोक 24-26: तत्पश्चात् चन्द्रदेव ने प्रजापति को विनीत वचनों के द्वारा प्रसन्न करके रुग्णावस्था में क्षीण हुए प्रकाश को फिर से प्राप्त कर लिया, किन्तु तो भी उनके कोई सन्तान नहीं हुई। चन्द्रमा कृष्णपक्ष में अपना प्रकाश खो देता है, किन्तु शुक्ल पक्ष में उसे पुन: प्राप्त कर लेता है। हे राजा परीक्षित! अब मुझसे कश्यप की पत्नियों के नाम सुनो, जिनके गर्भ से इस समस्त ब्रह्माण्ड के प्राणी उत्पन्न हुए हैं। वे लगभग समस्त ब्रह्माण्ड के सचराचर की माताएँ हैं और उनके नामों को सुनना शुभ है। उनके नाम हैं—अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा तथा तिमि। तिमि के गर्भ से समस्त जलचर उत्पन्न हुए और सरमा से सिंह तथा बाघ जैसे क्रूर पशु उत्पन्न हुए।

श्लोक 27: हे राजा परीक्षित! सुरभि के गर्भ से भैंस, गाय तथा अन्य फटे खुरों वाले पशु उत्पन्न हुए, जब कि ताम्रा के गर्भ से बाज, गीध तथा अन्य बड़े शिकारी पक्षियों ने जन्म लिया। मुनि से अप्सराएँ उत्पन्न हुईं।

श्लोक 28: क्रोधवशा से दंदशूक नामक सर्प, रेंगने वाले अन्य प्राणी तथा मच्छर उत्पन्न हुए। इला के गर्भ से समस्त लताएँ तथा वृक्ष उत्पन्न हुए। सुरसा के गर्भ से राक्षसों ने जन्म लिया।

श्लोक 29-31: अरिष्टा के गर्भ गन्धर्व उत्पन्न हुए और काष्ठा से घोड़े इत्यादि एक खुर वाले पशु। हे राजन्! दनु के इकसठ पुत्र उत्पन्न हुए जिनमें से अठारह प्रमुख हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं— द्विमूर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शंकुशिरा, स्वर्भानु, कपिल, अरुण, पुलोमा, वृषपर्वा, एकचक्र, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, विप्रचित्ति तथा दुर्जय।

श्लोक 32: स्वर्भानु की कन्या सुप्रभा से नमुचि ने विवाह किया। वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा नहुष के पुत्र महाबली राजा ययाति को दी गई।

श्लोक 33-36: दनु के पुत्र वैश्वानर के चार सुन्दर कन्याएँ थीं जिनके नाम थे—उपदानवी, हयशिरा, पुलोमा तथा कालका। इनमें से उपदानवी के साथ हिरण्याक्ष का तथा हयशिरा के साथ क्रतु का विवाह हुआ। तत्पश्चात् श्रीब्रह्मा के अनुनय-विनय पर प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की अन्य दो कन्याओं, पुलोमा तथा कालका के साथ विवाह कर लिया। कश्यप की इन दोनों पत्नियों के गर्भ से साठ हजार पुत्र हुए जो पौलोम तथा कालकेय के नाम से विख्यात हुए, जिनमें से निवातकवच प्रमुख था। वे सब अत्यन्त वीर तथा युद्ध कुशल थे और उनका लक्ष्य मुनियों के द्वारा सम्पन्न यज्ञों में विध्न डालना था। हे राजन्! जब तुम्हारे पितामह अर्जुन स्वर्ग लोक गये तो उन्होंने अकेले ही इन असुरों का वध किया था जिससे राजा इन्द्र उनका परम प्रिय बन गया।

श्लोक 37: विप्रचित्ति को अपनी पत्नी सिंहिका से एक सौ एक पुत्र प्राप्त हुए जिनमें राहु सबसे ज्येष्ठ था और अन्य एक सौ केतु थे। इन सबों को प्रभावशाली ग्रहों (लोकों) में स्थान प्राप्त हुआ।

श्लोक 38-39: अब सुनो, मैं अदिति की वंश-परम्परा का तिथि-क्रमानुसार वर्णन कर रहा हूँ। इस वंश में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् नारायण ने स्वांश रूप में अवतार लिया। अदिति के पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं—विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, शत्रु तथा उरुक्रम।

श्लोक 40: सूर्यदेव विवस्वान् की भाग्यवती पत्नी संज्ञा से श्राद्धदेव मनु तथा यमराज और यमुना नदी (यमी) का जोड़ा उत्पन्न हुआ। तब यमी ने घोड़ी का रूप धारण करके इस पृथ्वी पर विचरण करते हुए अश्विनी कुमारों को जन्म दिया।

श्लोक 41: सूर्य की अन्य पत्नी छाया से शनैश्चर तथा सावर्णि मनु नामक दो पुत्र तथा तपती नामक एक पुत्री उत्पन्न हई जिसने संवरण के साथ विवाह कर लिया।

श्लोक 42: अर्यमा की पत्नी मातृका की कुक्षि से कई विद्वान पुत्र उत्पन्न हुए। श्रीब्रह्मा ने उन्हीं में से मनुष्य की जातियों की सृष्टि की जो आत्म-निरीक्षण की प्रवृत्ति से सम्पन्न हैं।

श्लोक 43: पूषा के कोई सन्तान नहीं हुई। जब भगवान् शिव दक्ष पर क्रुद्ध हुए तो पूषा दाँत निकाल कर हँसा था। अत: उसके दाँत जाते रहे और तब से वह पिसा हुआ अन्न खाकर जीवन-निर्वाह करता रहा।

श्लोक 44: दैत्यों की पुत्री रचना प्रजापति त्वष्टा की पत्नी बनी। उसके गर्भ से सन्निवेश तथा विश्वरूप नामक दो अत्यन्त पराक्रमी पुत्र हुए।

श्लोक 45: यद्यपि विश्वरूप देवताओं के कट्टर शत्रु असुरों की पुत्री का पुत्र था, किन्तु उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा से उसे अपना पुरोहित बनाना स्वीकार किया। देवताओं द्वारा अपमान किये जाने पर गुरु बृहस्पति ने इनका परित्याग कर दिया था, इसीलिए इन्हें पुरोहित की आवश्यकता पड़ी।

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