Cooked Book Summary in Hindi – कुक्ड (Cooked) में हम देखेंगे कि खाने के साथ हमारा इतिहास कैसा रहा है। हम देखेंगे कि समय के साथ कैसे हमने अलग अलग तरह के खाने की खोज की और फिर उनसे मिलने वाले फायदों का इस्तेमाल कर खुद को सेहतमंद बनाया। इसके अलावा हम आज के वक्त में हमारे खान पान के तरीकों के नुकसान के बारे में भी बात करेंगे।
ये बुक माइकल पोलन (Michael Pollen) जी ने लेखी है।
Cooked Book Summary in Hindi – खाने के बारे में जानिए
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
अगर कोई एक चीज है जिसकी जरुरत इंसान को शुरुआत से लेकर अब तक महसूस होती आई है तो वह है खाना। हमारे पूर्वज खाने की तलाश हर वक्त करते रहते थे और हम भी आज अलग अलग तरह के खानों के शौकीन हैं। हमारी यह आदत समय के साथ नहीं बदली लेकिन खाने को जिस तरह से हम खाते हैं वो तरीका जरूर बदल गया है।
इस किताब में हम इन्हीं बदलते तरीके के बारे में बात करेंगे। हम यह जानेंगे कि किस तरह से हम पुराने वक्त से ही खाने को अलग अलग तरह से बनाते और खाते आ रहे हैं और साथ ही यह भी देखेंगे कि आज के इस मशीनी युग में हमारे खान पान में क्या अंतर आए हैं और उसके क्या फायदे या नुकसान है।
खाने को पका कर खाने के बहुत से फायदे हैं।
क्या आप ने सोचा है कि इंसान ही वो जानवर क्यों हैं जो अपने खाने को पका कर खाते हैं? क्या आपको पता है कि अगर हम अपने खाने को कच्चा खाएं तो हमारी रोज की जिन्दगी कैसी होती? आइए इस पर एक नजर डालें।
खाने को पका देने से हम उसे आसानी से चबा कर हज़म कर पाते हैं। अगर हम उसे कच्चा खाएँ तो हमें उसे चबाने में बहुत वक़्त लग जाएगा और साथ ही हम उसे अच्छे से हज़म भी नहीं कर पाएंगे। कभी मीट को कच्चा खाने की कोशिश कीजिए और देखिए कि उसे चबाने में आपको कितना समय लगता है।
इसके बाद पके हुए खाने को हज़म करना आसान होता है। अगर एक अंडे को उबाल कर खाया जाए तो हम उसका 90% भाग पचा लेते हैं, लेकिन अगर कच्चा खाएँ, तो सिर्फ 65% कच्चे खाने को हज़म करने के लिए या तो हमें अपनी आँत को और लम्बा बनाना होगा या फिर उसे पचाने में ज्यादा समय लगाना होगा। गाय या भैंस कच्ची घास को हज़म लेते हैं क्योंकि उनकी आँत बहुत लम्बी होती है। लेकिन अगर हम उस खाने को पचाने की कोशिश करें, तो खाने के जितने वक्त के बाद हमें काम करने की एनर्जी मिलेगी, उतने वक्त में हम थक कर गिर जाएंगे।
खाने को पकाने से उसके प्रोटीन टूटने लगते हैं जिन्हें हम आसानी से पचा लेते हैं। इसके अलावा पकाया हुआ खाना खाने में अच्छा लगता है।
कुछ चीजें ऐसी है जिन्हें अगर कच्चा खाया जाए तो वे नुकसानदायक हो लेकिन पका कर खाने पर वे फायदेमंद हैं। साथ ही खाने को पका कर रखने से हम उसे लम्बे समय तक स्टोर कर सकते हैं।
हम पाँच किस्म के स्वाद का अनुभव कर पाते हैं।
अगर आप कभी खुद से सवाल कीजिए कि स्वाद कितने तरह के होते हैं तो आपको जवाब में सिर्फ चार नाम मिलेंगे तीखा, मीठा, कड़वा और खट्टा। आपकी जानकारी के लिए, एक पाँचवा स्वाद भी होता है जिसे हम उमामी कहते हैं। आइए इसके बारे में जानते हैं।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में किकून इकरा नाम के केमिस्ट कोम्बु को समझने की कोशिश कर रहे थे कोम्बू का इस्तेमाल जापान के लोग सूप बनाने के लिए और दूसरे तरह की चीजें बनाने के लिए किया करते थे।
