svg

Sheikh Chilli की कहानी संग्रह | Sheikh Chilli Story

कहानी1 year ago219 Views

शेखचिल्ली और खुरपा

एक बार घरवालों ने शेखचिल्ली को घास खोदने के लिए जंगल भेज दिया। दोपहर तक उसने एक गट्ठर घास खोद ली और गट्ठर उठाकर घर चला आया। घरवाले बड़े खुश हुए। पहली बार शेखचिल्ली ने कोई काम किया था। परंतु जब कई घंटे बीच गए तब शेखचिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गया था, वह तो वहीं रह गया है, जहाँ उसने घास खोदी थी। तेज धूप में पड़ा-पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे-सा तपता खुरपा मूठ से पकड़ा लेकिन मूठ भी गर्म हो चुकी थी। शेखचिल्ली घबरा गया। अरे खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है। मन-ही-मन चिल्ली मुस्कुराता हुआ हकीम साहब के पास पहुंचा और बोला, हकीम साहब, हमारे खुरपे को बुखार हो गया है। जरा दवाई दे दीजिए। हकीम साहब समझ गए कि शेखचिल्ली शरारत कर रहा है। उन्होंने वैसा ही उत्तर दिया, अरे हाँ, वाकई इसे तो बुखार है। जाओ जल्दी से इसे रस्सी से बाँधकर कुएँ में लटकाकर डुबकी लगवा दो। तब भी बुखार न उतरे तो इसे मेरे पास ले आना। शेखचिल्ली चला गया। शेखचिल्ली ने रस्सी ने खुरपा बाँधा और उसे कुएँ में लटकाकर खूब गोते लगवाया। थोड़ी देर बाद उसने उसे ऊपर खींचा। खुरपा ठंडा हो चुका था। चिल्ली ने हकीम साहब को धन्यवाद दिया। संयोगवश एक दिन हकीम साहब के दूर की एक रिश्तेदार को तेज बुखार हो गया था। वह बूढ़ी उन्हीं से अक्सर दवाई लेने आती थी। वह शेखचिल्ली के पड़ोस में रहती थी।

चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया को लोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं। शेखचिल्ली को शरारत सूझी। उसने हकीम साहब को बताया हुआ नुस्खा उन्हें बताते हुए कहा कि, हकीम साहब जो वहाँ बताएँगे, मैं यहीं बताए देता हूँ। दादीजान को तेज बुखार है। यह गरम खुरपे-सी तप रही है। इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इन्हें किसी कुएँ या तालाब में खूब अच्छी तरह डुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए दूर हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहब ने खुद बताई थी। लोगों ने शेखचिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पीढ़े पर बैठाकर रस्सियों से बाँधकर कुएँ में लटका दिया। कुएँ के पानी में बुढ़िया को खूब डुबकियाँ लगवाई गईं। कई डुबकियाँ लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तो वह ठंडी पड़ चुकी थी। उसके प्राण-पखेरू उड़ गए थे। लोग शेखचिल्ली पर बिगड़ उठे। बुढ़िया के घरवालों ने गुस्से में कहा, तुमने तो दादीजान को मार ही दिया। शेखचिल्ली बोला, मियाँ, मैंने केवल बुखार की गारंटी ली थी। अच्छी तरह देख लो, बुखार उतर गया है या नहीं। हकीम साहब का नुस्खा गलत नहीं है। यह उन्हीं की बताई हुई तरकीब है। खुद जाकर पूछ लो। तरकीब गलत होती तो इस बुढ़िया का बुखार न उतरता। लोग हकीम साहब के पास गए। हकीम साहब से पूछा गया तो उन्होंने चिल्ली के खुरपे के बुखार वाली बात बताते हुए कहा कि उन्होंने गर्म खुरपे को ठंडा करने के लिए चिल्ली को तरकीब बताई थी। बुढ़िया को बुखार था। उसे पानी में नहीं डुबाना चाहिए था। वह इंसान थी, खुरपा नहीं। शेखचिल्ली पर इस घटना के कारण घरवालों की बहुत डाँट पड़ी।

