Winston Churchill
20th सेंचुरी में दुनिया ने जब दो वर्ल्ड वार का विद्रोह झेला और दुनिया के सामने या तो ख़त्म हो जाने या फिर डिक्टेटरशिप का दौर आने की मुसीबत सामने आकर खड़ी हो गयी। ख़ासतौर पर सेकंड वर्ल्ड वॉर के टाइम Hitler और Musolini के ग़लत इरादे दुनिया पर कब्ज़ा करने की सोच रहे थे तभी जिन डिप्लोमैटिस्ट ने इन डिक्टेटर का जी-जान से सामना किया, उनमें से Winston Churchill का नाम सबसे ऊपर आता है, अगर Winston नहीं होते तो हम आज किसी न किसी डिक्टेटर के अंडर में एक गुलाम की तरह जी रहे होते या फिर कई देशों का पूरी तरह से अंत हो चुका होता।
Winston Churchill का जन्म 30 नवंबर 1874 को Blenheim Palace, Woodstock में एक सक्सेसफुल फ़ैमिली में हुआ। वो अपने सर्वेन्ट्स के बीच ही बड़े हुए और उनका ज़्यादातर बचपन बोर्डिंग स्कूल में बीता। Winston स्कूल में ज़्यादा इंटेलीजेंट स्टूडेंट नहीं थे और बहुत रिबेलियस स्टूडेंट थे लेकिन वो स्पोर्ट्स में काफ़ी अच्छे थे और स्कूल के दौरान उन्होंने कैडेट कॉर्प्स जॉइन (छात्र सेना दल) किया। स्कूल छोड़ने के बाद Winston ऑफिस की ट्रेनिंग के लिए Sandhurst गए, ऑफिस बनने के बाद Winston मिलिट्री ट्रेंगिन के लिए गए और उनकी माँ की हेल्प से वो नार्थ वेस्ट इंडिया में जॉब पर लग गए।
1899 में Winston ने अपनी मिलिट्री जॉब से रिज़ाइन कर दिया और एक युद्ध संवाददाता (War Correspondent) की जॉब जॉइन की और अफ्रीका चले गये। अपने काम की वजह से वो अफ्रीका में काफ़ी फ़ेमस हुए, जिसके लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस का सम्मान भी मिला। 1900 में Winston वापस UK आये और ओल्डम सिटी में मेंबर ऑफ पार्लियामेंट के कैंडिडेट के लिए चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत मिली। 1904 में Winston अपनी कंज़र्वेटिव पार्टी को छोड़कर लिबर्टी पार्टी में चले गए, जिसके लिए कई बार उनकी आलोचना भी हुई। लिबरल पार्टी में Winston ने पॉलिटिक्स फ़ील्ड में काफ़ी तरक्की की, जिसकी वजह से 1908 में उन्हें बोर्ड ऑफ़ ट्रेड का प्रेज़िडेंट चुना गया। बोर्ड ऑफ़ ट्रेड ब्रिटेन के ग़रीब लोगों के लिए बराबरी और उनके विकास के लिए फण्ड इन्वेस्ट करता था।
1911 में उनको फ़र्स्ट लार्ड ऑफ दी एडमिरेलटी बनाया गया जो फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान उनकी पोस्ट थी। युद्ध के दौरान जब यूरोप पर दबाव आने लगा तब Winston सबसे मैन मेंबर थे जो यूरोप को वॉर में इन्वॉल्व होने पर दबाव बना रहे थे। 1914 में कुछ युद्ध में यूरोप को इन्वॉल्व करने के लिए मना कर रहे थे, लेकिन Winston की युद्ध इन्वॉल्व होने की इच्छा में बहुत प्रबल थी। उस दौरान Winston ने युद्ध के लिए टैंक बनाने के लिए भी काफ़ी फण्ड रेज़ किया, उनको लगता था कि उनकी बनाई गई प्लानिंग युद्ध काफ़ी कामयाब साबित होगी, में लेकिन वो एक तरीके से अनसक्सेसफुल साबित हुई।
