50+ Real Success Stories in Hindi | महान लोगो की सफलता की कहानी

Neil Armstrong

Neil Armstrong एक एयरोस्पेस इंजीनियर, नेवी ऑफिसर, टेस्ट पायलट और प्रोफेसर थे जो चाँद की सतह पर पहला कदम रखने वाले पहले इंसान थे, जिनका इंटरेस्ट उन्हें एविएशन से नेवी तक और नेवी से सीधा चाँद तक ले गया।

Armstrong का जन्म 5 अगस्त 1930 को Wapakoneta, Ohio में हुआ था, वो Stephen Koenig Armstrong 3 Viola Louise Engel के तीन बच्चों में सबसे बड़े थे, उनके पिता Stephen एक स्टेट ऑडिटर थे। Neil का एविएशन के प्रति इंटरेस्ट तब पैदा हुआ जब उन्होंने 6 साल की उम्र में पहली बार प्लेन में का सफर किया था। वो अपनी स्कूल बॉयज़ स्काउट में भी काफ़ी एक्टिव थे जहाँ उन्हें ईगल स्काउट की रैंक मिली थी, जब Neil 16 साल के थे तब वो लाइसेंस्ड पायलट बन चुके थे और 17 साल की उम्र में नावल एयर कैडेट थे।

1950 में जब Neil Purdue University, Indiana में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तब कोरियन वॉर के दौरान उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और युद्ध के लिए जाना पड़ा, जहाँ उन्हें तीन गोलियाँ लगी थी और उनकी बहादुरी के लिए उन्हें तीन मेडल्स भी मिले थे। वॉर से वापस आने के बाद उन्होंने फिर से अपनी कॉलेज जॉइन की और 1955 में उन्होंने अपनी डिग्री कम्पलीट की और वो National Advisory Committee For Aeronautics (NACA) के लिए सिविलियन रिसर्च पायलट बन गए (NACA को ही अभी NASA के नाम से जाना जाता है), जहाँ उन्होंने 1100 घंटे से भी ज़्यादा की फ्लाइट की।

1962 में Armstrong ने एस्ट्रोनॉट्स का ग्रुप जॉइन किया, 16 मार्च 1966 को Armstrong Gemini 8 के कमांडर पायलट के तौर पर David R. Scott के साथ स्पेस डॉकिंग कर रहे थे और कुछ ख़राबी के कारण उन्होंने Gemini 8 की इमरजेंसी लैंडिंग करवाई और David R. Scott के साथ प्रशांत महासागर में छलांग लगाई। 16 जुलाई 1969 को Neil Armstrong अपने दो साथी Edwin E. Aldrin Jr. और Michael Collins के साथ अपोलो 11 में चाँद पर जाने के लिए रवाना हुए और उसके 4 दिन बाद रात के 10:56 बजे (ईस्टर्न डेलाइट टाइम) उन्होंने चाँद की सतह पर कदम रखा और वो चाँद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बन गए।

चाँद पर पहुँचने के बाद वो इतने एक्साइटेड थे कि उन्हें वहाँ जाकर एक बयान देना था लेकिन वो उस बयान में से एक वर्ड भूल गए थे और वो बयान ये था “That’s one small step for [a] man, one giant leap for mankind”. 21 जुलाई 1969 को चाँद पर 21 घंटे 36 मिनट्स बिताने के बाद Armstrong अपने साथियों के साथ पृथ्वी के लिए रवाना हुए और 24 जुलाई को दोपहर 12:51 बजे वो प्रशांत महासागर में उतरे, वायरस से अफ़ेक्ट होने की संभावना के कारण Armstrong और उनके दो साथियों को 18 दिन के लिए क्वारंटाइन किया गया। उसके बाद उन्होंने 21 देशों की यात्रा की जहाँ उनका खूब स्वागत किया गया।

1971 में Armstorng ने NASA से रिज़ाइन ले लिया था, अपोलो 11 के मिशन के बाद Armstrong खुद को पब्लिक लाइफ़ से ले गए और 1971 से  1979 तक University Of Cincinnati (Ohio) में एयरोस्पेस इंजीनियर के प्रोफेसर के पद पर रहे। 1979 के बाद Armstrong कुछ कंपनीज़ में डायरेक्टर के पद पर रहे और 1982 से 1992 तक एविएशन कंपनीज़ में रहे, उसी समय के दौरान वो 1977 से 2002 तक AIL सिस्टम्स के भी डायरेक्टर थे जो मिलिट्री के लिए इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट्स बनाती थी। 2002 में रिटायरमेंट के बाद वो Ohio में अपने घर ही रह रहे थे और 25 अगस्त 2012 को दिल का दौरा पड़ने से 82 साल की उम्र में उनकी मौत हो गयी।