जब वे इस बारे में जानने की कोशिश करते रहे तो उन्होंने ग्लूटामेट नाम की एक चीज की खोज की। इस ग्लूटामेट का स्वाद कुछ अलग था जिसे इन्होंने उमामी का नाम दिया।
समय के साथ साइंटिस्टों ने पाया कि हमारी जीभ पर उमामी स्वाद को महसूस करने के लिए कुछ खास बड्स होती हैं। साथ ही उन्होंने यह देखा कि जब ग्लूटामेट को अकेले खाया जाता है तो इसके कोई स्वाद नहीं आता। जब हम इसे दूसरे फ्लेवर्स के साथ मिला कर खाते हैं तब इसका स्वाद आता है। दो चीजें जो इसके स्वाद पर असर डालती हैं वो हैं – इनोसीन और गुआनोसीन। इनोसीन मछली में पाया जाता है और गुआनोसीन मशरुम में। यही वजह है कि जब आप मछली का या मशरुम का सूप पीते हैं तो आपको वह थोड़ा मोटा लगता है।
जापान के लोग ऐसा सूप बनाते हैं जिसमें इन तीनों को मिलाया जाता है जिसका स्वाद लाजवाब होता है।
पैकेट के बने बनाए खाने हमारे लिए कम लेकिन कंपनियों के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद हैं।
जब युद्ध होने लगते थे, तो सैनिकों के लिए खाना ले जाने में बहुत समस्या होने लगती थी। इसलिए एक ऐसा तरीका खोज कर निकाला गया कि जिससे वे खाने को आसानी से लेकर जा सकें और आसानी से पका कर या बिना पकाए खा सकते हैं। यहाँ से जन्म हुआ पैकेट के खानों का जिनसे आज पूरा सुपरमार्केट भरा हुआ है।
पैकेट के खाने को बनाना बहुत आसान होता है। इसे आसानी से सप्लाई कर के बहुत लम्बे समय तक बिना खराब हुए स्टोर किया जा सकता है। एक किसान को ताजा फसल उगाने में बहुत समय लगता है और वो कम समय में ही सड़ने लगता है। यही वजह है कि कंपनियाँ पैकेट के खानों पर जोर दे रही हैं जिससे वे हमारी सेहत का सौदा कर रहे हैं। क्योंकि इन्हें पकाना नहीं होता और आसानी से खाया जा सकता है, लोग इसे खाना पसंद करते हैं। इसलिए इन्हें फास्ट फूड कहा जाता है क्योंकि इसे जल्दी से खाया जा सकता है।
लेकिन जरा अपने आस पास नजर घुमा कर देखिए और खुद बताइए कि आपको कितने लोग सेहतमंद दिख रहे हैं, कितने लोग मोटापे के शिकार हैं तब आपको पता लगेगा कि यह चिंता की बात क्यों है।
2003 की एक स्टडी में यह पाया गया कि किसी देश के लोग किचन में खाना पकाते वक्त कितना समय बिताते हैं वो यह दिखाता है कि वहाँ के लोग कितने सेहतमंद हैं। वे खाने को पकाने में जितना समय बिताते हैं उतने कम मोटे होते हैं।
ब्रेड की खोज इंसान और खाने के बीच के संबंध को आगे लेकर गई है।
ब्रेड आज बहुत से देशों का रोज का खाना हो गया है। आज कर हम उसे हर चीज के साथ खा सकते हैं। लेकिन क्या आपको पता है इसकी खोज कैसे हुई? आइए शुरुआत से शुरु करते हैं।
पहले जब हम अपने खाने को पका नहीं पाते थे तो हम उसे बीज को कच्चा खाया करते थे। जब हमारी जनसंख्या बढ़ने लगी तब हम अपना पेट पालने के लिए उस बीज की खेती करने लगे।
लगभग 4000 बीसी में जब एक कटोरे बीज को धूप में कुछ वक्त के लिए गलती से रख दिया गया। तो देखा गया कि उसमें से बुलबुले निकलने लगे। यह यीस्ट की वजह से हो रहा था जो कि उसमें फर्मेंटेशन कर रहे थे। यही वो प्राकृतिक तरीका है जिससे ब्रेड बनाया जाता है। फिर एक व्यक्ति ने उसे पका दिया और हमें हमारा पहला ब्रेड मिला।
अब आइए हम ब्रेड खाने के फायदों के बारे में जानें। सबसे पहले तो यह कि ब्रेड जिन चीज़ों से बनाया जाता है अगर हम उन्हें अलग अलग कर के खाएँ तो हमें उतनी एनर्जी नहीं मिलेगी जितनी ब्रेड खाने से मिलती है। फर्मेंटेशन की वजह से उसके प्रोटीन टूट जाते हैं और जब उसका ब्रेड बनाकर खाया जाता है तो उस प्रोटीन को हम अच्छे से हज़म कर इसका इस्तेमाल कर पाते हैं।