1915 में Winston ने अपने Dardanelles Campaign के तहत Turkey को वॉर से बाहर कर दिया लेकिन उससे भी उनको फ़ायदा नहीं हुआ और Winston ने अपनी लार्ड ऑफ़ दी एडमिरेलटी कि पोस्ट से रिज़ाइन दे दिया और वापस लंदन चले गए। 1917 में उन्हें युद्ध सामग्री (Munitions) का मिनिस्टर बनाया गया, पहला वर्ल्ड वॉर खत्म होने का बाद उन्होंने रसियन आर्मी को सपोर्ट किया, जो सोवियत यूनियन पर कब्ज़ा कर चुके लोगों का विरोध कर रहे थे, 1924 में Winston को PM Baldwin द्वारा Chancellor चुना गया। सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया तब ब्रिटेन में हड़कंप मच गई और उस टाइम ब्रिटेन के PM को दबाव में आकर Winston को वापस फ़र्स्ट लार्ड ऑफ दी एडमिरेलटी का पद देना पड़ा, जो फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर के टाइम उनके पास था। फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर के टाइम उन्हें किसी कार्यवाही की वजह से इसी पद से हटाया गया था।
Winston ने बहुत पहले ही कह दिया था कि Hitler से पूरी दुनिया को खतरा है और 1939 में पोलैंड पर हमला होने के बाद उनका ये दावा सच साबित हो गया और फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर में Winston की असफ़लताओं को भुला दिया गया युद्ध की कमान 64 साल के Winston को दे दी गयी। दुनिया भर में फैले ब्रिटिश लोगों में ‘विन्नी इज़ बैक’ की खबर फ़ैल गयी और पूरी ब्रिटिश पार्लियामेंट में ऐसा कोई नहीं था जो जर्मनी के बारे में इतनी जानकारी रखता था, जितनी Winston को थी और जो Hitler के ऊपर काबू पा सकते थे। अगर Winston नहीं होते तो इंग्लैंड जर्मनी से युद्ध में हार जाता और उस टाइम उन्हें वॉर टाइम PM का दर्जा दिया गया क्योंकि अगर वो Hitler को हराकर उस पर काबू नहीं पाते तो आज Hitler की तानाशाही ने पूरी दुनिया को परेशान करके रखा होता।
सेकंड वर्ल्ड वॉर जीतने के बाद Winston ने लेबर पार्टी की तरफ़ से PM के लिए इलेक्शन लड़ा जिसमें वो हार गए, इसके बाद वो फिर से ओपोज़िशन में चले गए और फ़ाइनली 1951 में वो PM का इलेक्शन जीत गए और इंग्लैंड के PM बन गए। Winston को 1954 में लिटरेचर में नोबेल प्राइज़ से सम्मानित किया गया। 24 जनवरी 1965 को 90 जाल की उम्र में Winston की उनके घर मे डेथ हो गयी, उनका अंतिम संस्कार उस टाइम का सबसे बड़ा अंतिम संस्कार था।
Martin Luther King Junior
Martin Luther King Junior को अमेरिका का महात्मा गाँधी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अमेरिका में रह रहे काले लोगों को अधिकार दिलवाने के लिए बहुत संघर्ष किया। उन्हें अमेरिकन सिविल राइट्स मूवमेंट्स का हीरो भी कहा जाता है। उनकी डेथ के टाइम उनकी उम्र सिर्फ़ 39 साल की थी और पोस्टमॉर्टेम में डॉक्टर्स ने बताया कि उनके दिल की हालत तनाव के कारण एक 65 साल के आदमी जैसी हो गयी थी।
Martin Luther King Junior का जन्म 15 जनवरी 1929 को एटलांटा में हुआ, उनके पिता का नाम Martin Luther King Senior था और उनकी माँ का नाम Alberta Williams Kings था। Martin उन्ही अफ्रीकन ग्रुप के वंशज थे जो अमेरिका में पीढ़ियों से मज़दूरी का काम करते आ रहे थे, जिन्हें गोरे अमेरिकन हमेशा मज़दूर बनाकर ही रखना चाहते थे। गोरे अमेरिकन्स चाहते थे कि काले लोगों को उनके बराबर न माना जाए, उन्हें उनके बराबर के अधिकार नहीं मिलने चाहिए, Luther King की लड़ाई भी उन्ही अधिकार को लेकर थी। Junior एक ब्राइट स्टूडेंट थे और वो बहुत अच्छे स्पीकर भी थे, वो अपनी बातों से लोगों को अट्रैक्ट करना जानते थे।
