ग्वालिन और दूध
दूर किसी गाँव में एक ग्वालिन रहती थी। उनके पास एक गाय थी। एक दिन उस ग्वालिन की गाय ने ढेर सारा दूध दिया। ग्वालिन दिन भर का अपना सारा काम समाप्त करके, अपने सिर पर दूध से भरी बाल्टी लिए हुए अपने खेत से वापस घर आ रही थी। दूध की बाल्टी उसने अपने सिर पर ही उठा रखी थी। अब रास्ते में दूध बेचकर मिलने वाले पैसे का वह हिसाब लगाने लगी। कल्पना की उड़ान एक बार जो शुरु हुई तो वह उड़ती ही चली गई।
रास्ते में उसने सोचा, “दूध से मैं मक्खन निकालूंगी; मक्खन बेचकर अंडे खरीदूंगी। अंडों से मुर्गियों के बच्चे होंगे फिर उन्हें बेचकर एक सुंदर पोशाक और टोपी खरीदूंगी। सुंदर पोशाक पहनकर मैं इतराकर चलूंगी। सभी मेरी ओर ही देखेंगे। मैं किसी की ओर नहीं देखूंगी और किसी ने पुकारा तो मैं अपना सिर झटक दूंगी।” यह कहकर गर्व से उसने अपना सिर एक ओर झटका। फलत: दूध की बाल्टी गिरकर टूट गया।
इतनी ख्यालों की दुनिया में चली गयी की वह यह तक भूल गए कि उनके सर पर दूध की बाल्टी थी। अब उसे रोने के अलावा कुछ नहीं मिला। सारा दूध देखते ही देखते मिट्टी में मिल गए।
सीख: ख्याली पुलाव नहीं बनाना चाहिए।
शेर और वृषभ
दूर किसी जंगल में एक शेर रहता था। वह उस जंगल का राजा था। एक दिन शेर नदी के किनारे ऐसे ही घूम रहा था। अचानक उसने जोरों का गर्जन सुना, गर्जन सुनकर वह भयभीत हो गया। कि कौन ऐसे गर्जन कर रहा है, यहाँ का राजा तो मैं हूँ, कही दूसरा शेर तो नहीं आ गया! उसके सलाहकारों ने देखा कि वह एक वृषभ की गर्जन थी।
सियार ने शेर से कहा, “ईश्वर ने राज्य की सुरक्षा हेतु इस वृषभ को भेजा है।” शेर प्रसन्न हो गया और दोनों में मित्रता हो गई। तब से शेर ने शिकार करना छोड़ दिया और अधिकांश समय वृषभ के साथ बिताने लगा। सलाहकार भूखे रहने लगे। क्यूंकि शेर जो शिकार करता था उसी का बचा कुछ यह सभी सलाहकार खाकर पेट पूजा कर लेते। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई।
एक दिन जब वृषभ थोड़ी दूर घास खाने गए तो उन्होंने शेर के पास जाके कहा कि महाराज वृषभ राजा बनना चाहता है, और उसी वक़्त कुछ सलाहकार वृषभ के पास जाके कहा कि शेर उसे मार डालना चाहता है। अब सलाहकार की कुबुद्धि रंग लाने लगी। धीरे-धीरे शेर और वृषभ दोनों की मित्रता में दरार आने लगी। दोनों क्रुद्ध हो उठे थे। एक दिन दोनों में युद्ध छिड़ गया। अंततः शेर ने वृषभ को खदेड़ भगाया। उस दिन सभी सलाहकार वृषभ की मांस खा कर तृप्त हो गए। बाद में अपना मित्र खो जाने के कारण शेर दुःखी भी हुआ।
सीख: आँख मूँदकर दूसरों की सलाह नहीं माननी चाहिए।
गड़ेरिया
दूर किसी गाँव में एक गड़ेरिया रहता था। वह प्रतिदिन अपनी भेड़ों को पहाड़ की तलहटी में चराने ले जाता था। जब भेड़ें चरने लगती थीं तब बैठे-बैठे उसे अकेलापन और ऊबन सताती थी। क्योंकि दिनभर उनके पास करने के लिए और कुछ भी नहीं होता था। भेड़ें तो अपने आप चरते थे। उस गड़ेरिया को समझ नहीं आता था कि वह दिनभर क्या करे।
