श्रीमद् भागवत महापुराण (स्कन्ध 8) | Shrimad Bhagavatam Hindi

अध्याय 13: भावी मनुओं का वर्णन

संक्षेप विवरण: चौदह मनुओं में से छह मनुओं का वर्णन पहले हो चुका है। अब इस अध्याय में सातवें से चौदहवें मनुओं का एक-एक करके वर्णन किया जायेगा। सातवाँ मनु विवस्वान का पुत्र है…

श्लोक 1: शुकदेव गोस्वामी ने कहा : वर्तमान मनु का नाम श्राद्धदेव है और वे सूर्यलोक के प्रधान देवता विवस्वान के पुत्र हैं। श्राद्धदेव सातवें मनु हैं। अब मैं उनके पुत्रों का वर्णन करता हूँ कृपा करके मुझसे सुने।

श्लोक 2-3: हे राजा परीक्षित! मनु के दस पुत्रों में (प्रथम छ:) इक्ष्वाकु, नभग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त तथा नाभाग हैं। सातवाँ पुत्र दिष्ट नाम से जाना जाता है। फिर तरूष तथा पृषध्र के नाम आते हैं और दसवाँ पुत्र वसुमान कहलाता है।

श्लोक 4: हे राजा! इस मन्वन्तर में आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेवा, मरुत्गण, दोनों भाई अश्विनीकुमार तथा ऋभु देवता हैं। इनका प्रधान राजा (इन्द्र) पुरन्दर है।

श्लोक 5: कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा भरद्वाज सप्तर्षि कहलाते हैं।

श्लोक 6: इस मन्वन्तर में भगवान् आदित्यों में सबसे छोटे, वामन के नाम से अवतरित हुए। उनके पिता कश्यप तथा माता अदिति थीं।

श्लोक 7: मैंने तुमसे संक्षेप में सात मनुओं की स्थिति बतला दी है। अब मैं भगवान् विष्णु के अवतारों सहित भावी मनुओं का वर्णन करूँगा।

श्लोक 8: हे राजा! मैं तुमसे पहले ही (छठे स्कंध में) विश्वकर्मा की दो पुत्रियों का वर्णन कर चुका हूँ जिनके नाम संज्ञा तथा छाया थे, जो विवस्वान की प्रथम दो पत्नियाँ थीं।

श्लोक 9: ऐसा कहा जाता है कि सूर्यदेव के एक तीसरी पत्नी भी थी जिसका नाम वडवा था। इन तीनों पत्नियों में से संज्ञा के तीन संतानें हुईं—यम, यमी तथा श्राद्धदेव। अब मैं छाया की सन्तानों का वर्णन करूँगा।

श्लोक 10: छाया के एक पुत्र सावर्णि तथा एक पुत्री तपती थी जो बाद में राजा संवरण की पत्नी बनी। छाया की तीसरी सन्तान शनैश्चर (शनि) कहलाई। वडवा ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम अश्विनी-बन्धु हैं।

श्लोक 11: हे राजा! आठवें मनु का काल आने पर सावर्णि मनु बनेगा। निर्मोक, विरजस्क इत्यादि उसके पुत्र होंगे।

श्लोक 12: आठवें मन्वन्तर में सुतपा, विरज तथा अमृतप्रभगण देवता होंगे और विरोचन पुत्र बलि महाराज देवताओं के राजा इन्द्र होंगे।

श्लोक 13: बलि महाराज ने भगवान् विष्णु को तीन पग भूमि दान में दी जिसके कारण उन्हें तीनों लोक खोने पड़े। किन्तु बाद में बलि द्वारा सर्वस्व दान दे दिये जाने पर जब भगवान् विष्णु प्रसन्न हुए तो बलि महाराज को जीवन की सिद्धि प्राप्त हो जाएगी।

श्लोक 14: भगवान् ने प्रेमपूर्वक बलि को बाँध लिया और फिर उन्हें सुतल राज्य में अधिष्ठित किया जो स्वर्गलोक की अपेक्षा अधिक ऐश्वर्यशाली है। इस समय बलि महाराज उसी लोक में रहते हैं और इन्द्र की अपेक्षा अधिक सुखी हैं।

श्लोक 15-16: हे राजा! आठवें मन्वन्तर में गालव, दीप्तिमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, ऋष्यशृंग तथा हमारे पिता व्यासदेव, जो नारायण के अवतार हैं, सप्तर्षि होंगे। इस समय वे सब अपने- अपने आश्रमों में निवास कर रहे हैं।

श्लोक 17: आठवें मन्वन्तर में अत्यन्त शक्तिशाली भगवान् सार्वभौम जन्म ग्रहण करेंगे। उनके पिता होंगे देवगुह्य और माता होंगी सरस्वती। वे पुरन्दर (इन्द्र) से राज्य छीन कर उसे बलि महाराज को देंगे।

