Warren Buffett
Warren Buffett दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं, जिनकी लाइफ़ की जर्नी बहुत इंस्पायरिंग साबित होती है। उन्हें शेयर मार्केट की दुनिया का किंग भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने बहुत कम उम्र में पैसों को सही तरीके से इन्वेस्ट करना सीख लिया था। वो Berkshire Hathaway Company के मालिक हैं जो अलग-अलग कंपनीज़ में पैसा इन्वेस्ट करते हैं।
Warren Buffett का जन्म 30 अगस्त 1930 को अमेरिका के ओमाहा सिटी में हुआ था, उनके पिता शेयर मार्केट में काम करते थे और उनके तीन बच्चों में से Warren Buffett दूसरे नंबर पर थे और इकलौते बेटे थे। उन्हें बचपन से ही बिज़नेस करना और बिज़नेस में पैसा इन्वेस्ट करने का खूब शौक था, इसीलिए उन्होंने सिर्फ 11 साल की उम्र में अपने शौक के लिए घर-घर मैगज़ीन डिस्ट्रीब्यूट करने का और कोकाकोला की बोतल बेचने का काम शुरू कर दिया ताकि वो उससे अपनी पॉकेट मनी निकाल सके। उन्होंने अपना पहला इनकम टैक्स सिर्फ 13 साल की उम्र में 1943 में भरा था।
जब Buffett 15 साल के थे तब उन्होंने हाई स्कूल के दौरान एक पिनबॉल मशीन खरीद कर एक बार्बर शॉप में रख दी ताकि उनकी कमाई हो सके और कुछ ही महीनों में वो 3 मशीनों के मालिक बन गए। वो हमेशा कमाई के अलग-अलग तरीके ढूंढ कर निकाल देते थे। ऐसा नहीं है कि उनके हाथ हमेशा सक्सेस ही लगती थी, उनकी इंवेस्टिंग जर्नी की शुरुआत में उन्होंने एक गैस स्टेशन खरीदा और उसमें उन्हें काफ़ी लॉस उठाना पड़ा, लेकिन वो हमेशा से एक ही बिज़नेस पर डिपेंड नहीं थे। उसी दौरान 22 की उम्र में Warren Buffett की शादी Susan Thompson से हुई।
Warren को अपनी इंवेस्टिंग की दुनिया में सही मायने में हाथ आज़माने को तब मिला जब वो Benjamin Graham से मिले, Benjamin Graham शेयर मार्केट के बड़े खिलाड़ी थे और Warren Buffett उनके यहाँ 1200 डॉलर महीने की सैलरी पर काम करते थे और Warren ने इंवेस्टिंग के गुण भी Benjamin से सीखे थे। आज भी Warren उन्ही को अपनी सक्सेस का क्रेडिट देते हैं, जब Warren ने Benjamin के साथ काम करना स्टार्ट किया उसके 2 साल बाद Benjamin Graham रिटायर हो गए थे।
Benjamin के रिटायर होने के बाद Warren ने खुद का काम स्टार्ट करने की प्लानिंग की और Buffett Partnership नाम की फ़र्म बनाई और उसी फ़र्म से जो कमाई हुई उसे Buffett ने अपना पहला घर $31,500 में खरीदा और दुनिया के सबसे रिच लोगों में से एक Warren आज भी उसी घर में रहते है जिससे उनकी सिम्पलीसिटी का पता चलता है।उसके बाद Buffett कभी मेहनत करने से पीछे नहीं हटे और 1962 में 32 की उम्र में वो मिलियनर बन चुके थे, जब Warren 35 साल के थे तब उन्होंने Berkshire Hathaway का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया क्योंकि उस कंपनी के काफ़ी शेयर्स Warren पहले ही खरीद चुके थे। इस कंपनी से उन्हें इतनी सक्सेस मिली कि 1986 में 56 साल की उम्र में वो बिलेनियर बन गए।