उन्हें अपने बेहतरीन काम और राष्ट्र की सेवा के लिए 1969 में प्रेज़िडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से नवाज़ा गया था जो अमेरिका का सर्वोच्च पुरुष्कार है। 1978 में उन्हें स्पेस की दुनिया मे अपने कॉन्ट्रिब्यूशन के लिए Congressional Space Medal Of Honor और 2009 में Congressional Gold Medal से सम्मानित किया गया।

Dhirubhai Ambani

जो बड़े सपने देखते हैं उनके ही सपने साकार हुआ करते हैं, ऐसा कहने वाले Dhirubhai Ambani भारत के सबसे बड़े बिज़नेसमैन में से एक थे, जिनकी लाइफ़ की जर्नी और बातें आज भी लोगों को बहुत इंस्पायर करती है क्योंकि पेट्रोल पंप पर नौकरी करने वाले Dhirubhai Ambani ने वो कर दिखाया था जितना सोच पाना भी हर किसी के बस में नहीं होता।

Dhirubhai Ambani का रियल नाम Dheeraj Heeralal Ambani था, उनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागढ़ के एक छोटे से गाँव चोरवाड़ में हुआ था, उनके पिता का नाम Heerachand Gordhanbhai Ambani था जो अपने गाँव के स्कूल में टीचर थे। किसी वजह से Dhirubhai Ambani को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और ऐसा कहा जाता है कि वो उनके घर के पास के धार्मिक स्थल पर पकौड़े बनाकर भी बेचते थे। कुछ समय बाद अपना वो काम बंद करके Dhirubhai अपने बड़े भाई के साथ Aden, यमन चले गए। यमन जाने के बाद Dhirubhai ने एक पेट्रोल पंप पर नौकरी की और 2 साल काम करने पर अपनी एलिजिबिलिटी की वजह से वो पंप के मैनेजर बन गये।

Dhirubhai ने एक बार कहा था कि जब यमन में नौकरी कर रहे थे तब उनके साथी कर्मचारी जिस जगह चाय पीने जाते थे, Dhirubhai उनके साथ जाने के बजाय पास के बड़े होटल में जाते थे ताकि वहाँ पर आने वाले बड़े बिज़नेसमैन की बातें सुन सके इस बात से आप उनके बिज़नेस को लेकर जुनून का अंदाज़ा लगा सकते हैं। जब Dhirubhai यमन में थे तब वहाँ चाँदी के सिक्के चलते थे और उन सिक्कों के चाँदी के दाम सिक्कों के दाम से ज़्यादा थे, तभी उन्होंने लंदन की किसी कंपनी से कॉन्टैक्ट करके सिक्कों को गलाकर उन्हें बेचना शुरू किया, जब तक वहाँ की सरकार को इसकी खबर लगी तब तक Dhirubhai काफ़ी प्रॉफ़िट कमा चुके थे।

कुछ टाइम बाद यमन में चल रहे आज़ादी के आंदोलन के कारण 1958 में Dhirubhai को वापस भारत आना पड़ा। भारत वापस आकर उन्होंने अपने चचेरे भाई Champaklal Damani के साथ मसालों का काम शुरू किया और उन्होंने अपनी कंपनी का नाम Reliance Commercial Corporation रखा, जो एक 350 sq. फ़ीट जगह के साथ 1 टेलीफोन, 1 टेबल और 3 चेयर्स के साथ मस्ज़िद बुंदेर बॉम्बे में शुरू हुई। उसके बाद Dhirubhai ने अपने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिलकर एक टीम बनाई ताकि वो अपने काम को आगे बढ़ा सकें। 1965 में उनके भाई Champaklal के साथ उनकी पार्टनरशिप टूट गयी और Dhirubhai ने खुद उस बिज़नेस को संभाला।

