ये कहानी उस वक़्त की है जब प्रभु श्री राम ने लंका विजय अभियान शुरू किया था। वो लंका पर विजय पाने के लिए उस अभियान को छेड़ चुके थे जिसमें विशाल वानर सेना थी उनके छोटे भाई लक्ष्मण उनके साथ थे। और पूरी उम्मीद थी विजय प्राप्त करने की।
लेकिन सबसे बड़ी समस्या थी उस विशाल समुद्र को पार करने की लंका तक पहुँचने की। ऊँची ऊँची लहरें उठ करके आ रही थी। इतनी विशाल सेना ना तो तैर करके उसे पार कर सकती थी, ना उड़ करके जा सकती थी !
प्रभु श्री राम ने बहुत बार विनती की, प्रार्थना की कि समुद्र देव शांत हो जाइये ! लेकिन उधर से कोई उत्तर नहीं मिल रहा था।
प्रभु श्री राम को क्रोध आ गया, अपना दिव्य बाण निकाला, ब्रह्मास्त्र। चलाने की तयारी में थे, तभी अचानक से समुद्र देव प्रकट हुए। समुद्र देव क्षमा याचना करने लगे, प्रभु श्री राम से माफ़ी मांगने लगे और कहा की प्रलय से पहले प्रलय मत लाइए भगवान, बाकि आपकी मर्जी है। आप मुझे मेरी मर्यादा बनाए रखने दीजिये। आप मुझे सूखा देंगे तो सब कुछ खत्म हो जायेगा, जल का जो रूप है वो खत्म हो जायेगा। ऐसा मत कीजिये प्रभु !
प्रभु श्री राम ने पूछा तो फिर क्या किया जाये?
तो समुद्र देव ने बताया की आपकी सेना में नल और नीर नाम के दो भाई हैं, जिनको बचपन में ऋषिओं ने श्राप दिया था, क्यूंकि ये दोनों ऋषिओं के सामान उठा उठा करके नदी में फेंक दिया करते थे तो ऋषिओं ने श्राप दिया की “जो भी तुम फेंकोगे वो पानी में डूबेगा नहीं बल्कि तैरता रहेगा।” तो इन्हीं दोनों भाई की मदद लीजिये। पत्थर तैरने लगेंगे जब ये पत्थर समुद्र में फेंकेंगे।
इनकी मदद से सेतु का निर्माण करवाइये, जब ये सेतु का निर्माण होगा राम सेतु बनेगा तो वंदन, आपका गायन पूरी सृष्टि करेगी इतना विशाल काम होगा। और जब ये दोनों भाई इस सेतु का निर्माण करेंगे तो मैं पूरी मदद करूँगा उस सेतु को बांधे रखने में, आपका पूरा साथ दूंगा।
प्रभु श्री राम ने कहा ठीक है, फिर यही होगा। अपनी सेना से कहा की लग जाइये काम पर।
पत्थरों पर जय श्री राम लिखा गया, पत्थर तैरने लगें। वो श्री राम सेतु का निर्माण होने लगा और प्रभु श्री राम उपरवाले की व्यक्ति में भगवान शिव की आराधना में बैठ गए। तभी उन्होंने देखा की एक छोटी सी गिलहरी उस सेतु निर्माण में अपना योगदान दे रही थी। पता नहीं क्या कर रही थी, बार बार समुद्र के किनारे आती वापस जाती उन पत्थरों की बीच में, वापस आती, तो प्रभु श्री राम को लगा की कुछ तो करने की कोशिश कर रही है।
तो प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से कहा उन्हें पकड़ करके लाओ। हनुमान जी गए और उस गिलहरी को पकड़ करके लाये, प्रभु श्री राम के सामने और प्रभु श्री राम ने पूछा की आप ये क्या कर रही है, इतना विशाल सेतु का निर्माण हो रहा है आप कहा बीच में परेशान हो रही हैं।
उस गिलहरी ने कहा की भगवान् माफ़ कीजियेगा लेकिन आज आपने धर्म के युद्ध छेड़ा है, नारी सम्मान के लिए, नारी की रक्षा के लिए, माता सीता की रक्षा के लिए, गौरव की गरिमा के लिए, आपने जो युद्ध छेड़ा है, मैं भी उसमें अपना योगदान देना चाहती हूँ, मैं यहाँ किनारे से कुछ मिट्टी कुछ रेट अपने साथ ले जाती हूँ और वहां जाकरके पत्थरों के बीच में छोड़ देती हूँ ताकि जब आप पत्थर पर चले तो पत्थर आपको ना चुभें, मैं इतनी बड़ी तो नहीं हूँ की पत्थर वहां पहुंचा दूँ, इसलिए मिट्टी पहुँचाने का काम कर रही हूँ।
प्रभु श्री राम बड़े खुश हुए, उन्होंने पूछा आपको डर नहीं लग रहा है इतनी विशाल सेना है, कही किसी के पैर के नीचे दब गयी तो आपकी मौत हो जाएगी।
गिलहरी ने कहा की इतने बड़े युद्ध में अगर मेरी मौत भी हो जाये आप माता सीता की गरिमा की रक्षा के लिए उनके गौरव की रक्षा के लिए इतना विशाल युद्ध छेड़ चुके है, धर्म की रक्षा के लिए, उसमें मेरी जान भी चली जाये तो कोई बड़ी बात नहीं मेरे लिए सम्मान की बात होगी, गौरव की बात होगी।
उस नन्ही गिलहरी ने जब इतनी बड़ी बातें कही तो प्रभु श्री राम गदगद हो गएँ और उसकी पीठ पर उँगलियाँ फेर दिए।
कहा जाता है वो गिलहरी की पीठ पर वो जो निशान हैं वो प्रभु श्री राम की उँगलियों के निशान है।
दोस्तों कहानी तो खत्म हो गयी, लेकिन ये कहानी हमे बहुत बड़ी बात सीखाती है कि छोटे से छोटा मनुष्य, चाहे वो कमजोर से कमजोर हों, लगता हो की मेरे अंदर तो कुछ है ही नहीं, मैं तो इसका लायक ही नहीं हूँ, वो भी विशाल काम कर सकता है।
सिर्फ भावना अच्छी होनी चाहिए आपके इमोशंस सही होने चाहिए, अगर आपको लगता है की ये काम आपकी लायक नहीं है एक बार अपनी ताकत का अंदाजा लगाइये। आपको पता लगेगा आप सब कुछ कर सकते हैं, आप चमत्कार कर सकते हैं।
छोटे से छोटा व्यक्ति भी बड़े से बड़ा काम आसानी से कर सकता है बस सही इमोशंस की, सही मेहनत की जरुरत है।
और दूसरी बात जितना हो इस दुनिया के काम आते रहिए औरों की काम आते रहिये, लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश और मेहनत करते रहिये।