50+ Real Success Stories in Hindi | महान लोगो की सफलता की कहानी

Mark Zuckerberg

Mark Zuckerberg को कौन नहीं जानता, दोस्तों अगर काम को सही अंजाम देने का पूरा नॉलेज आप में है तो इसमें उम्र का महत्व कहीं भी बीच में नहीं आता, दुनिया भर को आपस मे जोड़ने में फेसबुक का बहुत अहम योगदान है और फेसबुक के पीछे अगर किसी का योगदान है तो वो हैं Mark Zuckerberg, जिन्होंने ये कारनामा तब कर दिखाया जब वो सिर्फ़ 20 साल के थे।

Mark Zuckerberg का जन्म 14 मई 1984 को न्यूयॉर्क में हुआ था, उनके पिता का नाम Edward Zuckerberg हैं, जो एक डेंटिस्ट हैं और उनकी माँ Karen जो एक साइकेट्रिस्ट है। Mark को बचपन से ही कंप्यूटर का शौक था और उन्हें बेसिक प्रोग्रामिंग की ट्रेनिंग उनके पिता ने ही दी थी और बाकी की ट्रेनिंग David Newman ने दी थी जो उनके ट्यूटर थे। Mark ने 12 साल की उम्र में एक सॉफ़्टवेयर बनाया जो उनके पिता के क्लीनिक और उनके घर को कनेक्ट करता था। Mark ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके आर्टिस्ट फ्रेंड उन्हें कई बार आईडिया देते थे और वो उनके आइडिया पर बेस गेम भी बनाते थे।

जब Mark हाई स्कूल में थे तब उन्होंने इंटेलीजेंट मीडिया नाम की कंपनी को जॉइन किया और वहाँ वो एक मीडिया प्लेयर बनाने पर काम कर रहे थे। Mark ने 2002 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जॉइन की, जहाँ वो साइकोलॉजी और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे थे, कॉलेज में एडमिशन के टाइम से ही उनकी रेपुटेशन एक अच्छे प्रोग्रामर के तौर पर थी।2003 में Mark ने Facemash नाम की एक वेबसाइट बनाई जो एक फ़न वेबसाइट थी, जिसमें कॉलेज के स्टूडेंट्स के फोटोज़ को ब्यूटी के बेस पर वोट किया जाता था और वेबसाइट के लिए जितने स्टूडेंट्स के फ़ोटो थे वो सब Mark ने हार्वर्ड की वेबसाइट को हैक करके लिए थे। Facemash का आइडिया इतना हिट साबित उनके कॉलेज का सर्वर क्रैश हो गया था। Facemash के आइडिया के दौरान उनके एक कॉलेजमेट Divya Narendra एक सोशल नेटवर्क वेबसाइट का आइडिया उनके पास लेकर आये, Divya Narendra के साथ उनके दो पार्टनर भी थे (Tyler और Cameron)।

Divya Narendra उस वेबसाइट को कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए बनाना चाहते थे, जिसका नाम उन्होंने हार्वर्ड कनेक्शन सोचा था, लेकिन बाद में उसका नाम कनेक्ट यु रखा गया, Divya ने बताया कि इस साइट से जुड़े स्टूडेंट्स एक-दूसरे के फोटोज़ लाइक कर सकेंगे और उस पर कमेंट भी कर सकेंगे, Mark को ये आईडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने तुरंत इस पर काम शुरू कर दिया। Mark को उस आइडिया पर काम करने के दौरान ही सोशल मीडिया वेबसाइट शुरू करने का आइडिया आया था और उन्होंने 2004 में thefacebook.com नाम के डोमेन को रजिस्टर किया और thefacebook बाद में Facebook बनकर दुनिया के सामने आया, उन्होंने thefacebook.com बना दी, जिसका यूज़ पहले कॉलेज के स्टूडेंट्स कर रहे थे।