एक बार की बात है जब Junior स्कूल में थे और उस वक़्त उनके पिता चर्च में पादरी थे और उनकी माँ भी काम की वजह से बाहर ही रहती थी, ऐसे में उनको कहा गया कि वो घर रहकर उनकी दादी का खयाल रखें लेकिन ऐसा हुआ नहीं Junior अपनी दादी का खयाल रखने की बजाय अपने किसी काम में बिज़ी हो गए, वो अपने काम मे इतने घुस गए कि उन्हें ये पता ही नहीं रहा कि उन्हें उनकी दादी का खयाल भी रखना है। उसी समय उनकी दादी को हार्ट अटैक आया और उनकी डेथ हो गई और Junior को लगने लगा कि उनकी दादी की मौत के ज़िम्मेदार वो हैं और इसी बीच वो इतने डिप्रेशन में चले गए कि उन्होंने अपने घर के सेकंड फ्लोर से छलांग लगा दी, लेकिन उनकी जान बच गयी। वो बचपन से ही बहुत गंभीर प्रवर्ती के थे और उनमें हर चीज़ की ज़िम्मेदारी लेने की काबिलियत थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और अमेरिका के नीग्रो लोगों के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर एक आंदोलन चलाया जो सक्सेसफुल रहा।
1955 में उनकी शादी हुई और उसी साल उनकी लाइफ़ में एक बड़ा मोड़ आया। उस टाइम अमेरिका में ये कि जब कोई नीग्रो व्यक्ति बस में सफ़र कर रहा होता है और उसी समय कोई गोरा व्यक्ति उस बस में आ जाता है तो नीग्रो व्यक्ति को उठकर गोरे व्यक्ति को सीट देनी पड़ती थी, इसी रूल के कारण एक औरत ने उस कानून का विरोध किया और अपनी सीट से खड़ी नही हुई और इसी कारण से उसको अरेस्ट कर लिया गया। इस इंसिडेंट से Junior ने बस बॉयकॉट मूवमेंट चलाया, 381 दिन तक चले इस मूवमेंट ने बस में काले और गोरों के बीच में अलग-अलग सीट रखने के कानून को हटा दिया गया। इसी रूल को ख़त्म करने के लिए उन्होंने अमेरिका के दूसरे स्टेट्स में भी रीजनल मिनिस्टर से बात की और नॉर्थ अमेरिका के साइड में भी इस कानून को ख़त्म करवाया।
1957 में वो अपने पिता के साथ चर्च में काम करने एटलांटा गए और काले लोगों को वोटिंग का अधिकार, Racism और कई नागरिक अधिकार को दिलाने के लिए 1963 में Birmingham Campaign चलाया, जो 2 महीने तक चला। उसके अलावा उन्होंने 1968 में Saint Augustine, Florida, Selma, Alabama में नीग्रो को अधिकार दिलाने के लिए कई कैंपेन चलाये। इस दौरान हर एक मूवमेंट के लिए Martin Luther King को अरेस्ट किया गया था। 1963 में एक सबसे मार्च हुआ जिसे Martin Luther King ने चलाया था, ये मार्च स्कूल में होने वाले भेदभाव और रोजगार दिलाने के लिए चलाया गया था। उस टाइम नीग्रो को गोरे लोगों की तुलना में कम सैलरी दी जाती थी जिसके चलते उन्होंने बराबर सैलरी पाने की मांग रखी, Luther King के प्रयास सफ़ल हुए और उनकी मांग को सरकार ने एक्सेप्ट किया।
Lincoln Memorial पर उन्होंने एक जबरदस्त स्पीच दी, जिसका नाम “I Have A Dream” है जो एक हिस्टोरिकल स्पीच है। उन्होंने नॉर्थ के लोगों को अधिकार दिलाने के लिए शिकागो की यात्रा भी की और वहाँ भी लोगों के लिए कैंपेन चलाये लेकिन वहाँ की कंडीशन ज़्यादा खराब थी और Luther King को मिली धमकियों की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा। उन्होंने वियतनाम और अमेरिका के बीच हो रहे युद्ध के ऊपर भी बियॉन्ड वियतनाम नाम का स्पीच दिया क्योंकि Luther King नहीं चाहते थे कि उनके बीच युद्ध हो क्योंकि युद्ध में खर्च होने वाले पैसों को लोगों के हित मे यूज़ किया जा सकता था।