75 की उम्र में Warren ने रिटायरमेंट लेने का फ़ैसला किया और अपनी नेट वर्थ का 99% हिस्सा Bill And Melinda Gates Foundation में दान दे दिया और अब तक Warren 34 बिलियन डॉलर्स का दान दे चुके हैं। 2008 में Warren दुनिया के सबसे अमीर इंसान भी रह चुके हैं। 2020 कि अकोर्डिंग Buffett की नेट वर्थ 79 बिलियन डॉलर्स है।
Walt Disney
बचपन को हैप्पीनेस से भरने में अगर किसी ने सच में कंट्रीब्यूट किया है तो वो Walt Disney थे जिनके बनाए कार्टून फिल्म ने लगभग हम सब के बचपन को एंटरटेन किया है। वो 20th सेंचुरी में एंटरटेनमेंट वर्ल्ड में अपने कॉन्ट्रिब्यूशन के लिए फ़ेमस हैं। Walt Disney का जन्म 5 सितंबर 1901 को शिकागो, अमेरिका में हुआ, बचपन से Disney को पेंटिंग का बहुत शौक था। उनकी फाइनेंसियल कंडीशन ठीक नहीं होने की वजह से वो स्कूल जाने से पहले न्यूज़पेपर बाटते थे फिर स्कूल जाते थे।
उन्होंने बचपन में न्यूज़पेपर में आने वाले पिक्चर्स को कॉपी करके पेंटिंग सीखी। वो बचपन में आर्मी जॉइन करना चाहते थे लेकिन कम उम्र की वजह से वो जॉइन नहीं कर सके। 1917 में Disney ने अपनी हाई स्कूल के दौरान एक न्यूज़पेपर में कार्टूनिस्ट के तौर पर काम किया, जिसकी इनकम से उन्होंने शिकागो फ़ाइन आर्ट्स एकेडमी से कार्टूनिस्ट का कोर्स किया। 1919 में Disney केंसास सिटी आये और उन्होंने Pesman-Rubin Commercial Art Studio में आर्टिस्ट के तौर पर काम किया। वहाँ Pesman-Rubin के रेवेन्यू डाउन होने की वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।
Pesman-Rubin Commercial Art Studio में उनकी मुलाक़ात Lwerks We से हुई और वहाँ से निकलकर 1920 में Disney ने Lwerks के साथ मिलकर Disney Lwerks Commercial Artist नाम की कंपनी बना दी, लेकिन वो भी सक्सेस न होने की वजह से उन्होंने वो कंपनी अपने पार्टनर को दे दी और केंसास सिटी फ़िल्म एंड कंपनी जॉइन कर ली जहाँ उन्होंने कैमरा और एनीमेशन का काम सीखा। काम सीखने की वजह से एनीमेशन की तरफ उनका इंटरेस्ट बढ़ा और उन्होंने खुद का एनीमेशन स्टूडियो ओपन किया और “Alice In Cartoonland” और “Oswald The Rabbit” सिरीज़ लॉन्च की जो हिट साबित हुई लेकिन किसी प्रॉब्लम की वजह से वो फिर से घाटे में चले गए।
Disney को अब एक नए कार्टून कैरेक्टर की ज़रूरत थी और इस बार उनके स्टार्टिंग कंपनी के साथी Lwerks भी उनके साथ थे, फिर 1928 में दोनों ने मिलकर ‘Mickey Mouse कैरेक्टर बनाया, जिसे प्लेन क्रेज़ी नाम की शार्ट मूवी में यूज़ किया गया। प्रोड्यूसर ने उस कैरेक्टर को इतना पसंद नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि बच्चे उस बड़े से चूहें को देखकर डर जाएंगे फिर उन्होंने Gallopin Gaucho नाम की शार्ट मूवी बनाई और वो भी सक्सेस नहीं हुई।