श्लोक 18: हे राजा! नौवाँ मनु दक्षसावर्णि होगा जो वरुण का पुत्र होगा। भूतकेतु, दीप्तकेतु इत्यादि उसके पुत्र होंगे।

श्लोक 19: नवें मन्वन्तर में पार तथा मरीचिगर्भ इत्यादि देवता रहेंगे। स्वर्ग के राजा इन्द्र का नाम होगा अद्भुत और द्युतिमान सप्तर्षियों में से एक होगा।

श्लोक 20: भगवान् के अंशावतार ऋषभदेव अपने पिता आयुष्मान तथा माता अम्बुधारा से जन्म लेंगे। वे अद्भुत नामक इन्द्र को तीनों लोकों का ऐश्वर्य भोगने के योग्य बनायेंगे।

श्लोक 21: उपश्लोक का पुत्र ब्रह्मसावर्णि दसवाँ मनु होगा। भूरिषेण उसके पुत्रों में एक होगा और हविष्मान इत्यादि ब्राह्मण सप्तर्षि होंगे।

श्लोक 22: हविष्मान, सुकृत, सत्य, जय, मूर्ति इत्यादि सप्तर्षि होंगे; सुवासन-गण तथा विरुद्धगण देवता होंगे और शम्भु उन सबका राजा इन्द्र होगा।

श्लोक 23: विश्वसृष्टा के घर में विषूची के गर्भ से भगवान् के स्वांश विष्वक्सेन के रूप में भगवान् अवतरित होंगे। वे शम्भु से मैत्री स्थापित करेंगे।

श्लोक 24: ग्याहरवें मन्वन्तर में धर्मसावर्णि मनु होंगे जो अध्यात्म ज्ञान के अत्यन्त विद्वान होंगे। उनके दस पुत्र होंगे जिनमें सत्यधर्म प्रमुख होगा।

श्लोक 25: विहंगम, कामगम, निर्वाणरुचि इत्यादि देवता होंगे। वैधृत देवताओं का राजा इन्द्र होगा और अरुण इत्यादि सप्तर्षि होंगे।

श्लोक 26: आर्यक का पुत्र धर्मसेतु आर्यक की पत्नी वैधृता की कोख से भगवान् के अंशावतार के रूप में जन्म लेगा और तीनों लोकों में शासन करेगा।

श्लोक 27: हे राजा! बारहवाँ मनु रुद्रसावर्णि कहलायेगा। देववान, उपदेव तथा देवश्रेष्ठ उसके पुत्र होंगे।

श्लोक 28: इस मन्वन्तर में ऋतधामा इन्द्र होगा और हरित इत्यादि देवता होंगे। तपोमूर्ति, तपस्वी तथा आग्नीध्रक सप्तर्षि होंगे।

श्लोक 29: माता सुनृता तथा पिता सत्यसहा से भगवान् का अंशावतार स्वधामा उत्पन्न होगा। वह उस मन्वन्तर में शासन करेगा।

श्लोक 30: तेरहवें मनु का नाम देवसावर्णि होगा और वह आध्यात्मिक ज्ञान में काफी बढ़ा-चढ़ा होगा। चित्रसेन तथा विचित्र उसके पुत्रों में से होंगे।

श्लोक 31: तेरहवें मन्वन्तर में सुकर्मा तथा सुत्रामा इत्यादि देवता होंगे, दिवस्पति स्वर्ग का राजा इन्द्र होगा और निर्मोक तथा तत्त्वदर्श सप्तर्षि होंगे।

श्लोक 32: देवहोत्र का पुत्र योगेश्वर भगवान् के अंशावतार रूप में प्रकट होगा। उसकी माता का नाम बृहती होगा। वह दिवस्पति के कल्याणार्थ कार्य करेगा।

श्लोक 33: चौदहवें मनु का नाम इन्द्रसावर्णि होगा। उसके पुत्रों के नाम उरु, गम्भीर तथा बुध होंगे।

श्लोक 34: पवित्रगण तथा चाक्षुषगण इत्यादि देवता होंगे और शुचि इन्द्र होगा। अग्नि, बाहु, शुचि, शुद्ध, मागध तथा अन्य तपस्वी सप्तर्षि होंगे।

श्लोक 35: हे राजा परीक्षित! चौदहवें मन्वन्तर में भगवान् विताना के गर्भ से प्रकट होंगे और उनके पिता का नाम सत्रायण होगा। यह अवतार बृहद्भानु के नाम से विख्यात होगा और वह आध्यात्मिक कार्यकलाप करेगा।

श्लोक 36: हे राजा! मैंने अभी तुमसे भूत, वर्तमान तथा भविष्य में हुए अथवा होने वाले चौदहों मनुओं का वर्णन किया। ये मनु कुल मिलाकर जितने समय तक शासन करते हैं वह एक हजार युग चक्र है। यह कल्प या ब्रह्माजी का एक दिन कहलाता है।

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