1959 में Martin भारत आये और उन्होंने न्यूज़पेपर में कई आर्टिकल्स लिखे, उन्होंने 1958 में “Stride Towards Freedom” और 1964 में “Why We Can Not Wait” नाम की बुक भी लिखी। 1964 में उन्हें दुनिया में शांति फैलाने के लिए नोबेल पीस प्राइज़ दिया गया और Luther King उस टाइम सबसे कम उम्र के इंसान थे जिन्होंने इस प्राइज़ को जीता था। 1963 में उनके अच्छे कामों को देखकर अमेरिका की टाइम मैगज़ीन ने उन्हें मैन ऑफ़ दी ईयर भी चुना। उन्हें लोगों को अधिकार दिलाने के लिए काफ़ी पसंद किया जाने लगा था लेकिन उसके विपरीत गोरे लोग उनसे नफरत करते जा रहे थे क्योंकि वो लोग नीग्रो और उनके बीच के अंतर को ख़त्म नहीं करना चाहते थे।
29 मार्च 1968 को Luther Racism की मांग के चलते Tennessee गए और 3 अप्रैल 1968 को उन्होंने वहाँ लोगों को स्पीच दी। उसी दौरान 4 अप्रैल 1968 की सुबह वो अपनी होटल की बालकनी में खड़े थे और तभी उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी और उनकी मौत के कारण सिविल राइट्स को एक अलग स्पीड मिल गयी, जिसके कारण उनके चलाये गए कैंपेन को दबाव में आकर सरकार को स्वीकार करना पड़ा।
Pele
Pele फुटबॉल के इतिहास के सबसे बेस्ट प्लेयर माने जाते हैं, जिन्हें किंग ऑफ़ फुटबॉल और बैक पर्ल नाम से जाना जाता है, उन्होंने अपने बेहतर गेमप्ले से कई रिकार्ड्स अपने नाम किये हैं और साथ ही ब्राज़ील को फुटबॉल में एक अलग मुकाम दिलाने में Pelé का बहुत बड़ा योगदान है, जिन्होंने सभी मुश्किलों का सामना करके दुनिया के सबसे बेस्ट फुटबॉलर होने की पहचान बनाई।
Pelé का रियल नाम Edson Arantes Do Nascimento है। उनका जन्म 23 अक्टूबर 1940 को Minas Gerais, Brazil में हुआ। उनके पिता का नाम Dondinho था और वो भी एक फुटबॉल प्लेयर थे लेकिन वो अपने करियर में इतने सक्सेसफुल नहीं हो सके। Pelé जब 10 साल के थे तब से उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था, उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने बचपन में जूते पोलिश करने का काम भी किया और वो सॉक्स को न्यूज़पेपर से भरकर उसकी फुटबॉल बनाकर खेलते थे।
शुरुआत में उन्होंने फुटबॉल अपने पिता से सीखी, वो पहले Indoor League के लिए खेलते थे। अपनी स्किल की वजह से Pelé को Bauru एथलेटिक क्लब में पहली बार खेलने का चांस मिला, जहाँ उन्हें Waldemar De Brito ने ट्रेनिंग दी।उस जगह उन्होंने 1953 से 1956 तक खेला और टीम को लगातार तीन जीत दिलाई, इसके अलावा उन्होंने कई फुटबॉल चैंपियनशिप जीती। Pelé के करियर की बड़ी शुरुआत तब हुई जब उनके कोच Waldemar De Brito को उनके हुनर का अहसास हुआ और उन्होंने Pelé को Santos Football Club में शामिल कर लिया।
Pelé ने 1956 में कॉन्ट्रैक्ट साइन किया और 7 सिंतबर 1956 को 15 साल की उम्र में उन्होंने सीनियर टीम में डेब्यू किया। Corinthians Santo Andre के खिलाफ अपनी परफॉर्मेन्स से उन्होंने 7-1 से अपनी टीम को जीत दिलाई।इसके बाद उन्हें ब्राज़ील की इंटरनेशनल टीम में ले लिया और 1957 में 16 की उम्र में उन्होंने अपना पहला इंटरनेशनल मैच अर्जेंटीना के खिलाफ खेला। इस मैच में ब्राज़ील हार गई लेकिन Pelé ने अपना पहला इंटरनेशनल गोल कर दिया।
1958 के वर्ल्ड कप में उन्होंने 4 मैचेस में 6 गोल किये और 4 वर्ल्ड कप में कई पुराने रिकॉर्ड तोड़े और 1962 में उन्होंने अपनी टीम को इंटरकॉन्टिनेंटल कप को जीतने में अपनी टीम की काफ़ी हेल्प की। 1962 के वर्ल्ड कप में Pelé को इंजरी के कारण टीम से बाहर होना पड़ा, जिसके कारण वो फ़ाइनल मैच नहीं खेल पाए और ब्राज़ील की टीम दो मैच खेलकर बाहर हो गयी जिसमें Pelé ने 1 गोल किया था। 1966 के वर्ल्ड कप में उन्हें फिर से चोट लगने के कारण टीम से बाहर कर दिया गया। 1969 Maracana Stadium में पेनल्टी किक से वास्को डी गामा टीम के खिलाफ Pelé ने अपना 1000वा गोल किया।
