मूँगफली और उसके छिलके
एक दिन एक किसान ने अपने खेत की मूँगफली बादशाह अकबर को लाकर दी। शाही रसोइए ने उन्हें छिलके सहित उबाला और शाही बगीचे में बैठे वादशाह और उनकी रानी को खाने के लिए दी। रानी अकबर से दिल्लगी करना चाहती थी। वह मूँगफली छीलकर दाना रखती जाती और छिलके अकबर की ओर डालती जाती। अकबर के सेवकों ने दूर से यह देखकर सोचा कि राजा ने सारी मूँगफली खाई है और रानी ने तो कुछ खाई ही नहीं है। इसी बीच बीरबल वहाँ आया। उसने राजा-रानी का अभिवादन किया। रानी ने बीरबल को भी मूँगफली खाने के लिए कहा। बीरबल के बैठते ही रानी ने कहा, “देखो, बीरबल, बादशाह ने कितनी सारी स्वादिष्ट मूँगफलियाँ खाई हैं… देखो, छिलकों का पहाड़ बन गया है।” बीरबल ने कहा, “हाँ, मुझे पता है कि वे अत्यंत सुस्वादु हैं। महारानी जी, वे इतनी स्वादिष्ट हैं कि आपने छिलके भी खा लिए।” बीरबल के चतुरतापूर्ण उत्तर पर अकबर रानी के साथ ठहाका मारकर हँस पड़े।
बीरबल की चित्रकारी
एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा, “अपनी कल्पना से एक चित्र बनाओ। एक सप्ताह के भीतर मैं तुम्हारा चित्र देखना चाहता हूँ।” बीरबल ने अनुरोध करते हुए कहा, “महाराज! मैं एक मंत्री हूँ। मुझे चित्रकारी नहीं आती है।” अकबर अपनी बात पर दृढ़ थे उन्हें ना नहीं सुनना था। कई दिनों तक विचार करने के बाद बीरबल को एक युक्ति सूझी। एक सप्ताह के बाद बीरबल एक फ्रेम लेकर दरबार में पहुँचा। अकबर प्रसन्न हो गया कि बीरबल ने उसका आदेश मान लिया था। बीरबल ने कहा, “महाराज! आपके आदेशानुसार मैंने चित्र बना लिया है। ” चित्र देखने के लिए सभी दरबारी अकबर के आस-पास एकत्रित हो गए। पर ज्यों ही उन्होंने देखा उन्हें कुछ समझ नहीं आया। “इस चित्र में केवल आसमान या धरती ही क्यों है?” बीरबल ने कहा, “हुजूर, वहाँ एक गाय भी घास खा रही हैं।” अकबर ने कहा, “अच्छा 55… पर गाय और घास है कहाँ?” बीरबल ने उत्तर दिया, “गाय घास खाकर अपने गौशाले में चली गई है।” बीरबल के हास्यपूर्ण उत्तर पर अकबर ठहाका मारकर हँस पड़े।
शस्त्र या समझदारी
एक दिन अकबर और बीरबल किसी जंगल से होकर जा रहे थे। तभी अकबर ने पूछा, “मुसीबत में पड़ने पर तुम क्या प्रयोग करोगे? अपनी समझ या शस्त्र? बीरबल ने उत्तर दिया, “महाराज! समझ । क्योंकि वही मुझे मुसीबत से निकालेगी।” अकबर का कहना था कि मुसीबत पड़ने पर केवल शस्त्र ही रक्षा कर सकता है। दोनों में इस बात को लेकर बहस हो ही रही थी कि उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। बीरबल ने कहा, “यह एक हाथी की आवाज़ है।” ठीक तभी अकबर ने गहरी साँस ली और फुसफुसाकर बीरबल से कहा, “तुम्हारे पीछे एक हाथी है।” अकबर ने फिर कहा, “बीरबल चिंता मत करो। हाथी से आई मुसीबत से मेरी तलवार रक्षा करेगी।” “नहीं महाराज! तलवार पर्याप्त नहीं है। हमें पेड़ पर चढ़ जाना चाहिए।” अपनी तलवार लहराते समय अकबर को लगा कि छोटी-सी तलवार के सामने हाथी बहुत बड़ा है। उन्होंने बीरबल से कहा, “अच्छा होगा हम उस पेड़ पर चढ़ जाएँ।” ज्यों ही वे पेड़ पर चढ़े हाथी चुपचाप चला गया। पेड़ की चोटी पर बैठे-बैठे अकबर ने कहा, “बीरबल, तुम सही थे। किसी भी प्रकार के खतरे से बचाने के लिए शस्त्र से कहीं अच्छी समझदारी है।”