कुछ समय बाद उन्होंने देखा कि दूसरे कॉलेज के स्टूडेंट्स का ट्रैफिक भी उनकी इस वेबसाइट पर आ रहा है और 2005 तक वेबसाइट पूरे अमेरिका में पॉपुलर हो गयी और बस उसी वक़्त Mark ने पूरी दुनिया को Facebook के ज़रिए कनेक्ट करने का सोचा और उस पर काम करने लगे, जिसके चलते उन्होंने अपनी कॉलेज डिग्री को भी बीच में ही छोड़ दिया। 2006 में Mark, Palo Alto चले गए और एक घर रेंट पर ले लिया ताकि वहाँ से वो Facebook को हैंडल कर सके, वहाँ वो Sean Parker (Founder Of Napster) से मिले, असल में the facebook से the हटाने का आइडिया Sean Parker ने ही दिया था।

1 साल की कड़ी मेहनत के बाद 24 मई 2007 को उन्होंने Facebook को वर्ल्डवाइड लॉन्च करने की घोषणा की और आज Facebook जिस मुकाम पर है वो आप देख ही सकते हैं। 2010 में उन्हें वैनिटी फ़ेयर मैगज़ीन में IT फ़ील्ड में फ़र्स्ट पोजीशन पर रखा गया था। Mark ने 19 मई 2012 को Priscilla Chan से शादी कर ली, जिन्हें वो हार्वर्ड कॉलेज के टाइम से डेट कर रहे थे। 2015 में उन्हें बेटी हुई जिसका नाम Maxima Chan Zuckerberg है और अगस्त 2017 में उन्हें दूसरी बेटी हुई जिसका नाम August Zuckerberg है। 2013 में Mark ने internet.org नाम का प्रोजेक्ट शुरू किया जिसकी हेल्प से वो दुनिया के हर एक इंसान तक इंटरनेट पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें कई कंपनीज़ उनका साथ दे रही है।

2014 में Facebook ने दुनिया की सबसे बड़ी पर्सनल मेसेजिंग एप व्हाट्सएप्प को भी ख़रीद लिया। वो Chan Zuckerberg Initiative नाम से एक चैरिटेबल ट्रस्ट भी चलाते हैं। Mark ने जब Facebook बनाई तब वो सिर्फ़ 19 साल के थे लेकिन उनके आईडिया ने पूरी दुनिया को जोड़ रखा है और 23 की उम्र तक आते-आते वो एक बिलेनियर बन चुके थे। Mark की लाइफ़ पर The Social Network नाम की मूवी भी बन चुकी है, जिसमें उनकी Facebook की जर्नी को बताया गया है।

Andrew Carnegie

Andrew Carnegie स्कॉटलैंड में जन्मे एक इंदस्ट्रियालिस्ट थे, जिन्होंने अपनी ग़रीबी में अमेरिका आकर दुनिया का सबसे अमीर इंसान बनकर दिखाया। Andrew Carnegie का जन्म 1835 में Dunfremline Scotland में हुआ था, उनके पिता का नाम William Carnegie और माँ का नाम Margaret Morrison Carnegie था। Dunfremline लिनेन का कपड़ा बनाने के लिए फ़ेमस था लेकिन किसी रीज़न से लिनेन का काम धीरे-धीरे कम होने लगा और कपड़े का काम कम होने की वजह से Andrew के पिता का काम भी बंद हो गया।

Andrew के पिता का काम बन्द होने की वजह से चार्टिस्ट आंदोलन जॉइन किया लेकिन 1848 में वो आंदोलन विफ़ल हो गया, तभी Will और Margaret ने अपना सारा सामान बेच दिया ताकि वो अपने बेटे Andrew और Tom को लेकर अच्छे फ़्यूचर के लिए अमेरिका जा सके उस वक़्त Andrew की उम्र सिर्फ़ 13 साल थी। 1848 में ही Andrew के पिता Will ने Allegheny, Pennsylvania में बसने का फ़ैसला किया जहाँ उनके दोस्त और रिश्तेदार रहते थे और Andrew और उनकी फ़ैमिली अमेरिका शिप से गये थे जो न्यूयॉर्क पहुँचाता था, Andrew बड़े शहर में आकर वहाँ के लोगों और हलचल को देखकर अचंभित थे। न्यूयॉर्क से Andrew की फ़ैमिली एक स्टीम बोट से Pennsylvania अपने रिलेटिव्स के यहाँ चले गए और वहाँ एक बुनाई की दुकान पर जाकर काम करने लग गए लेकिन कुछ टाइम बाद उनके पिता का बुनाई का काम भी फ़ैल हो गया।