1970 के वर्ल्डकप में Pelé ने और ब्राज़ील ने शानदार वापसी की, जिसमें Pelé ने पूरे टूर्नामेंट में 5 गोल किये और फ़ाइनल में ब्राज़ील में इटली को हराया, फ़ाइनल में भी Pelé ने एक गोल किया, Pelé को अपनी परफॉर्मेन्स के लिए प्लेयर ऑफ़ दी टूर्नामेंट का खिताब दिया गया। Pelé ने अपना आखिरी इंटरनेशनल मैच 18 जुलाई 1971 को Rio De Janerio में Yugoslavia के खिलाफ खेला। इंटरनेशनल फ़ील्ड में जब Pelé ब्राज़ील की टीम के साथ खेले तब ब्राज़ील की टीम ने 67 मैच जीते, 14 मैच ड्रा हुए और 11 मैच में ब्राज़ील की हार हुई। ऑफिशियली उन्होंने अपना आखिरी मैच 1 अक्टूबर 1977 को खेला, ये मैच Cosmos और Santos के बीच शो मैच था, उन्होंने आधा मैच Cosmos के लिए खेला और आधा मैच Santos के लिए खेला और Cosmos ने ये मैच 2-1 से जीता था। उसी साल एक खबर आई थी कि Pelé की राइट किडनी को हटा दिया गया है। उनका फुटबॉल करियर काफ़ी सक्सेसफुल रहा है, 1992 में उनको इकोलॉजी और एनवायरनमेंट के लिए UN एम्बेसडर के लिए चुना गया।
Pelé ने अपनी लाइफ़ में तीन शादियाँ की, उनकी पहली शादी Rosmeri Dos Reis Cholbike के साथ 1966 मे हुई जिनसे उन्हें 2 बेटियाँ भी है, 1982 में उनका तलाक़ हो गया। 1994 में उन्होंने Assiria Lemos Seixas से शादी की जिनसे उन्हें जुड़वा बच्चें हुए और उसके बाद वो अलग-अलग हो गए। 2016 में Pelé ने 76 की उम्र में Marcia Aoki से शादी की। 1999 में Pelé को इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ दी फुटबॉल हिस्ट्री एंड स्टेटिस्टिक्स ने फुटबॉल प्लेयर ऑफ़ दी सेंचुरी के रूप में चुना। 2010 में इन्हें कॉसमॉस के प्रेज़िडेंट में रूप में चुना गया, फुटबॉल के भगवान कहे जाने वाले Pelé की अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए 19 नवंबर 1969 को Santos में Pelé Day के रूप में मनाया जाता है।
“सक्सेस एक दिन में नहीं मिलता, लेकिन कड़ी मेहनत के बाद एक दिन सक्सेस जरूर मिलता है।”
Isaac Newton
Isaac Newton को कौन नहीं जानता, Isaac Newton एक महान फिज़िसिस्ट, मैथेमेटिशियन, एस्ट्रोनॉमर और ऑथर थे, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण की थ्योरी को दुनिया के सामने लाया। उन्हें इतिहास के सबसे प्रभावशाली साइंटिस्ट में से एक माना जाता है। 1685 में लिखी प्रिंसिपल मैथेमेटिशियन से उन्होंने साइंस में जो योगदान दिया है वो उन्हें सबसे महान बनाता है।
सर Isaac Newton का जन्म 4 जनवरी 1643 को Lincolnshire, इंग्लैंड में हुआ। कई लोगों का मानना है कि उनका जन्म क्रिसमस के दिन 25 दिसंबर 1642 को हुआ था। उनके पिता की डेथ उनके जन्म लेने के दो महीने पहले हो चुकी थी। जब Newton तीन साल के थे तब उनकी माँ उन्हें उनकी दादी के पास छोड़ कर चली गई और दूसरी शादी कर ली। जब Newton के सौतेले पिता की डेथ हुई तब उनकी माँ उनके पास वापस आयी और उन्हें फार्मिंग करने के लिए कहा गया लेकिन Newton का मन तो शुरू से पढ़ाई और नई चीज़ों को सीखने में था।