Dhirubhai अपने काम को बढ़ाना चाहते थे इसलिए उन्होंने 1966 में नरोदा गुजरात मे पॉलीस्टर मटेरियल बनाने का काम शुरू किया, जिसका नाम विमल रखा गया कुछ ही सालों में विमल एक बड़ा भारतीय ब्रांड बन चुका था।टेक्सटाइल मार्केट में अपनी पकड़ बनाने के बाद Dhirubhai ने में Reliance IPO जारी किया 1977 जिसमें 58 हज़ार से ज़्यादा इन्वेस्टर्स ने अपना पैसा इन्वेस्ट किया, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के प्रोडक्ट्स ने मार्केट में इतना विश्वास बना लिया कि जो भी उनकी कंपनी में पैसा इन्वेस्ट करेगा उनको मुनाफ़ा होगा ही होगा। IPO जारी करने के बाद ही उन्हें अपने बिज़नेस के लिए काफ़ी बड़ा इन्वेस्टमेंट मिल चुका था। उसके बाद Dhirubhai ने हर फ़ील्ड में अपने बिज़नेस को बढ़ाना शुरू किया, Dhirubhai ने पेट्रोकेमिकल्स, टेलीकॉम, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिसिटी और कपड़े के साथ-साथ कई क्षेत्र में अपने बिज़नेस को बढ़ाया।

अपनी सफ़लताओं के बीच Dhirubhai पर सरकार की पॉलिसी को न मानकर अपने अनुसार बदलने का आरोप भी लगा था क्योंकि उनके पास इतना पैसा था कि पॉलिसीज़ को बदलना आलोचना करने वालो की नज़रों में आसान बात लग रही थी, आलोचना और बिज़नेस के तनाव के कारण उन्हें ब्रेन स्ट्रोक का सामना करना पड़ा और उसके बाद Dhirubhai ने अपने काम से रिटायरमेंट ले लिया और बिज़नेस की डोर अपने दोनों बेटों Mukesh Ambani और Anil Ambani के हाथों में दे दी। जून 2002 को उन्हें दूसरी बार ब्रेन स्ट्रोक हुआ जिसके कारण उन्हें मुम्बई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया और 12 दिन एडमिट रहने के बाद 6 जुलाई को Dhirubhai Ambani ने आख़िरी साँस ली। उनकी डेथ के वक़्त उनकी नेट वर्थ 2.9 बिलियन डॉलर थी, 1988 में Dhirubhai की बायोग्राफी “The Polyster Prince” लिखी गयी जो बाद में कानूनी कार्यवाही के बाद बेन करवा दी गयी। 2007 में उनकी जीवनी पर आधारित “Guru” नाम की मूवी भी बन चुकी है। 2016 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

Amancio Ortega

क्या आपने ZARA का नाम सुना है, शायद नहीं सुना होगा, लेकिन मुझे तो बताना ही होगा की ZARA एक फैशन ब्रांड है, जिससे आपने कभी कपडे खरीदते भी होंगे, तो आज हम ZARA के फाउंडर के बारे में जानेंगे। Amancio Ortega एक बिलेनियर हैं जो दुनिया की सबसे बड़ी क्लोथिंग कंपनी ZARA के फाउंडर हैं, जिन्होंने दर्जी का काम करके आज ख़ुदको दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में पहुँचाया और अपनी कंपनी ZARA को दुनिया की सबसे वैल्युएबले क्लोथिंग कंपनी बनाया।

Amancio Ortega का जन्म 28 मार्च 1936 को Busdongo De Arbas, स्पेन में एक ग़रीब परिवार में हुआ, उनके पिता Antonio Ortega रेलवे में मजदूर थे। जब Amancio 14 साल के थे तब उनके पिता के ट्रांसफर के कारण उन्हें स्कूल छोड़नी पड़ी और वो Gala नाम के एक शर्ट बनाने वाले के यहाँ काम करने लगे, जहाँ से उन्होंने हाथ से शर्ट बनाना सीखा। Amancio अपने खाली समय मे अपनी बहन की दुकान पर आए कपड़ो के ऑर्डर्स को बनाकर अपने टाइम को पूरा करते थे और कुछ साल काम करने के बाद उन्होंने 1972 में शहर की कुछ औरतों का ग्रुप बनाकर Confecciones Gao नाम को फर्म बनाई जो स्टार्टिंग Bathrobes बनाने के काम करती थी।

लगभग 3 साल तक Bathrobe का काम करने के बाद Amancio ने काम को एक्सपैंड करने के लिए 1975 में अपनी वाइफ़ Rosalia Mera के साथ Galicia, स्पेन में ZARA नाम से एक स्टोर खोली, जिसमें वो फैशनेबल Apparel सेल करते थे। उन्होंने Zorba The Greek नाम की मूवी से इंस्पायर होकर पहले अपनी स्टोर का नाम Zorba रखना चाहा, लेकिन उनकी स्टोर कुछ ही दूरी पर Zorba नाम से एक Bar था इसलिए उन्होंने Zorba के कांसेप्ट को ZARA में चेंज कर दिया। 1980 का दौर आते-आते Amancio ने बिज़नेस में कई चेंजेज़ किये, उन्होंने डिज़ाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग में कई तरह के बदलाव किए, उन्होंने फ़ैशन डिज़ाइनर के ग्रुप को हायर करना शुरू किया जो पहले उनकी सिस्टर और वाइफ़ किया करती थी।

