सुनहरी विष्ठा
जंगल में घूमते हुए एक शिकारी ने एक पक्षी को देखा। उसकी विष्ठा धरती पर गिरते ही स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती थी। वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ। जाल बिछाकर उसने पक्षी को पकड़ लिया। पर फिर उसे लगा कि इस पक्षी के कारण वह किसी मुसीबत में पड़ सकता है। इसे राजा को देने में ही भलाई है। ऐसा विचारकर, पुरस्कार की आशा में उसने उस पक्षी को राजा को दे दिया। राजा पक्षी को पाकर अति प्रसन्न हुआ। राजा के मंत्री को शिकारी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा कि पुरस्कार के लोभ में शिकारी राजा को मूर्ख बना रहा था। उसने कहा कि यह तो एक साधारण चिड़िया है। राजा ने मंत्री की बात पर विश्वास कर पक्षी को उड़ा दिया। उड़ते समय उसने विष्ठा कर दी। उसे स्वर्ण बना देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए।
सीख: आँख मूँद कर किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए।
चूहे का विवाह
एक ऋषि तपस्या कर रहे थे। तभी कहीं से एक चूहे का बच्चा उनकी अंजली में आ गया। वह ऋषि से दया की याचना करने लगा। दया कर ऋषि ने उसे एक सुंदर कन्या में बदल दिया। निःसंतान होने के कारण उनकी पत्नी ने उसे अपनी पुत्री की भांति पालना प्रारम्भ कर दिया। उसके बड़े होने पर ऋषि दंपति ने उसका विवाह करना चाहा। उन्होंने उसे सूर्य देव से विवाह करने के लिए कहा पर उसने मना कर दिया। उसने वायुदेव, मेघदेव और पर्वतदेव का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। ऋषि ने पर्वतदेव से पूछा कि उनसे अधिक शक्तिशाली कौन है? पर्वतदेव ने चूहे का नाम लिया जो पर्वत में भी छिद्र बना देता है। ऋषि ने चूहों के राजा को विवाह का निमंत्रण भेजा। चूहों के राजा ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। कन्या अत्यंत प्रसन्न हो गई। ऋषि ने उसे पुन: चूहा बनाकर उसका विवाह कर दिया।
सीख: अपने जन्म के संस्कारों को भूला नहीं जा सकता।
पेट में सर्प
एक राजकुमार पेट में सर्प घुस जाने के कारण सदा बीमार रहता था। वह अपनी पत्नी राजकुमारी के साथ एक मंदिर में रहने लगा। एक दिन राजकुमारी तालाब पर स्नान करने गई । लौटते समय उसने राजकुमार को एक बांबी पर सिर रखकर सोए देखा। उसके पेट का सर्प बाहर निकल आया था और बांबी में रहने वाले सर्प के साथ तर्क कर रहा था। बांबी वाले सर्प ने राजकुमार की बीमारी के लिए पेट वाले सर्प को दोषी ठहराया तो पेट वाले सर्प ने बांबी में धन छुपा होने का राज जानने की बात बताई। दोनों ने एक दूसरे को नष्ट करने का उपाय भी बताया जिसे राजकुमारी ने सुन लिया। उसने सरसों का पानी राजकुमार को पिलाया और गर्म पानी बांबी में डाला। दोनों सर्प मर गए। बांबी से खजाना निकालकर दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
सीख: आपसी लड़ाई से तीसरे को लाभ मिलता है।
साहसी हिरण
किसी सुंदर जंगल में, एक हिरणी ने एक बच्चे को जन्म दिया। उसका नाम बांबी था। सभी अत्यंत प्रसन्न मन से बच्चे को देखने गए। बांबी बहुत ही प्यारा बच्चा था। उसका व्यवहार मित्रवत् था और वह सबके साथ मिलकर खेला करता था। थोड़ा बड़े होते ही बांबी ने अपने पिता से सारे दाँव-पेंच सीख लिए और अपने दल का नेता बन गया। वह सदा सबका ख्याल रखता था। एक दिन चरते समय उसने एक बूढ़े हिरण की आवाज सुनी, “भागो, मानव आ गया!” वह छोटे जानवरों को भागने में सहायता कर रहा था तभी एक तीर आकर बांबी के घुटने में लगा। वह दर्द से कराह उठा। तुरंत सभी जानवरों ने मिलकर उसे सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। उसके ठीक होने तक सबने उसकी सेवा भी की। बांबी के साहस की सबने सराहना करते हुए कहा, “तुम सदा हमारे नेता रहोगे।”
सीख: उदाहरण से ही नेता सबका प्यार पाता है।
टोपीवाला और बंदर
एक बार एक टोपीवाला अपनी टोपियों को बेचने के लिए शहर जा रहा था। उसके पास रंग-बिरंगी टोपियों थीं। उसे एक जंगल से होकर गुजरना पड़ता था। रास्ता लंबा था। उसे थकान महसूस हुई। एक बड़े पेड़ की छाँव में वह विश्राम करने बैठा तो उसकी आँख लग गई। पेड़ पर बैठे बंदर टोपी वाले की टोपी की ओर आकर्षित हो गए। बंदरों का नेता नीचे आया, गठरी खोली और एक टोपी निकालकर उसने भी टोपीवाले की तरह पहन ली। उत्सुकतावश पेड़ पर बैठे सभी बंदरों ने नीचे रखी रंग-बिरंगी टोपियाँ उठाकर पहन लीं। नींद खुलने पर टोपीवाले ने अपनी टोपियों को गायब देखा तो हैरान रह गया। इधर-उधर देखने पर उसे पेड़ पर बैठे बंदर टोपी पहने दिखाई दिए। उसे एक युक्ति सूझी। उसने अपनी टोपी उतारकर बंदरों की ओर फेंकी। बंदरों ने भी उसकी देखा-देखी अपनी टोपी उतारकर नीचे फेंक दी। टोपीवाले ने टोपियाँ समेटीं और आगे बढ़ गया।
सीख: बुद्धिमता मनुष्य की अमूल्य निधि है।
लोमड़ी और अंगूर
एक दिन एक लोमड़ी भोजन की खोज में जंगल में घूम रही थी। भूख के मारे उसका हाल बेहाल था। दिन भर घूमते-घूमते उसे अंगूर का एक बाग दिखाई दिया। लोमड़ी खुश हो गई। पुष्ट, पके और रसभरे अंगूरों के गुच्छे लटके देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। अंगूरों के गुच्छे देखने में बड़े स्वादिष्ट लग रहे थे पर थे जरा ऊँचे। लोमड़ी ने उछलकर उसे तोड़ना चाहा पर तोड़ न सकी। उसने फिर से प्रयत्न किया पर असफल रही। कई बार प्रयत्न करने के बाद भी वह अंगूर तक नहीं पहुँच सकी। हारकर वह निराश हो गई। लोमड़ी ने अपने आपको समझाते हुए कहा, “ये अंगूर देखने में तो बड़े स्वादिष्ट हैं पर ये खट्टे हैं” ऐसा कहते हुए वह चली गई।
सीख: वस्तु को पाने में असफल होने पर उसे बुरा कहना सरल है।