इसके अलावा जब हम किसी जानवर का मीट खाते हैं तो उसके अंदर की सिर्फ 10% एनर्जी हमें मिलती है बाकी 90% एनर्जी को वह जानवर अपने काम के लिए इस्तेमाल कर लेता है। लेकिन जब हम ब्रेड खाते हैं तो हम उस पूरी एनर्जी को हासिल कर पाते हैं।
पौधे धूप से फोटोसिंथेसिस कर के खाना बनाते हैं और उन पौधों को जानवर खाया करते हैं। जब हम बदले में इन जानवरों को खाते हैं तो हमें पौधों की पूरी एनर्जी नहीं मिल पाती क्योंकि जानवर उस में से बहुत सारी एनर्जी इस्तेमाल कर चुका होता है। इस तरह से शाकाहारी होना फायदेमंद हो सकता है।
आज के वक्त का ब्रेड फायदेमंद नहीं रहा।
आज के वक्त में लोगों का ध्यान दिखावे पर ज्यादा जाता है। हम खाने को भी आकर्षक बनाने के लिए उसे साफ करने में लगे रहते हैं जिसकी वजह से हम उसमें छुपी फायदेमंद चीज़ों को भी साफ कर देते हैं। आज के वक्त में सफेद आटा खाना फायदेमंद बिल्कुल नहीं रहा।
पहले सफेद रंग सफाई की निशानी था। लोगों का मानना था कि अगर किसी चीज़ का रंग सफेद है तो वह बहुत साफ सुथरी और फायदेमंद होगी। इस वजह से वे ब्रेड को साफ कर कर के रंग पूरा सफेद कर दिया करते थे। जब लोग इस तरह के ब्रेड को खाने लगे तो कम उम्र में उनके दाँत टूटने लगे और वे डाइबिटीज़ के शिकारी होने लगे।
जब हम ब्रेड या आटे को साफ करने लगते हैं तो हम उसके छिलके और उसे रंगीन भाग को अलग कर देते हैं। जब इन चीजों को बाहर निकाल दिया जाता है तो उसमें सिर्फ स्टार्च बच जाता है जो कि खाने में मीठा लगता है। इस ब्रेड को खाने पर हमें डाइबिटीज़ हो जाती है।
पहले के वक्त में ब्रेड बहुत कीमती हुआ करता था। आज बड़ी बड़ी मशीनों की मदद से हम इसे भारी मात्रा में बना लेते हैं जिसकी वजह से यह सस्ता हो गया है। लेकिन यह फायदेमंद नहीं हुआ क्योंकि जिस रंगीन भाग को हम निकाल फेकते हैं उसमें बहुत से विटामिन, मिनरल और एंटीआक्सिडेंट होते हैं। लेकिन हम उसे सफेद और स्वादिष्ट बनाने के चक्कर में और बेकार कर देते हैं।
जब इन बातों का पता लगा तब सरकार ने कंपनियों से माँग की और कहा कि वे उसमें फायदेमंद चीजें मिलाएँ। तब कंपनियाँ विटामिन बी ब्रेड में मिला कर उसे बेचने लगी। लेकिन फिर भी यह उतना फायदेमंद नहीं होता जितना इसे होना चाहिए। इसके अलावा उसका स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें बहुत सी दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं जो कि फायदेमंद नहीं हैं।
हमारी आँत के बैक्टीरिया खाना पचाने में हमारी बहुत मदद करते हैं।
क्या आपको पता है कि आपके अंदर तरह तरह के बैक्टीरियाज़ हैं जो कि वो काम करते हैं जिनका आपको अंदाज़ा भी नहीं। हमारे अंदर अलग अलग तरह के माइक्रोब्स होते हैं जो अलग अलग तरह के काम करते हैं।
माइक्रोब्स का काम होता है हमारे खाने को पचाने में हमारी मदद करना ताकि हम उनसे एनर्जी हासिल सकें। इसके अलावा हमने पहले ही देखा कि किस तरह से यह माइक्रोब्स फर्मेंटेशन कर ब्रेड बनाने में हमारी मदद करते हैं। ब्रेड के अलावा केक या दूसरी खाने की चीज़ें भी फर्मेंटेशन से बनाई जा सकती हैं।