1985 में Amancio ने ZARA को वर्ल्डवाइड फैलाने के लिए इंडिटेक्स नाम की कंपनी बनाई। ZARA ने स्पेन से बाहर अपना पहला स्टोर 1988 में Porto, Portugal में खोला। उनकी ब्रांड दिनों-दिन फ़ेमस होती जा रही थी और Amancio ने ZARA में कपड़ो के साथ फुटवियर, एक्सेसरीज़ और किड्स कैटेगिरी में भी प्रोडक्शन शुरु किया। 1986 में उनका Rosalia Mera से तलाक हो गया, जिनसे उन्हें एक बेटा और दो बेटियाँ हुई थी और 2013 में Rosalia की 69 की उम्र में मौत हो गयी, 2001 Amancio ने Flora Perez Marcote से शादी कर ली। सन 2000 तक ZARA दुनिया की सबसे बड़ी ब्रांड में से एक बन चुकी थी लेकिन अब तक Amancio Ortega के बारे में किसी को ज़्यादा पता नहीं था क्योंकि वो कभी भी पब्लिक अपीयरेंस में नहीं आये थे।

2001 में जब इंडिटेक्स ने IPO जारी किया तब पहली बार Amancio को लोग जानने लगे। Amancio की लाइफ़ काफ़ी इंस्पायरिंग है लेकिन उनकी स्टोरी ज़्यादा लोगों को न मालूम होने के पीछे उनकी प्राइवेट लाइफ़ है। अपनी जर्नी स्टार्ट होने से लेकर बिलेनियर बनने तक उन्होंने सिर्फ़ तीन बार जर्नलिस्ट को अपना इंटरव्यू दिया। 2016 में Amancio कुछ दिनों के लिए दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति भी बन गए थे।

Carl Benz

Carl Benz को गाड़ियों का जनक माना जाता है, जिन्होंने 1885 में पहली बार ऐसी Tricycle बनाई जो हॉर्सलेस थी (बिना घोड़े की) जिसे एक गैसोलीन इंजन की हेल्प से चलाया गया था। आज के दौर की लक्ज़री कार ब्रांड Mercedes-Benz भी 1926 में Carl Benz ने ही फाउंड की थी।

Carl Friedrich Benz का जन्म 25 नवंबर 1844 को Baden-Wurttemberg, Germany में हुआ था, जब Carl 2 साल के थे तब उनके पिता की डेथ हो गयी थी और वो उनकी माँ के साथ ग़रीबी में ही बड़े हुए। 1859 में उन्होंने Carlsruhe Polytechnic जॉइन किया और 1864 में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन कम्पलीट किया।1872 में Carl Benz ने Bertha Ringer से शादी की, Bertha एक अमीर घर से बिलोंग करती थी, जो Carl को शादी से पहले फाइनेंशियल सपोर्ट करती थी।

शादी के बाद उन्होंने Bertha से कुछ धन लेकर पार्टनरशिप में एक फैक्ट्री डाली लेकिन लेकिन पार्टनर्स के साथ कुछ डिस्प्यूट्स को लेकर 1883 में Carl ने वो कंपनी छोड़ दी। उसी साल उन्होंने Bertha के दहेज की मदद से Mannheim में Benz & Co. की स्थापना की, उनकी कंपनी स्टार्टिंग में सिर्फ़ गैसोलीन इंजन बनाती थी लेकिन उनके माइंड में कुछ ऐसा इन्वेंशन चल रहा था जो दुनिया को पूरी तरह से बदल देने वाला था। 1885 में उन्होंने दुनिया की पहली कार बनाई, जो गैसोलीन से चलती थी। Carl को साइकिल चलाने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने अपनी पहली कार एक Tricycle को लेकर बनाई।