उन्होंने अपनी गाँव की प्राइमरी स्कूल में एडमिशन लिया और बाद में 12 साल से 17 की उम्र तक उन्होंने The King’s School Grantham में पढ़ाई की। Newton की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी देख उनके अंकल जो ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज से पढ़े थे, उन्होंने Newton की माँ से Newton को ट्रिनिटी कॉलेज भेजने को कहा और Newton ने ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज में एडमिशन लिया। उस टाइम Newton वहाँ कॉलेज की फ़ीस के लिए पियोन का काम भी करते थे। उस टाइम कॉलेज की पढ़ाई Arastu की थ्योरी पर आधारित थी लेकिन Newton मॉडर्न फिलॉसॉफ़र्स को पढ़ना चाहते थे। पढ़ाई में अच्छे होने के कारण उनके कॉलेज से उनको स्कॉलरशिप मिली जिससे उनके पढ़ाई के खर्च निकल सके।
पढ़ाई के दौरान ही Newton ने 1665 में Binomial Theorem की खोज की और एक मैथेमैटिकल कांसेप्ट पर काम करना शुरू किया जो बाद में जाकर Calculous बना। Newton ट्रिनिटी कॉलेज में 1668 तक रहे उस दौरान उन्होंने BA और MA की डिग्री कम्पलीट कर दी थी। उसी बीच 1665 में प्लेग नाम की बीमारी फैली थी और उस कारण उनका कॉलेज अस्थायी रूप से बंद हो गया था, सभी स्टूडेंट्स आस-पास के गाँवो में चले गये और Newton भी अपने फ़ार्म पर अपनी माँ के पास चले गए।
उसी पीरियड में एक दिन Newton एक सेव के पेड़ के नीचे बैठे थे और ऊपर से एक सेव आकर गिरा और तब ग्रेविटेशनल फ़ोर्स नाम की थ्योरी पहली बार Newton के माइंड में आई। Newton ने ये भी बताया कि ग्रेविटेशनल फ़ोर्स दूरी बढ़ने के साथ-साथ कम हो जाता है, इसलिए पृथ्वी हर चीज़ को अपनी तरफ खिंचती है और पृथ्वी कितनी ताक़त से उनको खिंचती है ये उसके मास और वैल्यू पर डिपेंड करता है। Newton ने अपनी पूरी लाइफ़ ग्रेविटी मैकेनिक्स की खोज में दे दी, उन्होंने Principia Mathematica नाम की एक बुक लिखी, Newton ने इसमें मोशन के तीन लॉ को समझाया। जिसमें उन्होंने प्लेनेटरी मूवमेंट्स को भी एक्सप्लेन किया। साइकिल से लेकर एरोप्लेन, जिन रूल्स को ध्यान में रखकर बने वो रूल असल में Newton ने ही खोजे हैं।
उन्होंने 1670 से 1672 तक ऑप्टिक्स थ्योरी पर काम किया, उन्होंने बताया कि जो सनलाइट हम देखते हैं असल में वो वाइट नहीं बल्कि अलग-अलग कलर से मिलकर बनती है। उन्होंने दो लेन्सेस का यूज़ करके टेलीस्कोप इंवेंट किया जिसे Newton Telescope कहा जाता है और उन्होंने Reflecting Telescope भी बनाया। 1675 में उन्होंने Molecules के बीच में होने वाले Repulsion और Attraction को समझाया, उन्होंने बताया कि Molecules के बीच के फ़ोर्स को Transmitted करने से हम ईश्वर तक पहुँच सकते हैं, वो बहुत धार्मिक किस्म के इंसान थे इसलिए उन्होंने हमेशा अपनी खोज में ईश्वर को मैन सोर्स माना, बाद में इसी थॉट को उन्होंने एक्शन और रिएक्शन के रूप में डिफ़ाइन किया।
इसी दौरान Newton एक विवाद में भी फँसे थे जब Newton कैलकुलस थ्योरी पर काम कर रहे थे, जो Newton 3 Gottfried Wilhelm Leibniz बी हुआ था। Newton के अनुसार उन्होंने 1666 में कैलकुलस थ्योरी पर काम करना शुरू किया था लेकिन Gottfried Wilhelm Leibniz ने 1674 में इस थ्योरी पर काम करना शुरू किया था, फिर भी Gottfried को लग रहा था कि उन्होंने पहले इस थ्योरी को दिया है। हालाँकि Newton ने बाद में 1687 में अपनी बुक Principia में कैलकुलस के बारे में सब बता दिया था। ऐसा माना जाता है कि Newton ने कभी शादी नहीं की, उन्होंने अपनी पूरी लाइफ़ रिसर्च और इन्वेंशन में दे दी। Newton ने बाइबिल पर अपनी रिलीजियस रिसर्च भी लिखी। Newton 1701 में यूनाइटेड किंगडम पार्लियामेंट के मेंबर भी रहे और 1705 में उन्हें नाइट बैचलर की उपाधि भी मिली।