इन माइक्रोब्स के बगैर आप कुछ भी नहीं हैं। लेकिन आज कि लाइफस्टाइल इनके लिए बहुत नुकसानदेह साबित हो रही है। लोग जिस तरह से बीमार पड़ने पर तरह तरह की एंटी-बैक्टीरियल दवाइयाँ खा रहे हैं और खुद को बीमार होने से बचाने के लिए एंटी-बायोटिक्स खा रहे हैं, उससे हमारे जिस्म के नुकसानदेह बैक्टीरिया के साथ साथ फायदेमंद बैक्टीरिया भी मर रहे हैं जिससे हमारी सेहत खराब होती जा रही है।
जिस अचार को आप बाजार से खरीदते हैं वो कंपनी में बनाया गया होता है। उसका स्वाद बिल्कुल अचार जैसा ही आता होगा लेकिन वह अचार की शक्ल में जहर है। अचार भी फर्मेंटेशन से बनता है और जब हम वो अचार खाते हैं जिसका फर्मेंटेशन प्राकृतिक रुप से होता है तो उससे हमारी सेहत सुधरती है।
शराब पीना सिर्फ इंसानों की ही नहीं, जानवरों को भी बहुत पसंद है।
इस आखिरी सबक में हम बहुत दिलचस्प चीज़ के बारे में बात करने वाले हैं। बहुत से जानवार होते हैं जो अलग अलग तरह से शराब पीते हैं और साथ ही उनकी इससे संबंधित अलग अलग आदत भी होती है। शायद सबसे पहला सवाल आपके दिमाग में यह आ रहा होगा कि उन्हें शराब मिलती कहाँ से है? आइए जानते हैं।
शराब असल में एल्कोहोल होता है जो कि फलों या फूलों के फर्मेंटेशन से बनता है। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि चाइना के कुछ बंदर फल को कुछ समय के लिए कहीं रख देते हैं और जब उसमें फर्मेंटेशन होने लगता है तो वे उसे खाते हैं। उन्हें ऐसे अपने फल खाने में मजा आता है।
बहुत से फूल हैं जैसे मलेशिया का बाम पाम, जो कि अपने फूलों में फर्मेंटेशन होने देते हैं। इन फूलों को एक श्रिउ नाम का जानवार खाता है जो कि अनजाने में उन फूलों के बीज को दूसरी जगह पर ले जाता है।
इसके अलावा चिंटू नाम के जानवर को शराब से इतना लगाव होता है कि अगर आप उसे शराब की दुकान में छोड़ देंगे तो जब तक वह पी सकेगा तब तक पीता रहेगा। साथ ही चूहे भी अपने साथियों के साथ मिलकर हर रात को सोने से पहले शराब पीना पसंद करते हैं।
बहुत से जानवर हैं जो कि सबके साथ मिलकर पीना पसंद करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि अकेले पीने पर उन्हें शिकारियों का खतरा रहता है।
बहुत सी जगहों पर बहुत से लोग अलग अलग तरह से फर्मेंटेशन का इस्तेमाल करते हैं और अलग अलग तरह के खाने बनाते हैं। वहाँ पर रहने वाले लोगों को वह बहुत पसंद आता है लेकिन जब कोई व्यक्ति बाहर से वहाँ पर रहने आता है तो उसे उसकी खुशबू अकसर पसंद नहीं आती। इस तरह के खानों में कोरियन किमची और फ्रेंच पनीर शामिल हैं।
Conclusion –
खाने को पका कर खाने से हमें उसे कम चबाना पड़ता है और साथ ही उसे हम आसानी से हज़म कर पाते हैं। इससे हम खाने के अंदर छुपी एनर्जी को पूरी तरह से हासिल कर पाते हैं। लेकिन आज खाने को खाने से हमें फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है। मार्केट उन खानों से भरा हुआ है जिन्हें आसानी से खाया या बेचा जा सकता है। इस तरह के खाने खाने से हमारी सेहत खराब होती जा रही है।
क्या करें
अपने घर पर फर्मेंटेशन वाले खाने बनाइए।
कभी खुद अचार या फिर ब्रेड बनाने की कोशिश कीजिए। आप शहद भी बना सकते हैं या फिर कुछ भी ऐसा जो आपको अच्छा लगे। जब आप प्राकृतिक रूप से इसे बना कर खाएंगे तो इसका फायदा और स्वाद दोनों ही बेहतरीन होगा।
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आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.