13 साल की उम्र में Andrew ने Pennsylvania की एक कपड़ा बनाने की फैक्ट्री में बोबिन बॉय का काम किया, जहाँ से उन्हें एक हफ़्ते का 1.20 डॉलर मिलता था। 1 साल बाद Andrew ने वहाँ की एक टेलीग्राफ कंपनी में मैसेंजर का काम किया और कुछ टाइम बाद उन्होंने काम सीख लिया और उन्हें टेलीग्राफ ऑपरेटर की जॉब मिल गयी। लगभग 10 साल वहाँ काम करने के बाद Andrew टेलीग्राफ ऑपरेटिंग में इतने मास्टर हो गए की उन्हें Pennsylvania Railroad में Superintendent पद पर नौकरी मिल गयी, उस टाइम उनकी उम्र 24 साल थी और उसी जॉब के दौरान वो James Anderson की खोली गई लाइब्रेरी में पढ़ाई भी कर रहे थे।

Railroad की नौकरी के दौरान Andrew के बॉस Homas A. Scott ने Andrew को एडम्स एक्सप्रेस कंपनी के 10 शेयर्स खरीदने की सलाह दी और Andrew की माँ Margaret ने अपने घर का सामान बेच कर Andrew को 500 डॉलर दिए, जो Andrew की लाइफ़ का पहला इन्वेस्टमेंट था और जल्द ही उन्हें उसमें प्रॉफिट होने लगा। Railroad के काम से जुड़े रहने के दौरान Andrew ने कहीं और भी काम देखना शुरू किया, कुछ समय बाद Theodore Woodruffne Andrew को स्लीपिंग रेल कार का आईडिया दिया और Andrew ने उसमें इन्वेस्ट करके उसमें अपना हिस्सा ले लिया, जिसका नाम Woodruff Sleeping Car Company था। Andrew ने उसमें इन्वेस्ट करने के लिए बैंक लोन लिया था जो Andrew की लाइफ़ बदल देने वाला एक सौदा था।

30 उम्र में Andrew ने लोहे के काम, लेक पर स्टीमर और ऑयल के काम में इंटरेस्ट लेना शुरू कर दिया, बाद में वो फाइनली लोहे के काम में ज़्यादा इंटरेस्ट दिखाने लगे और उन्होंने अपनी खुद की कंपनी Carnegie Steel Corporation बनाई और फिर Andrew अपनी मेहनत की वजह से दिन ब दिन अमीर होते गए। Andrew को मॉडर्न Philanthropy का जनक कहा जाता है, उन्होंने 1870 के बाद Philanthropy का काम करना शुरू कर दिया, Andrew को ज़्यादातर अपने द्वारा खोली गयी फ्री लाइब्रेरी के लिए जाना जाता है, अपने philanthropy के काम के दौरान ही उनकी मुलाक़ात Louise Whitfield से हुई जिनसे वो न्यूयॉर्क में मिले थे। बाद में वो भी Andrew के काम में उनका साथ देने लगी, उसके 2 साल बाद उन्होंने Gospel Of Wealth बुक लिखी जिसमें उन्होंने अमीर लोगों को अपने धन को दान देने और दुनिया में अच्छा काम करने के लिए कई विचार रखे।