20 मार्च 1727 को 84 साल की उम्र में नींद में Newton की डेथ हो गयी, जिन्हें Westminster Abbey में दफ़नाया गया, आज हम जिन सुविधाओं को भोग रहे हैं, उनके पीछे इसी महान आविष्कारी की सालों की तपस्या छुपी है, जिनके लिए हमें हर वक़्त ग्रेटफुल रहना चाहिए।
Napoleon Hill
Napoleon Hill अमेरिका के एक फ़ेमस राइटर थे जिन्होंने, पर्सनालिटी डेवलपमेंट के ऊपर कई बुक्स लिखी। Napoleon Hill को उनकी बुक “Think And Grow Rich” के लिए बहुत जाना जाता है। उनकी इस बुक ने करोडों लोगों की लाइफ़ को प्रभावित किया है, जो अब तक दुनिया की टॉप सैलिंग बुक्स में से एक है।
Napoleon Hill का जन्म 26 अक्टूबर 1883 को एक कैबिन (एक लकड़ी का बना छोटा सा घर) में हुआ। उनके पिता का नाम James Monroe Hill और माँ का नाम Sarah Sylvania था। जब Napoleon 9 साल के थे तब उनकी माँ की डेथ हो गयी थी। फिर उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और उनकी सौतेली माँ का बिहेवियर Napoleon को लेकर सही नहीं होने की वजह से 13 साल को उम्र से उन्होंने माउंटेन रिपोर्टर नाम के न्यूज़पेपर के लिए आर्टिकल लिखना शुरू कर दिया। रिपोर्टर की जॉब से उन्होंने जो भी अर्न किया वो उन्होंने अपनी लॉ की पढ़ाई में स्पेंड करना शुरू किया और कुछ ही सालों में उन्होंने एक राइटर और लॉयर के रूप में बड़ी सफ़लता हासिल की।
1907 में Alabama में उन्होंने Acree Hill नाम की कंपनी बनाई और अक्टूबर 1908 में कंपनी पर मेल फ्रॉड का आरोप लगा और कंपनी दिवलिया हो गयी। 1908 में Napoleon को उस टाइम के दुनिया के सबसे अमीर इंसान Andrew Carnegie का इंटरव्यू करने का मौका मिला। वो इंटरव्यू असल में तीन घंटे का होना था लेकिन वो पूरे तीन दिन तक चला, Carnegie से सक्सेसफुली इंटरव्यू लेने के बाद, Hill को Andrew Carnegie ने 500 और अमीर और हाइली सक्सेसफुल लोगों का इंटरव्यू करने को कहा और उनके सक्सेस के पीछे के सीक्रेट्स पता करने को कहा कि हाइली सक्सेसफुल लोग ऐसा क्या करते हैं कि वो हमेशा नॉर्मल लोगों से बेहतर लाइफ़ जीने में इतने कामयाब हो पाते हैं। तभी से Hill की सक्सेस जर्नी की स्टार्टिंग हुई और उन्होंने एक-एक करके सभी सक्सेसफुल लोगों का इंटरव्यू लेना स्टार्ट किया जिसमें Thomas Edison, Henry Ford, John D. Rockefeller जैसे लोग शामिल हैं। उन सभी के इंटरव्यू के दौरान उन्होंने काफ़ी मुश्किलों का सामना भी किया।
1909 में उन्होंने वाशिंगटन डी सी में ऑटोमोबाइल कॉलेज ऑफ़ वाशिंगटन खोली जिसमें वो स्टूडेंट्स को कार बेचना और बनाना सिखाते थे। जो कार्टर मोटर कॉरपोरेशन के लिए कार असेम्बल करते थे, 1912 में कार्टर मोटर कॉरपोरेशन दिवालिया हो गयी और उसकी वजह Hill की कंपनी ऑटोमोबाइल कॉलेज ऑफ़ वाशिंगटन को बताया और 1913 में उनकी कॉलेज भी बंद हो गयी। पर्सनल लाइफ़ की बात करे तो ऑटोमोबाइल कॉलेज के दौरान उन्होंने Florence Elizabeth Horner से शादी की जिनसे उन्हें तीन बच्चें हुए अपनी कॉलेज बंद होने के बाद Hill शिकागो चले गए।
शिकागो जाने के बाद Hill ने Lasalle Extension University में जॉब पर लग गए और बाद में उन्होंने Betsy Ross Candy Shop नाम की कैंडी की दुकान खोली। 1915 में Hill George Washington Institute Of Advertising में डीन के पद पर रहे, जहाँ वो स्टूडेंट्स को प्रिंसिपल्स ऑफ़ सक्सेस और सेल्फ़ कॉन्फिडेंस पर लेक्चर देते थे। जून 1918 में Hill पर एक और आरोप लगा कि उन्होंने कॉलेज के शेयर को बेचने की कोशिश की और उनके नाम का अरेस्ट वारंट आया और कुछ टाइम बाद एडवरटाइजिंग स्कूल भी बंद हो गयी।