एक दिन उसे एक शरारत सूझी, क्योंकि उसके पास करने के लिए कुछ भी था तो वह ज़ोर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने, “भेड़िया आया, भेड़िया आया” तभी उसकी पुकार सुनकर गाँववाले भागे चले आए। तब उसने कहा, “बुद्धू बनाया, बुद्धू बनाया, बड़ा मज़ा आया” और गाँववालों को देखते हुए हँसने लगा। गाँव वालों को बहुत क्रोध आया। गाँववाले ग़ुस्से से वहाँ से चुपचाप वापस चले गए। लेकिन इस शरारत पर गड़ेरिए को बहुत मजा आया। कुछ दिन ऐसा उसने फिर से और ऐसे उसने कई बार गाँववालों के साथ मज़ाक़ किया।
तभी कुछ महीने बाद एक दिन सच में भेड़िए ने भेड़ों पर हमला कर दिया। तब सहायता के लिए गड़ेरिया चिल्लाने लगा, लेकिन इस बार कोई गाँव वाला नहीं आया, क्योंकि गाँववालों को लगा की गड़ेरिया इस बार भी उनके साथ मज़ाक़ ही कर रहे होंगे। अब असहाय गड़ेरिया देखता ही रह गया और भेड़िया भेड़ों को लेकर चला गया। अपनी मूर्खता पर गड़ेरिया बहुत पछताया और खाली हाथ अपने घर वापस लौटा। उस दिन से उसने क़सम खाया कि आज के बाद कभी किसी को झूठ बोलकर मूर्ख नहीं बनायेंगे। अगर उस गड़ेरिये ने गाँववालों के साथ मज़ाक़ नहीं किया होता तो उसका सभी भेड़ उसके पास ही रहता, जब उसके भेड़ों पर भेड़िये ने हमला किया तो गाँववालों को सच में बुलाने पर उसकी सहायता करने के लिए ज़रूर आता, लेकिन उसके गाँववालों के साथ शरारत की और उसका नतीजा उसको भुगतना पड़ा।
सिख: झूठ बोलने वालों पर कोई विश्वास नहीं करता है।
मूर्ख बंदर
सुदूर देश में एक राजा थे, वे अत्यंत प्रकृति प्रेमी थे। उनके एक अत्यंत सुंदर बगीचा था जिसमें असाधारण फूलों के पौधे थे। उसी बगीचे में कुछ बंदर भी रहते थे। क्योंकि बंदरों फल वगेरह खाने को मिलते थे। राजा ने पूरे देश के सबसे अच्छे माली को अपने बगीचे में नौकरी दिया। राजा का माली पौधों की विशेष देखभाल किया करता था। हर दिन किस पौधे में कितना पानी देना है, कितना खाद देना है, पौधे पर किसी तरह की बीमारी तो नहीं लगी है, सब कुछ एक ही माली देखते थे।
एक बार माली को एक सप्ताह के लिए कहीं जाना था। उसे पौधों की चिंता थी, कि मेरे अलावा पौधे की देखभाल कौन करेगा, क्योंकि पौधे को हर दिन पानी देना होता है। तभी उसे एक युक्ति सूझी। उसने बंदरों को पौधों में उसके जाने के बाद पानी डालने का निर्देश दिया। बंदरों ने भी उस माली का समर्थन किया, क्योंकि माली उसे हर दिन कुछ ना कुछ खाने को देते थे तो बंदरों ने मना नहीं किया।
माली के जाने के बाद बंदरों ने जब पानी डालने लगे तो बंदरों के सरदार ने उन्हें पानी बर्बाद करने से मना किया। उस सरदार ने कहा, “पौधे को उखाड़ कर देखो, जितनी लंबी जड़ हो उतना ही पानी डालो” तो सरदार की आदेशानुसार बंदर हर दिन पौधा उखाड़कर देखते और फिर मिट्टी में लगा देते। तभी दूसरे दिन एक दरबारी ने यह देखा तो बंदर की सरदार को एसा करने से मना किया।
तो सरदार बंदर उल्टा उसी दरबारी पर क्रोध करने लगे। उसने कहा मैं सरदार हूँ, मुझे माली ने इस बगीचे का देखभाल करने को कहा, क्यों? क्योंकि मेरे अलावा किसी और के ऊपर उनका विश्वास नहीं था। अगर तुम्हें बाग़वानी के बारे में पता होता तो तुझे ही बगीचे का देखभाल करने को बोलता ना! अब दरबारी को समझ में आ गया और बुद्धिमान दरबारी चुपचाप चलता बना।
सीख: इसलिए कहते हैं कि मूर्खो को सलाह कभी नहीं देनी चाहिए।