1901 में Andrew ने अपनी कंपनी को 480 मिलियन डॉलर में J.P Morgan को बेच दिया और रिटायर हो गए, रिटायरमेंट के बाद Andrew ने अपने धन को लाइब्रेरी के अलावा चर्च बनवाने में यूज़ किया, उन्होंने अपने धन से कई देशों में स्कूल, कॉलेज और NGO बनाये। उन्होंने अपने नाम से कई ट्रस्ट बनाये जिससे वो लोगों की मदद कर सके जैसे Carnegie Museum Of Pittsburg, The Carnegie Trust For The Universities Of Scotland, Carnegie Institution For Science, Carnegie Foundation (supporting the peace places), Carnegie Dunfermline Trust, Carnegie Foundation For The Advancement Of Teaching, Carnegie Endowment For International Peace और The Carnegie UK Trust.

Carnegie ने अपनी Philanthropy के ज़रिए 2509 लाइब्रेरीज़ बनवाई, जिसमें से 1679 लाइब्रेरीज़ सिर्फ़ अमेरिका में थी, जिसमें उन्होंने 55 मिलियन डॉलर दान दिए थे। उन्होंने लाइब्रेरी बनाने पर अपना ध्यान इसलिए दिया क्योंकि वो खुद एजुकेटेड नहीं थे और वो ऐसे लोगों तक एजुकेशन पहुँचाना चाहते थे जिनके पास पढ़ने-लिखने के लिए प्रयाप्त धन नहीं हैं। 11 अगस्त 1919 को Carnegie की मौत हो गयी, उन्होंने अपनी डेथ के टाइम जितना भी धन कमाया था सब-कुछ लोगों की भलाई और दुनिया में शांति फैलाने के लिए दान दे दिया था लेकिन वर्ल्ड वॉर की वजह से वो आखिरी समय में भी खुश नहीं थे क्योंकि उनके द्वारा इतना सब कुछ किये जाने के बाद भी दुनिया में इस तरह की घटनाएं होती जा रही थी।

Rabindranath Tagore

Rabindranath Tagore एक ऐसे इंसान है जिन्हें भारत का बच्चा-बच्चा जानता है, क्योंकि भारत में स्कूल की पढ़ाई की स्टार्टिंग में ही हर दिन उनके बारे में बता दिया जाता है कि भारत के राष्ट्रीय गान (जन गण मन) के रचियता गुरु Rabindranath Tagore थे। Tagore भारत के ही नहीं बल्कि बांग्लादेश के राष्ट्रीयगान ‘Aamaar Sonar Bangla’ के भी रचियता हैं। Rabindranath Tagore का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था, वो अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।Tagore जब 14 साल के थे तब उनकी माँ की डेथ हो गयी थी, उसके बाद उनके पिता और बड़े भाई-बहनों ने उनकी देखभाल की, वो एक सम्पन्न परिवार से बिलोंग करते थे, उनकी प्राइमरी स्कूल की एजुकेशन Saint Xavier School से हुई।

उनके बड़े भाई भी भारत की फ़ेमस पर्सनालिटी में शामिल है।

  1. उनके सबसे बड़े भाई Dwijendranath एक फिलॉसॉफ़र और कवि थे,
  2. उनके दूसरे भाई Satyendranath Tagore इंडियन सिविल सर्विस में जाने वाले पहले इंडियन थे।
  3. उनके तीसरे भाई Jyotindranath Tagore म्यूजिशियन और प्ले राइटर थे।
  4. उनकी बहन एक कवियत्री और उपन्यासकार थी।

इसलिए बचपन से ही उन्हें हर तरह का ज्ञान अपने बड़े भाई-बहनों से मिलता रहा। 1878 में Rabindranath Tagore बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए, उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एडमिशन तो ले लिया लेकिन वो दो साल में वापस इंडिया आ गए। लंदन में रहकर उन्होंने इंग्लिश और स्कॉटिश साहित्य को बहुत गहराई से जाना और इंडिया वापस आकर 1883 में उन्होंने Mrinalini Devi से शादी की।

