Karma Yoga Book Summary in Hindi – Hello दोस्तों, क्या आप अपने काम में थकान महसूस करते हैं या आपको अपना काम करने की इच्छा ही नहीं होती ? क्या आपको लगता है कि आपके काम की तारीफ नहीं की जाती? क्या आपको लगता है कि आप ज्यादा पहचान पाने के हकदार हैं? इन सारे सवालों का जवाब आपको इस दूसरे पार्ट में मिलेंगे।
दोस्तों अगर आपने इसके पहला पार्ट नहीं पढ़ा है तो उसको भी पढ़ लीजिये –
Karma Yoga Book Summary in Hindi (PART – 2)
व्हॉट इज़ ड्यूटी (What is Duty)
एक बार एक सन्यासी था जो जंगल के बीचोंबीच रहता था. वो अपना पूरा दिन ध्यान लगाने में और योग करने में बिताता था. एक दिन, वो पेड़ के नीचे आराम कर रहा था. अचानक से सूखी पत्तियाँ उसके ऊपर गिरने लगी. उसने ऊपर देखा. पेड़ पर एक कौआ और सारस (क्रेन) बैठे लड़ रहे थे. वो हर जगह सूखी पत्तियाँ फैला रहे थे. उस सन्यासी को गुस्सा आ गया. उसने चिलाकर कहा “मुझ पर पत्ते फेकने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई”?
उसने गुस्से से उन दोनों को देखा. उस सन्यासी की हैरानी का ठिकाना नहीं था जब उसने देखा कि वो सारस और कौआ जल कर राख हो गए थे. वो अपनी शक्ति देख कर बहुत खुश हुआ.
फिर उसके जंगल छोड़ने का वक़्त आया. वो शहर में भिक्षा मांगने चला गया. उसने एक दरवाज़ा खटखटाया और कहा “माँ, मुझे खाने के लिए कुछ दीजिये”. उस औरत ने कहा “बेटा, एक मिनट रुको”. उस सन्यासी ने सोचा “इसकी इतनी हिम्मत कि इसने मुझे इंतज़ार करने को कहा. इसे पता नहीं है मेरे पास कितनी शक्ति है.”
सन्यासी ने इसे अपने मन में कहा था. फिर उस औरत ने कहा “खुद के ऊपर इतना घमंड मत करो, मैं वो कौआ या सारस नहीं हूँ”.
उस सन्यासी ने कुछ देर और इंतज़ार किया. जब वो औरत बाहर आई तो उसने पूछा “माँ, आपको उस जंगल में रहने वाले कौवे और साराश के बारे में कैसे पता चला”?
उसने जवाब दिया, “बेटा, तुम जो योग साधना करते हो मुझे उसका कोई ज्ञान नहीं है. मैं एक सीधी साधी हाउस वाइफ हूँ. मैंने तुम्हें इंतज़ार करने के लिए इसलिए कहा क्योंकि मैं अपने बीमार पति की सेवा कर रही हूँ”.
उसने बताया कि उसने पूरी ज़िन्दगी अपनी हर ड्यूटी को ठीक से करने की कोशिश की है. जब वो छोटी थी तो उसने अपने माता पिता की सेवा की. जब शादी हुई तो अपने पति की सेवा की. उसके लिए तो यही योग था.
इन्ही चीज़ों से उसे ज्ञान मिला था. इसलिए वो सन्यासी के मन की बात पढ़ पाई. वो जानती थी कि सन्यासी ने जंगल में क्या किया था. उसने सन्यासी को अगले शहर जाने के लिए कहा. वहाँ एक कसाई (butcher) था जिससे सन्यासी बहुत कुछ सीख सकता था.
सन्यासी ने सोचा “वो कसाई मुझे क्या सिखा सकता है”? फिर भी वो उस शहर की ओर चला गया. वो वहां के मार्केट में पहुंचा. वहाँ उसे एक मोटा कसाई दिखाई दिया. वो मांस को काट कर अपने कस्टमर को दे रहा था. सन्यासी ने सोचा “हे भगवान् मेरी मदद करना. मैं एक कसाई से बात करने जा रहा हूँ. वो तो पक्का एक शैतान का अवतार होगा”.
जब कसाई ने सन्यासी को वहाँ खड़ा देखा तो पूछा “क्या आप वही हैं जिसे उस औरत ने भेजा है? प्लीज थोडा इंतज़ार कीजिये. मुझे अपने कस्टमर का पहले ध्यान रखना है”.
जब कसाई का काम पूरा हो गया तो उसने पैसे उठाए और सन्यासी को पीछे आने के लिए कहा. वो कसाई के घर पहुंचे. कसाई ने उसे फिर इंतज़ार करने के लिए कहा.