Carl के इस Tricycle Automobile को Motorwagen नाम दिया गया, जिस पर एक बार में दो लोग सवारी कर सकते थे लेकिन इस कार को बनाने से पहले Carl ने Tricycle में यूज़ होने वाली दूसरी चीज़ों को भी इन्वेंशन किया जैसे इलेक्ट्रिक इग्निशन, स्पार्क प्लग्स और क्लच। जब Carl अपने Tricycle के इन्वेंशन में लगे थे उसी दौरान बाकी के इन्वेंटर भी “हॉर्सलेस कैरिज” बनाने में लगे थे लेकिन Carl ने तेज़ी दिखाते हुए अपने काम को उनसे काफ़ी जल्दी अंजाम दिया। बाकी इन्वेंटर एक पहले से बने कार्ट (घोड़ा बग्घी) पर इंजन को जोड़कर उसे कार का रूप दे रहे थे लेकिन Carl ने अपनी कार को पूरा अपने हिसाब से डिज़ाइन किया था।

29 जनवरी 1886 को Carl को अपनी गाड़ी का पेटेंट नंबर 37435 मिला। 1888 में Carl ने अपनी कार की फर्स्ट सैलिंग स्टार्ट की 1893 में उन्होंने फोर व्हील कार सेल करना शुरू किया, ये वही थ्री व्हील वाली कार थी जिसे बाद में फोर व्हील में अपग्रेड करके बेचा गया। 1894 से 1901 के बीच Carl ने 1200 कार का प्रोडक्शन किया और ये दुनिया की फर्स्ट प्रोडक्शन कार थी। हालांकि 1900 के दौर में दूसरे मैन्युफैक्चरर मार्केट में आ गए थे जो Carl की कार से काफ़ी सस्ती और ताक़तक़र गाडियाँ मार्केट में बेच रहे थे। 1903 में Carl ने अपनी बनाई कंपनी में ध्यान देना बंद कर दिया और अपने बेटों के साथ उन्होंने न्यू डिज़ाइन कार डेवेलोप करना शुरू किया।

1926 में Benz & Company, Gottlieb Daimler Company के साथ मर्ज हो गयी, जो जर्मनी की लीडिंग मैन्युफैक्चरिंग कार कंपनी थी और कंपनी का नाम Mercedes-Benz पड़ गया (Mercedes नाम Daimler कंपनी के एक डीलर की बेटी का नाम था)। Daimler और Benz की कंपनी आपस में मर्ज तो हो गयी और दोनों जर्मनी में ही रहते थे लेकिन दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिले थे। Mercedes के Daimler में मर्ज होने के तीन साल बाद Carl Benz की 84 साल की उम्र में 4 अप्रैल 1929 को Ladenburg, Germany में मौत हो गई। जब Carl ने शुरुआत करनी चाही तब उनके पास कुछ भी नहीं था, Carl ने अपनी वाइफ़ के बारे में लिखा था कि “जब मैं अपने करियर में नीचे गिरता जा रहा था तब एक ही इंसान ने मुझ पर भरोसा किया था और वो Bertha थी और ये Bertha का साहस था जो उसने मुझे नई आशा खोजने में सक्षम बनाया”।

Bertha ही थी जिसने Carl के इन्वेंशन पर भरोसा किया और अगस्त 1888 में Carl के इन्वेंशन मॉडल थ्री को 66 मील के रूट पर पहली बार लेकर गयी थी, इस ड्राइव ने Carl की हिम्मत को बहुत बढ़ावा दिया। आज के टाइम में Carl को ज़्यादा लोग नहीं जानते लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि Carl की वजह से ही आज ट्रांसपोर्टेशन इतना आसान हो चुका है, उनका इन्वेंशन दुनिया को एक नए आयाम तक लेकर गया था।

Nick Vujicic

Nick Vujicic एक ऐसा इंसान है, जिनके हाथ-पैर न होने का बाद भी आज अपने आप को एक सक्सेसफुल इंटरप्रेन्योर और एक्टर के रूप में दुनिया के सामने लाया है। Nick Vujicic का जन्म 4 दिसंबर 1982 को Melbourne, Australia में हुआ था, उनके पिता एक अकाउंटेंट है और उनकी माँ एक नर्स है। जब Nick का जन्म हुआ था तब वो बिना हाथ-पैर के पैदा हुए क्योंकि उन्हें Tetra-Amelia Syndrome नाम की बीमारी है। जब वो पैदा हुए तो उनकी माँ ने उन्हें हाथ में लेने से मना कर दिया था लेकिन आखिर में उन्हें अपने बेटे को स्वीकार तो करना ही था।