Tagore राजनीति में काफ़ी सक्रिय थे, वो एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे और ब्रिटिश शासन के बिल्कुल खिलाफ़ थे, उन्होंने राष्ट्र हित के लिए कई कविताएं लिखी, उन्होंने देशभक्ति पर कई गीत लिखे। 1898 में Tagore अपनी पत्नी और बच्चों के साथ Shelaidaha (जो अभी बांग्लादेश में है) चले गए, जहाँ वो अपने पैतृक घर में रहते थे, वहाँ आकर उन्होंने ग्रामीण जीवन और ग़रीबी को करीब से स्टडी किया और 1891 से 1895 तक उन्होंने रूरल बंगाल से रिलेटेड कई स्टोरीज़ लिखी। 1901 में Rabindranath Tagore शांतिनिकेतन चले गए क्योंकि वो वहाँ एक आश्रम बनाना चाहते थे, जहाँ जाकर उन्होंने लाइब्रेरी, स्कूल और प्रार्थना हॉल बनाया और उसी दौरान उनकी पत्नी और उनके दो बच्चों की मौत हो गयी।

1905 में उनके पिता की भी मौत हो गयी। पिता के जाने के बाद Tagore को उनके पिता से विरासत में काफ़ी संपत्ति मिली जिससे उनकी काफ़ी इनकम हो रही थी और उनके लिटरेचर भी अब तक उन्हें रॉयल्टी देना शुरू हो गए थे क्योंकि उनके लिखे गए साहित्य (लिटरेचर) इतने फ़ेमस हुए की 14 नवंबर 1913 को उन्हें लिटरेचर में नोबेल प्राइज़ दिया गया। Rabindranath Tagore पहले एशियाई थे जिन्हें नोबेल प्राइज़ से सम्मानित किया गया था। एक महान कवि होने के साथ-साथ वो एक संगीतकार और एक पेंटर भी थे, उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 2200 से ज़्यादा गीत लिखे और 60 साल की उम्र से उन्होंने पेंटिंग करना भी शुरू कर दिया।

साहित्य के अलग-अलग शैलियों में महारत हासिल करने वाले Tagore ने साहित्य के हर एक क्षेत्र में पूरी मेहनत और लगन के साथ काम किया, एशिया के पहले नोबेल प्राइज़ पाने के वो हक़दार थे। वो दुनिया के अकेले ऐसे इंसान थे जिनकी दो कम्पोजीशन को दो देशों के नेशनल एंथम के रूप में चुना गया। (भारत – जन गण मन, बांग्लादेश- आमार सोनार बांग्ला) उनकी फ़ेमस कम्पोजीशन गीतांजलि लोगों को इतना पसंद आई कि सिर्फ़ भारत नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी इसकी लोकप्रियता उतनी ही थी। गीतांजलि को जर्मन, फ्रेंच, जापनीज़, रसियन और भी कई भाषाओं में ट्रांसलेट किया गया था और उसी कारण से Tagore का नाम दुनिया के कोने-कोने में फैल गया।

उनकी लिखी कहानियाँ काबुलीवाला, मास्टर साहब, पोस्टमास्टर आज भी हमारे स्कूल के टेक्स्टबुक में मिलते है। उनके साहित्यों में देश को लेकर आजादी की चाह साफ़ नज़र आती है। साहित्य में Tagore का नाम एक गहरे समुद्र की तरह था, जिसे मापा नहीं जा सकता, उनकी कहानियों और कविताओं ने पूरे विश्व में रहने वाले लोगों को एक अलग रास्ता दिखाया है, उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के अंतिम चार साल बहुत मुश्किल और बीमारी में बिताये थे। 1937 के अंत में वो बिल्कुल अनकॉन्शियस हो गए थे लेकिन उस टाइम भी उन्होंने कविताएं लिखना नहीं छोड़ा। 7 अगस्त 1941 को Rabindranath Tagore दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने साहित्य के लिए 1878 से 1932 तक लगभग 30 देशों की यात्रा की और उनकी अंतिम यात्रा श्रीलंका की थी।