George Washington Institute बन्द होने के बाद Hill कई बिज़नेस स्टार्ट कर चुके थे लेकिन उन्हें कहीं भी सक्सेस नहीं मिली और उसके साथ-साथ उन्होंने “Hill’s Golden Rule” और Napoleon Hill’s की मैगज़ीन भी पब्लिश की लेकिन उनके हाथ बड़ी सक्सेस नहीं लगी। Napoleon ने Andrew Carnegie के उस प्रोपोज़ल को इसलिए एक्सेप्ट किया क्योंकि उस टाइम Hill के पास खोने के लिए कुछ नहीं था और उनकी फ़ाइनेंसियल कंडीशन भी ठीक नहीं थी, Hill ने आने वाले 20 सालों तक लोगों का इंटरव्यू और रिसर्च की और 20 साल की मेहनत के बाद Hill ने अपने 45 सक्सेसफुल लोगों के इंटरव्यू पर Base Law Of Success बुक लिखी जो 1925 में पब्लिश हुई थी। उसके साथ-साथ Ladder To Success बुक भी पब्लिश की, उन्होंने अपना होम स्टडी कोर्स भी बनाया जिसका नाम “Mental Dynamite” है।
“Law Of Success” इतनी हिट साबित हुई जिसने Hill की ज़िंदगी को बदल दिया, 1929 तक Hill ने इतना पैसा कमा लिया कि उन्होंने Rolls Royce कार खरीद ली और Castkill Mountains नाम की जगह पर 600 एकड़ की प्रॉपर्टी खरीद ली। एक साल बाद जब Great Depression (world wide economical depression जो 1930 में स्टार्ट हुआ था) का दौर शुरू हुआ और 1929 में Hill को अपनी Castkill Mountains वाली ज़मीन बेचनी पड़ी। 1930 में उन्होंने “The Magic Ladder To Success” नाम की बुक पब्लिश की जो बुरी तरह से फ़्लॉप हुई, उसी पीरियड में 1935 में उनका उनकी वाइफ़ Florence से डिवोर्स हो गया।
1947 में Hill की किस्मत फाइनली बदल जाती है जब उनकी बेस्ट सेलिंग बुक “Think And Grow Rich“ इतनी फ़ेमस होती है कि Hill को वर्ल्डवाइड सक्सेस मिलती है। जिसको एडिट करने और लिखने में उनकी सेकंड वाइफ़ Rosa Lee Beeland ने उनकी हेल्प की। ये बुक आज तक की सबसे सक्सेसफुल बुक्स में से एक है जिसकी आज तक 100 मिलियन से ज़्यादा कॉपीज़ बिक चुकी है। इस बुक की सक्सेस की वजह से Hill अपनी बुक “The Law Of Success” से मिली सक्सेस से भी ज्यादा अमीर बन गए। लेकिन 1940 में उनका उनकी सेकंड वाइफ़ से भी डिवोर्स हो गया, जिसके कारण उनकी इनकम का काफ़ी हिस्सा उनकी वाइफ़ के पास चला जाता था और Hill को फिर से अलग-अलग जगह लेक्चर देने का काम करना पड़ा।
8 नवंबर 1970 को 87 साल की उम्र में Hill की डेथ हो गयी। उनकी डेथ को 50 साल पूरे होने बाद भी उनकी बुक “Think And Grow Rich ” आज तक की बेस्ट सेलिंग बुक्स में से एक है और सेल्फ़ हेल्प बुक ने भी अपनी जगह टॉप 10 बुक्स में बनाये रखी है। मॉडर्न रीडर Rhonda Byrne की 2006 में लिखी “The Secret” बुक ज़्यादा फैमिलियर है लेकिन उसका कॉन्सेप्ट Napoleon Hill की लिखी बुक “Think And Grow Rich” से लिया गया है। Hill ने अपनी पूरी लाइफ़ लोगों की हेल्प की और सक्सेस के लिए लोगों को कई फ़ॉर्मूला दिए है जिसके लिए उन्होंने अपनी लाइफ़ के 30 साल लगा दिए हैं, सक्सेस के उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद उन्होंने अपने काम को डिटरमिनेशन के साथ शुरू रखा और उनकी इसी मेहनत का रिज़ल्ट आज तक लोगों को सक्सेसफुल होने के लिए हेल्प किये जा रहा है।