गिवअप करने की बजाय उन्होंने Mickey Mouse के कैरेक्टर को लेकर अपनी तीसरी मूवी “Steamboat Willie’ बनाई और Pet Power नाम के बिजनेसमैन ने उसे डिलीवर किया। आखिरकार ये मूवी हिट साबित हुई और काफ़ी मेहनत के बाद फाइनली Disney की कंपनी ग्रो करने लगी। फिर उन्होंने Mickey के साथ Minnie Mouse, Goofy, Donald Duck और Pluto के कैरेक्टर को बनाया जो काफ़ी हिट हुए। Disney की Mickey Mouse सिरीज़ सक्सेस तो कर रही थी लेकिन Pet Power से Disney को उनके प्रॉफ़िट का सही हिस्सा नहीं मिल रहा था और जब ये बात Disney ने Pet Power से कही तो उन्होंने Disney के साथी Lwerks को Disney से अलग करके अपने साथ ले लिया, Disney को लगा कि बिना Lwerks के Disney Studio फिर से बन्द हो जाएगा जिसकी वजह से वो डिप्रेशन में चले गए और डिप्रेशन की वजह से उनका नर्वस ब्रेकडाउन हो गया।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और Mickey Mouse सिरीज़ को डिस्ट्रीब्यूट करने के राइट्स कोलंबिया पिक्चर्स नाम की कंपनी को दे दिए और Mickey Mouse सिरीज़ वर्ल्ड वाइड बहुत सक्सेस होने लगी। फिर Disney ने फुल लेंथ फ़िल्म “Snow White And Seven Drafts” बनाई जो इतनी हिट साबित हुई कि Walt Disney उसकी कमाई से मिलियनर बन गए और इस मूवी को Oscar Awards भी मिले। Disney के सपने के अनुसार उन्होंने Adventure Park Disneyland बनाने की सोची, लेकिन इस प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करने से सभी ने इनकार कर दिया और उन्हें अपना घर और गाड़ी तक बेचनी पड़ी और अपनी सभी टेलीविज़न सिरीज़ के टेलीकास्ट राइट्स उन्होंने ABC टेलीविज़न नेटवर्क को 5 मिलियन डॉलर्स में बेच दिए, लेकिन उनकी कार्टून सिरीज़ टेलीविज़न पर भी काफ़ी सक्सेस रही।
Disney का Disneyland प्रोजेक्ट को लेकर उनका काफ़ी मज़ाक बनाया गया, लेकिन वो इसके बारे में ध्यान न देते हुए अपने काम पर लगे रहे और जब उनका ये प्रोजेक्ट बन कर रेडी हुआ तो अमेरिका का सबसे बड़ा अट्रैक्शन बन गया और आज भी पूरी दुनिया से लोग Disneyland देखने जाते हैं। 15 दिसंबर 1966 को कैंसर से Walt Disney की मौत हो गयी, उनके मरने के बाद “Winnie The Pooh And The Blustery Day” को Oscar Award मिला। Walt Disney की कंपनी और उनकी बड़ी सोच के रिजल्ट्स आज भी हम देख रहे हैं, अपनी लाइफ़ में रुकावट के आने के बाद भी इनोवेटिव तरीके से कमबैक करके उन्होंने वो कर दिखाया जो उन्हें करना था।
Bill Gates
दोस्तों पर्सनल कंप्यूटर के दौर में Bill Gates का नाम न आये ऐसा हो ही नही सकता। जिन्होंने पर्सनल कंप्यूटर को बेहतर बनाने में अपनी पूरी लाइफ़ दे दी। बचपन से ही कंप्यूटर में इंटरेस्ट रखने वाले Bill का जन्म एक धनी परिवार में हुआ, उनके पिता एक वकील थे, उनके घर वाले चाहते थे कि वे भी उनके पिता के जैसे वकील बने लेकिन उनका ध्यान हमेशा कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग में ही रहता था। सिर्फ़ 13 साल की उम्र में उन्होंने Tic Tac Toe नाम का गेम बना दिया था क्योंकि वे स्टार्टिंग से उसमें इंटरेस्ट रखते थे। वे हमेशा कंप्यूटर के मामले में उत्सुक रहते थे, वे पढ़ाई में भी इतने आगे थे कि उन्होंने SATS नाम के एग्ज़ाम में 1600 में से 1590 नंबर लाये थे। उन्होंने एक बार स्कूल में सिर्फ लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिए स्कूल का कंप्यूटर नेटवर्क हैक कर लिया था।
