धेनुकासुर वध
एक दिन कृष्ण अपने सखाओं के साथ गाँव में खेल रहे थे तभी श्रीदमन अपने मित्रों के साथ वहाँ आया। वह कृष्ण और बलराम का परम मित्र था। उसने कृष्ण से कहा, “वृंदावन से थोड़ी दूर पर खजूर का बहुत ही सुंदर बाग है। वहाँ बहुत सारे मीठे फलों के वृक्ष हैं। उस बाग के भीतर कोई नहीं जा सकता है क्योंकि वहां धेनुका नामक असुर सपरिवार रहता है। वह किसी को भी भीतर नहीं जाने देता है। धेनुका ने एक गधे का रूप धारण कर रखा है। जो भी भीतर जाने की चेष्टा करता है वह मारा जाता है। उसने बहुतों को मार डाला है इसलिए सभी डरते हैं क्या तुम हमें उस दैत्य से बचा सकते हो?” कृष्ण ने कहा, “अवश्य श्रीमन, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। अरे मुझे तो अभी से उन पके फलों की सुगंध आ रही है। मैं भी उन्हें चखना चाहता हूँ।” कृष्ण के यह कहते ही श्रीदमन कृष्ण और बलराम को लेकर बाग की ओर चल पड़ा।
कृष्ण और बलराम श्रीदमन के साथ शीघ्र ही बाग पहुँच गए। बलराम ने बाग में घुसकर ज़ोर-ज़ोर से वृक्षों को हिला दिया। ढेर सारे पके हुए फल टपककर नीचे गिर पड़े। फलों के गिरने की आवाज़ सुनते ही धेनुकासुर भागा आया और बलराम की छाती पर अपने पिछले पैरों से ज़ोरों का बार किया। बलराम ने उछलकर स्वयं को बचाया और गधे के दोनों पिछले पैरों को पकड़कर, जोर से घुमाकर, एक बड़ से खजूर के पेड़ पर फेंक दिया। वह पेड़ से टकराया और वहीं उसका अंत हो गया। धेनुका की ऐसी हालत देखकर उसके सगे-संबंधी बाहर निकल आए। उन्होंने बलराम और कृष्ण पर हमला बोल दिया पर अंत में उनकी हार हुई। गांव वालों ने बलराम और कृष्ण का धन्यवाद किया और बाग में मीठे फलों का मज़ा लेने पहुँच गए। उन्होंने अपने मवेशियों को भी घास खाने के लिए बाग में निश्चित होकर छोड़ दिया।