घर पर, कसाई ने अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा की. उन्हें नहलाया, साफ़ कपडे पहनाए. उनके लिए खाना बनाया फिर उन्हें खिलाया. उसने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि उन्हें ज़रा भी तकलीफ ना हो. उसके बाद उसने सन्यासी से बात की. उसने पूछा “स्वामीजी, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ”? सन्यासी ने कसाई से भगवान् और आत्मा के बारे में कुछ सवाल पूछे.
उसने जवाब महाभारत के व्याध गीता से दिया. सन्यासी को बहुत आश्चर्य हुआ. ऐसा लग रहा था मानो कसाई बहुत ज्ञानी था, वो बहुत बुद्धिमान था. सन्यासी ने पूछा, “सर, आप इस शरीर में क्यों हैं”? आपके पास इतना अपार ज्ञान है फिर भी आप इतना गन्दा काम करते हैं”? कसाई ने कहा, “बेटा, सच तो ये है कि कोई भी काम गन्दा, छोटा या बुरा नहीं होता. मैं इसी परिस्तिथि में पैदा हुआ हूँ. मैं जब बच्चा था तब बहुत जल्दी कसाई का काम सीख गया था. मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अपनी ड्यूटी को ठीक से पूरा कर पाऊं”.
कसाई अपने घर की सारी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाता था. वो अपने माँ बाप का बहुत ख़याल रखता था. वो सन्यासी नहीं था, ना उसने दुनिया छोड़ कर जंगल में योग साधना की थी . फिर भी, कसाई को अपनी ड्यूटी का पूरा एहसास था और उसे पूरा करने के लिए उससे जो हो सकता था वो करता था. इससे हमें ये सबक सीखने को मिलता है कि अपने काम को पूजा की तरह ट्रीट करना चाहिए. उस पर पूरा ध्यान लगाना चाहिए. बस अपना काम करते रहिये, किसी और चीज़ के बारे में मत सोचिये. उस काम को करने से मिलने वाले फल के बारे में मत सोचिये. मुश्किलों के बारे में या उसके रिजल्ट के बारे में भी मत सोचिये.
कहानी में, उस औरत ने और कसाई ने अपने हर कर्म को पूरे दिल से निभाया. और इसी से उन्हें ज्ञान मिला. जो वर्कर अपने काम के रिजल्ट के बारे में सोचता है, जिसे फल से ज्यादा लगाव होता है वो अपनी ड्यूटी के लिए हमेशा शिकायत ही करता रहता है. वो कभी खुश नहीं होता क्योंकि उसे तो बस एक पहचान की तलाश रहती है.
लेकिन जिन्हें रिजल्ट से लगाव नहीं होता, उनके लिए उनका काम ही ख़ुशी का कारण बन जाता है. अपने दिए गए ड्यूटी को वो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करता है और उसे पूरे दिल से निभाता है. वो शान्ति और सुकून से जीता है क्योंकि उसने अपनी ड्यूटी को गले लागाया और पूरी तरह निभाया.
वी हेल्प आर्सेल्व्ज़, नोट द वर्ल्ड (We Help Ourselves, Not the World)
एक बार एक गरीब आदमी था जिसे बहुत धन दौलत पाने की इच्छा थी. कहीं से उसने सुन लिया कि भूत को पकड़ लेना चाहिए. फिर वो उस भूत से बहुत सारा धन और जो भी चीज़ उसे पसंद है मांग सकता है.
इसलिए उसने एक साधु से मदद मांगी. साधु ने उसे इन बेकार की बातों पर ध्यान नहीं देने की सलाह दी और उसे वापस अपने घर जाने के लिए कहा. लेकिन वो आदमी ज़िद करने लगा. वो कहने लगा “बाबा, मुझे सच में एक भूत की ज़रुरत है, प्लीज मेरी मदद कीजिये”.
साधु नाराज़ हो गए. लेकिन फिर उन्होंने उसे एक ताबीज़ दिया और कहा “इस ताबीज़ को पकड़ कर ये जादुई मंत्र पढना. तुम्हारे सामने एक भूत आ जाएगा. वो तुम्हारी हर बात का पालन करेगा.”
“लेकिन याद रखना, भूत खतरनाक होते हैं. उसे हमेशा किसी काम में बिजी रखना. उसे कुछ ना कुछ काम देते रहना. अगर तुम फेल हुए तो भूत तुम्हारी जान ले लेगा”.
उस गरीब आदमी ने कहा “ये तो बड़ा आसान है. मेरे पास उसे देने के लिए बहुत से काम हैं. मैं फेल नहीं होने वाला.”
वो आदमी घने जंगल के अन्दर चला गया. उस ताबीज़ को पकड़ कर उसने जादुई मंत्र पढ़ा. और अचानक उसे हवा में तैरता हुआ एक विशाल भूत दिखाई दिया. भूत ने कहा “तुमने मुझे अपने जादू से पकड़ लिया है, अब तुम्हें मुझे बिजी रखना होगा नहीं तो मैं तुम्हारी जान ले लँगा”.