CV Raman

चंद्रशेखर वेंकट रमन (CV Raman) मॉडर्न एरा के एक महान साइंटिस्ट थे, जिन्होंने साइंस के क्षेत्र में अपने योगदान की वजह से भारत को पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई। “Raman Effect” CV Raman की सबसे अद्भुत खोज में से एक है, जिसके लिए उन्हें फिजिक्स में नोबेल प्राइज़ भी दिया गया था।

CV Raman का जन्म 7 नवंबर 1888 को तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु में हुआ था, उनके पिता का नाम Chandrasekhara Ramanathan Iyer और माँ नाम Parvathi Ammal था। वो अपने 8 भाई-बहनों में से दूसरे नंबर पर थे, उनके जन्म के समय उनके घर की आमदनी बिल्कुल नहीं थी, जब Raman चार साल के हुए तब उनके पिता को नौकरी मिली। उनके पिता कॉलेज में फिजिक्स प्रोफेसर थे और बचपन से ही उनको पढ़ाई का माहौल मिल गया था इसलिये वो बचपन से ही पढ़ाई में बहुत ज्यादा इंटेलीजेंट थे।

उन्होंने अपनी 10th का एक्ज़ाम सिर्फ़ 11 साल की उम्र में पास किया और 12th के एक्ज़ाम 13 साल की उम्र में पास किये और दोनों ही एक्ज़ाम में Raman ने आंध्रप्रदेश स्कूल बोर्ड एग्ज़ामिनेशन में टॉप किया था। 12th की पढ़ाई के बाद वो 1902 में प्रेज़िडेंसी कॉलेज मद्रास में गए जहाँ से उन्होंने 1904 में ग्रेजुएशन की डिग्री फ़र्स्ट क्लास से कम्पलीट की और उन्हें फ़िजिक्स में गोल्ड मेडल भी मिला। 1907 में उन्होंने MA की डिग्री कम्पलीट की और पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया, कॉलेज के दौरान उनका ज़्यादातर समय लैब में एक्सपेरिमेंट्स करने में जाता था।

सिर्फ़ ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने “Unsymmetrical Diffraction Bands Due To A Rectangular Aperture” नाम का साइंटिफ़िक रिसर्च पेपर लिखा जो लंदन की “Philosophical Magazine” में प्रिंट हुआ था और आपको बता दूँ उस समय Raman की उम्र 18 साल भी होनी थी। मास्टर डिग्री के दौरान 6 मई 1907 को Raman की शादी Lokasundari Ammal से हो गयी जो बहुत अच्छा वीणा बजाती थी और उनकी वीणा बजाने की इस कला से प्रभावित होकर ही Raman ने उन्हें शादी का प्रस्ताव भेजा। Raman के दो बेटे हुए जिनका नाम Chandrasekhara Raman और Venkatraman Radhakrishnan था। Venkatraman Radhakrishnan भी एक साइंटिस्ट थे।

मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद उनकी इंटेलिजेंस को देखते हुए, उनके कॉलेज के प्रोफेसर ने उन्हें हायर स्टडी के लिए फॉरेन कंट्री भेजने को कहा लेकिन Raman की तबीयत ठीक न होने की वजह से वो फॉरेन तो नहीं जा सके, लेकिन उस टाइम ब्रिटिश गवर्मेंट की तरफ़ से एक एक्ज़ाम हुआ था और उन्होंने ये एक्ज़ाम बहुत अच्छे मार्क्स के साथ क्लियर किया और बाद में उन्हें फाइनेंसियल डिपार्टमेंट में काम करने का मौका मिला और उन्हें कोलकाता में असिस्टेंट अकाउंटेंट की नौकरी मिली।