शेखचिल्ली की चल गई

शेखचिल्ली बाजार में यह कहता हुआ भागने लगा, चल गई, चल गई बात क्या थी? एक दिन शेखचिल्ली बाजार में यह कहता हुआ भागने लगा, चल गई, चल गई उन दिनों शहर में शिया-सुन्नियों में तनाव था और झगड़े की आशंका थी। उसे चल गई, चल गई चिल्लाते हुए भागते देखकर लोगों ने समझा कि लड़ाई हो गई है। लोग अपनी-अपनी दूकानें बंद कर भागने लगे। थोड़ी ही देर में बाजार बंद हो गया।
कुछ समझदार लोगों ने शेखचिल्ली के साथ भागते हुए पूछा, अरे यह तो बताओ, कहां पर चली है? कुछ जानें भी गई हैं क्या? शेखचिल्ली थोड़ा ठहरा और हैरान होकर पूछा, क्या मतलब? भाई, तुम्हीं सबसे पहले इस खबर को लेकर आए हो। यह बताओ लड़ाई किस मुहल्ले में चल रही है। कैसी लड़ाई? शेखचिल्ली ने पूछा। अरे तुम्हीं तो चिल्ला रहे थे कि चल गई चल गई। हां-हां, शेखचिल्ली ने कहा वो तो मैं इसलिए चिल्ला रहा था कि बहुत समय से जेब में पड़ी एक खोटी दुअन्नी, आज एक लाला की दुकान पर चल गई है।

एक जगह कुछ लोग इकट्ठे बैठे थे। शेखचिल्ली भी वहीं बैठा था। कस्बे के कुछ समझदार लोग और हकीम जी दुर्घटनाओं से बचने के उपाय पर विचार-विमर्श कर रहे थे। किस दुर्घटना पर कौन-सी प्राथमिक चिकित्सा होनी चाहिए, इस पर भी विचार किया जा रहा था।
थोड़ी देर में हकीम जी ने वहां बैठे सभी लोगों से पूछा, किसी के डूब जाने पर पेट में पानी भर जाए और सांस रुक जाए तो तुम क्या करोगे? सब चुप थे। हकीम जी के अन्य साथी बोले, तुम बोलो शेखचिल्ली, किसी के डूबने पर उसकी सांस रुक जाए तो सबसे पहले तुम क्या करोगे? उसके लिए सबसे पहले कफन लाऊंगा। फिर कब्र खोदने वाले को बुलाऊंगा, शेखचिल्ली ने जवाब दिया।

शेखचिल्ली की खिचडी

एक दिन शेख्चिल्ले बीमार हो गया। हकीम साहिब रहते थे शहर में। शेखचिल्ली के गाँव से दो मील के फासले पर, जब शेखचिल्ली उनके पास पहुंचा तो उन्होंने बताया यह चार पुडिया सौंफ के अर्क के साथ खाओ। शेखचिल्ली बोला श्रीमान खाऊँ क्या? हकीम साहिब बोले खिचडी। अब शेखचिल्ली जिसने अभी तक खिचडी न खाई थी उस विचार से कि खिचडी शब्द भूल न जाऊं, जबान से खिचडी-२ कहता हुआ घर को चला। लेकिन था गंवार ही खिचडी शब्द भूल गया और खाचिडी-२ अपने आप उसके मुंह से निकलने लगा। रास्ते में एक स्थान पर एक जात अपने खेत की रक्षा कर रहा हटा। उसने जिस समय शेखचिल्ली को खाचिडी-२ कहते हुए सुना तो मार-मार कर उसका भूसा बना दिया और कहने लगा अब खाचिडी न कहना, दूर रहो, समीप मत आओ। उसने दूर रहो समीप मत आओ कहना आरम्भ कर दिया। थोड़ी दूर गया होगा कि वहां चिदीमार जाल फैलाए बैठे थे। उन्होंने भी खूब मरम्मत की और बोले कि अब तुम आते जाते और फंसते जाओ कहना। शेखचिल्ली ने आते जाओ और फंसे जाओ कहना आरम्भ कर दिया। सामने से बहुत से चोर आ रहे थे। उन्होंने शेख्चिल्लीए के यह शब्द सुने तो मारे गुस्से के उनका बुरा हाल हो गया। उन्होंने शेखचिल्ली को इतना पीटा कि अधमरा कर छोड़ दिया. वहां से रिहाई हुई तो शेखचिल्ली थक कर चूर हो गया था। उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे खुदा! कोई सवारी भेज, इतने में पीछे से एक सवार आता दिखाई दिया और बोला- ए ओर जानवर! मेरी घोडी की बछेडी कंधे पर उठा लो। शेखचिल्ली ने बछेडी कंधे पर उठा ली और बोला-वाह मेरे ईश्वर! इतने वर्ष खुदाई करते हो गए हैं और अभी नीचे ऊपर के अंतर का पता नहीं। मैंने घोडी माँगी थी नीचे को, आपने दे दी ऊपर को।

Leave a reply

Loading Next Post...
svgSearch
Popular Now svg
Scroll to Top
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...