उस गरीब आदमी ने कहा “मेरे लिए एक महल बनाओ”. एक सेकंड के अन्दर वहाँ महल तैयार हो गया. भूत ने कहा “ये काम पूरा हो गया है”. “मुझ पर पैसों और गहनों की बारिश करो”. पलक झपकते ही उस आदमी के चारों तरफ सोने, चांदी और हीरे जवाहरात का ढेर लग गया. “हो गया”, भूत ने कहा.
“इस जंगल को ज़मीन पर ले आओ और इसके ऊपर एक शहर बनाओ”. बस कुछ ही पलों में उसके सामने पूरा शहर तैयार था. “हो गया”, भूत ने कहा. “क्या और भी कुछ बाकी है”?, उसने पूछा.
अब वो आदमी डर गया. वो भूत से और क्या मांगे उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. “मुझे करने के लिए कोई काम दो नहीं तो मैं तुम्हें खा जाउंगा”. अब उस आदमी की हालत पतली हो गई. वो जितना तेज़ हो सकता था भागने लगा. वो तब तक नहीं रुका जब तक उसे वो साधु नहीं मिल गए. “बाबा, प्लीज मुझे बचाइए”.
उसने साधु को बताया कि उसके पास भूत को देने के लिए अब कोई काम नहीं है और अब वो उसे मार डालेगा. भूत भी वहाँ पहुँच गया. वो आदमी साधु के पीछे छुप गया. “मैं तुम्हें खा जाऊंगा”, भूत बस यही कहता जा रहा था.
आखिर साधु ने आदमी से कहा “ध्यान से सुनो. एक ऐसे कुत्ते की तलाश करो जिसकी पूँछ में घुंघराले बाल हों और वो मुड़ी हुई हो. फिर अपनी तलवार से उसकी पूँछ काट लेना और भूत से कहना कि उसे सीधा करके दे.”
उस आदमी ने बिलकुल वैसा ही किया. भूत बार बार कोशिश की लेकिन पूंछ वापस मुड़ जाती थी. इसमें कई दिन गुज़र गए लेकिन भूत उसे सीधा नहीं कर पाया.
अंत में, भूत बुरी तरह थक गया. उसने कहा “मुझे आज तक किसी काम में इतनी समस्या नहीं हुई. चलो मैं तुम्हारे साथ एक समझौता करता हूँ. अगर तुमने मुझे अभी आज़ाद कर दिया तो जितना भी पैसा मैंने तुम्हें दिया है तुम वो सब रख सकते हो और मैं तुम्हें कभी नुक्सान नहीं पहुंचाने का भी वादा करता हूँ”. इस डील से वो आदमी बहुत खुश हुआ और उसने भूत को जाने दिया.
जिस दुनिया में हम रहते हैं वो बिलकुल कुत्ते की पूँछ जैसी है, टेढ़ी. न जाने कितने महान लोगों ने इसे सीधा करने की कोशिश की है. लेकिन जब वो अपनी पकड़ ढीली कर देते हैं तो ये दुनिया फिर से पूँछ की तरह टेढ़ी हो जाती है.
इसलिए सबसे अच्छा होता है इस दुनिया के पाप, बुरे कर्मों और गलतियों का असर खुद पर नहीं होने देना. आप उसे कण्ट्रोल नहीं कर सकते तो बस उसे रहने दीजिये. इसके बजाय उन चीज़ों पर ध्यान दीजिये जिन्हें आप कण्ट्रोल कर सकते हैं. अपने काम को और खुद को पहले से भी बेहतर बनाने पर ध्यान दीजिये.
प्यार करना, शांत रहना और सही का साथ देना जैसी आदतों को अपनाने की कोशिश कीजिये. जितना हो सके उतने ज्यादा लोगों की सेवा कीजिये. ये दुनिया तभी भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी लेकिन खुद को सीधा करना भी एक बहुत महान कर्म है.
Conclusion – Karma Yoga
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं या आप क्या करते हैं, आप भी महान बन सकते हैं. इसके लिए आपको साधु बनने की ज़रुरत नहीं है. आप घर परिवार वाले हों या मजदूरी करने वाले, आपको भी ज्ञान मिल सकता है.
सबसे ज्यादा ज़रूरी ये है कि आप पूरे दिल से और सच्ची भावना से सेवा करें. बस काम को अपना काम समझ कर करो, उसे बोझ मत समझो. आपको इस बात का संतोष होगा कि आपके दिए हुए रोल को आपने बखूबी निभाया.
जब आप काम बदले में कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते सिर्फ तब आप सच्ची ख़ुशी को महसूस कर पाएँगे. आपको शान्ति औत सुकून का एहसास होगा, आप बिलकुल आज़ाद हो जाएँगे क्योंकि कर्म ही सच्ची पूजा है.
आपको आज का यह कर्म योग बुक समरी कैसा लगा ?
अगर आपके मन में कुछ भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.
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