Nick की स्टार्टिंग की लाइफ़ काफ़ी मुश्किलों से भरी थी, Nick ने बताया कि हाथ-पैर न होने की वजह से उन्हें रोज़ के काम में दिक्कत तो आती ही थी लेकिन वो कभी अपने फ्रेंड्स के साथ खेल नहीं पाते थे। कई बार उनका मज़ाक भी बनता था और इन्ही सब प्रॉब्लम की वजह से वो डिप्रेशन में चले गए और उन्होंने सुसाइड एटेम्पट किया, वो पानी से भरे एक टैंक में जाकर कूद गए लेकिन उन्हें बचा लिया गया और ये बात तब की है जब वो सिर्फ़ 10 साल के थे। Nick के जन्म के टाइम उनके एक पैर की जगह सिर्फ़ अंगुलियाँ थी और वो भी आपस में जुड़ी हुई थी, जिसे डॉक्टर ने बाद में आपरेशन से अलग कर दिया था ताकि वो उनकी मदद से कुछ छोटे-मोटे काम कर सके।

Nick की लाइफ़ का टर्निंग पॉइंट तब आया जब उनकी माँ ने उनको एक आर्टिकल दिखाया जो विकलांग लोगों पर था और उसी समय उनको अहसाह हो गया था कि दुनिया में वो अकेले ऐसे इंसान नहीं है जो विकलांग हैं और Nick ने उस दिन से अपने आप को बेहतर बनाने में काम शुरू कर दिया। उन्होंने शुरुआत कंप्यूटर स्टार्ट करने जैसे छोटे-छोटे कामों से की। Nick अगर नीचे गिर जाते थे तो वो बिना किसी की मदद के खड़े नहीं हो पाते थे लेकिन आज Nick स्विमिंग कर सकते हैं, वो अपनी प्रैक्टिस के कारण काफ़ी इज़ीलि लिख सकते हैं, स्काइडाइविंग, ड्रम बजाना जैसे कई काम उन्होंने कर दिखाए हैं।

जब Nick 19 साल के हुए तब उन्होंने इतनी सब एक्टिविटी सिख कर मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर अपना करियर स्टार्ट किया और मोटिवेशनल स्पीकिंग के दौरान उन्होंने B.COM (Accounting And Finance) में अपनी ग्रेजुएशन भी कम्पलीट कर दी। 24 की उम्र में आते-आते Nick ने Life Without Limbs Organization नाम की एक NGO की स्थापना की, जिसमें वो विकलांग लोगों को लाइफ़ में कुछ करने के लिए मोटीवेट करते हैं। 2007 में 26 की उम्र में Nick ने Attitude Is Altitude नाम की कंपनी खोली जो कि मोटिवेशनल स्पीकिंग सिखाने का काम करती है। 2009 में Nick ने “The Butterfly Circus” नाम को शार्ट फ़िल्म में मैन एक्टर के तौर पर काम किया, जिसके लिए 2010 में Nick को मेथड फ़ेस्ट इंडिपेंडेंट फ़िल्म फ़ेस्टिवल की तरफ़ से बेस्ट एक्टर का अवार्ड दिया गया, जिसमें उन्होंने Will नाम का किरदार निभाया था।

2010 में Nick ने “Life Without Limits: Inspiration For A Ridiculously Good Life” बुक लिखी जो दुनिया भर में 30 भाषाओं में ट्रांसलेट हो चुकी है और अब तक Nick कुल 9 बुक्स लिख चुके हैं और लोगों ने Nick की लाइफ़ से इंस्पायर होकर Nick पर भी काफ़ी बुक्स लिखी है। बिना हाथ पैर के पैदा हुए Nick आज दुनिया के सबसे सक्सेसफुल मोटिवेशनल स्पीकर में से एक हैं, सक्सेसफुल से मतलब पैसा कमाने से नहीं है बल्कि लोग उनकी बातों से कितना मोटिवेट होते है उससे है। अब तक वो 40 से ज़्यादा देशों में अपने लेक्चर दे चुके हैं, जिन्हें देखने के लिए कभी-कभी लाखों की तादात में ऑडियंस जमा होती है। Nick फ़िलहाल कैलिफ़ोर्निया में अपनी बीवी और बच्चों के साथ में रहते हैं, उनकी बीवी से वो 2008 में अपने एक सेमिनार में मिले थे और बाद में 2012 में दोनों ने शादी कर ली थी। 1990 में उन्हें ऑस्ट्रेलियन यंग सिटीज़न नाम का अवार्ड मिला और 2005 में उन्हें यंग ऑस्ट्रेलियन ऑफ़ दी ईयर के अवार्ड से सम्मानित किया गया।

Leave a Comment