नौकरी के बाद भी उन्होंने अपनी रिसर्च और एक्सपेरिमेंट्स करना जारी रखा और विज्ञान में अपने इंटरेस्ट को देखते हुए उन्होंने 1917 में अपनी जॉब छोड़ दी और Indian Association For The Cultivation Of Science में Honorary Secretary के पद पर जॉइन किया, और उसी साल उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी में फ़िजिक्स प्रोफेसर की जॉब भी मिली और वो वापस विज्ञान के फ़ील्ड में आ गए। 1924 में Raman को अपने ऑप्टिक्स में दिए गए योगदान के लिए लंदन की रॉयल सोसाइटी का मेंबर बना दिया। उसी दौरान Raman अपनी लाइफ़ की सबसे बड़ी खोज Raman Effect में काम करने में लगे थे।

Raman Effects ने भारत को विज्ञान जगत में एक अलग पहचान दिलाई और 1928 में उन्होंने अपने सालों की रिसर्च करने के बाद Raman Effect की खोज की। उन्होंने इस खोज में बताया कि जब लाइट किसी पारदर्शी माध्यम से होकर गुज़रती है तो लाइट के नेचर में फ़र्क आता है, उन्होंने समुद्र के पानी का रंग नीला होने के पीछे की साइंस को भी सिद्ध की। उनकी इस खोज की खबर कुछ ही दिनों में पूरी दुनिया में फ़ैल गयी और फ़ेमस साइंस मैगज़ीन नेचर ने भी इसके ऊपर आर्टिकल लिखा। बाद में इस खोज का नाम Raman Effect रखा गया और उनकी इस खोज के कारण Raman को 1930 में फ़िजिक्स में नोबेल प्राइज़ दिया गया।

28 फरवरी को Raman Effect की वजह से ही भारत में इसी दिन साइंस डे मनाया जाता है क्योंकि Raman Effect 28 फरवरी 1928 में खोजा गया था। 1934 में Raman को बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का डायरेक्टर बनाया गया और वहाँ 14 साल नौकरी करने के बाद 1948 में Raman रिटायर हो गए, रिटायर होने के बाद उन्होंने Raman Research Institute, Bengaluru की स्थापना की। 1954 में विज्ञान में अपने योगदान के लिए Raman को भारत के सबसे बड़े पुरुष्कार भारत रत्न से सम्मानित किया। 1957 में उन्हें लेलिन पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया।82 साल की उम्र में Raman, Raman Research Institute, Bengaluru में लैब में एक रिसर्च के सेंटर में काम कर रहे थे और अचानक उन्हें हार्ट अटैक आया और 21 नवंबर 1970 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया, उनका विज्ञान के क्षेत्र में भारत को अलग पहचान दिलाने के लिए हमेशा याद किया जायेगा।

Jack Ma

दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी में से एक अलीबाबा के फाउंडर Jack Ma की कहानी काफ़ी संघर्ष से भरी है, Jack Ma दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की लिस्ट में 19वे नंबर पर आते हैं (जनवरी 2021 के अनुसार), एक नॉर्मल टीचर से एक बिलेनियर बनने की Jack Ma की कहानी काफ़ी इंस्पायरिंग है।

Jack Ma का जन्म 10 सितंबर 1964 को चीन में एक छोटे से गाँव Hangzhou में हुआ था। Jack Ma के में माता-पिता ट्रेडिशनल सॉन्ग गाने का काम करते थे। इंग्लिश के प्रचलन को देखते हुए Jack Ma ने भी बचपन से ही इंग्लिश सीखनी शुरू की, बहुत कम उम्र में ही Hangzhou International Hotel जो उनके नज़दीक ही था, वहाँ वो उन होटल में आये हुए टूरिस्ट से इंग्लिश में बात करने जाते थे। वो रोजाना 9 साल तक उनके घर से 27 किलोमीटर दूर एक टूरिस्ट स्पॉट पर टूरिस्ट्स को गाइड करने जाते थे, ताकि वो पूरी तरह से इंग्लिश सीख सके, वहाँ उन्हें एक टूरिस्ट मिला था उसी ने उन्हें Jack नाम दिया, में असल उनका नाम Ma Yun था। Jack Ma ने जब कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए एंट्रेंस एक्ज़ाम दिया तो उन्होंने तीन साल बाद उस एक्ज़ाम को क्लियर किया क्योंकि चाइनीज़ एंट्रेंस एक्ज़ाम एक साल में एक बार ही होते हैं, उन्हें दूसरा चांस नहीं मिलता और तीन साल बाद उन्होंने Hangzhou Teacher’s Institute में एडमिशन ले लिया। 1988 में 24 की उम्र में Jack Ma ने BA से ग्रेजुएट किया।

ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने Hangzhou Dianzi University में इंग्लिश लेक्चरर के तौर पर जॉइन कर लिया। Jack Ma ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल में एडमिशन लेने के लिए 10 बार अप्लाई किया था लेकिन वो हर बार फैल हो गये थे। एक बायोग्राफिकल स्पीच में Jack Ma ने कहा था कि ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने 30 अलग-अलग जगहों पर जॉब के लिए अप्लाई किया था लेकिन उन्हें कहीं भी सेलेक्ट नहीं किया गया। एक बार वो KFC में जॉब के लिए गए थे जहाँ 24 लोग इंटरव्यू के लिए आये थे और उनमें से 23 लोगों को सेलेक्ट कर लिया गया और Jack Ma को वहाँ से भी रिजेक्शन मिला। उन्होंने पुलिस फ़ोर्स जॉइन करने के लिए अप्लाई किया लेकिन उन्हें वहाँ से भी रिजेक्शन मिला। 1994 में Jack Ma ने अपनी पहली कंपनी Hangzhou Haibo Translation Agency को रजिस्टर किया, जो लैंग्वेज ट्रांसलेशन कंपनी थी।

1995 में Jack Ma ने अपने दोस्त के साथ मिलकर China Pages नाम की कंपनी खोली और तीन सालों में उन्होंने 5,000,000 Renminbi ($800,000) कमाए। वो chinapages.com खोलने से पहले अमेरिका गए थे क्योंकि उन्हें इंटरनेट की कुछ खास जानकारी नहीं थी और वो चाइना बेस्ड कंपनी के लिए वेबसाइट बनाने के काम करते थे। उन्होंने 2010 में एक इंटरव्यू में कहा कि वो न तो कोडिंग करना जानते थे और न ही कस्टमर से बात करते थे, उनका सब काम अमेरिका में रहने वाले उनके फ्रेंड्स ही करते थे। 1988 में Jack Ma ने चाइना इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स सेंटर में काम किया और 1999 में रिज़ाइन देकर उन्होंने खुद की ई-कॉमर्स कंपनी बनाने की सोची और अपनी पुरानी कंपनी के 17 साथियों के साथ मिलकर अलीबाबा ग्रुप नाम से कंपनी बना डाली।

यह एक B2B वेबसाइट थी जो बड़े और व्होलसेल ट्रेडर से रिटेलर को सामान प्रोवाइड करने का काम करती थी। उसके बाद अलीबाबा ने पूरे वर्ल्ड में अपना नाम बना लिया। आज अलीबाबा ग्रुप alibaba.com, Alibaba Cloud, Aliexpress, AliOS, Alipay जैसे मल्टीनेशनल कंपनीज़ को चलाते हैं। उनकी नेट वर्थ 59.8 बिलियन डॉलर है और वो दुनिया के अमीर लोगों की लिस्ट में टॉप 20 में आते हैं। ये वही इंसान है जिन्होंने इतनी रिजेक्शन के बाद भी हार को कभी एक्सेप्ट नहीं किया और अपने न्यू आईडिया के साथ दुनिया में ऐसा बिज़नेस बिल्ड किया जो दुनिया के लगभग हर देश में अपनी सर्विस प्रोवाइड करता है।

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