उन्होंने सिर्फ 17 साल की उम्र में अपने Alen नाम के दोस्त के साथ मिलकर Traf O Data नाम का डिवाइस बनाया जो ट्रैफिक काउंटर का काम करता था। वो इतना हिट हुआ कि उन्हें अहसास हो गया कि उन्हें खुद की सॉफ़्टवेयर कंपनी बनानी चाहिए और अप्रैल 1975 में उन्होंने Harward University छोड़ कर Paul Alen के साथ मिलकर खुद की कंपनी बना दी। उस टाइम उन्हें अंदाज़ा नही था कि वो दुनिया की एक सबसे बड़ी कंपनी बनाने जा रहे है। वे बिज़नेस में इतने एक्सपर्ट थे कि 1981 में IBM ने एक ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने के लिए Bill Gates को कहा तो Bill Gates ने उसको बनाने की बजाय Tim Peterson (कंप्यूटर इंजीनियर) के पास गए जिनके पास ऑलरेडी वो ऑपरेटिंग सिस्टम बना हुआ था।
Bill Gates ने उनसे उस ऑपरेटिंग सिस्टम को 50000 डॉलर में खरीद लिया और IBM को रॉयल्टी पर बेच दिया उसका नाम Ms-Dos था, जिसके पैसे 6 महीने में ही वसूल हो गए थे। वह हर मामले में बिज़नेस की खोज करते रहते है। वो अपने काम को लेकर इतने क्यूरियस और डिवोटेड थे और साथ ही हर छोटी से छोटी चीज़ का इतना ध्यान रखते थे कि उनका कहना था कि वे वीकेंड और छुट्टियों पर जाने में विश्वास नहीं करते और उनकी कंपनी में काम करने वाले हर एक व्यक्ति की कार की नंबर प्लेट उन्हें याद थी ताकि वे ये पता कर सके कि कौन किस समय काम पर आता है और जाता है। इसी हार्ड वर्क ने उन्हें बाउंडलेस सक्सेस दिलाई। इसी हार्ड वर्क की वजह से कुछ सालों में ही 1987, 31 साल की उम्र में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में Bill Gates का नाम आ चुका था।
उन्होंने एक इंटरव्यू में भी कहा था कि उनकी इस सक्सेस के पीछे बुक्स का ही हाथ है, वे एक साल में 50 बुक्स पढ़ते हैं जिनसे उन्हें जो कुछ भी सीखने को मिलता है वो अपनी रियल लाइफ में करने की कोशिश करते है। अपनी सक्सेस के पीछे का सारा क्रेडिट वे किताबे पढ़ने और नई चीजें सीखने को देते है। एक बार उन्होंने कहा कि उनकी लाइफ़ का सबसे बड़ा रिग्रेट ये है कि वो इंग्लिश के अलावा कोई दूसरी लैंग्वेज नही जानते, इस बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हो उनके अंदर नई चीजें जानने की कितनी जिज्ञासा है।
1994 में Andrew carnegie और john D Rockefeller से इंस्पायर होकर उन्होंने अपनी कंपनी के कुछ शेयर बेचकर “William H Gates Foundation” की स्थापना की और 2000 में अपनी पत्नी के साथ मिलकर “Bill And Melinda Gates Foundation” खोला जिसके लिए उन्होंने अपनी कंपनी के 5 बिलियन डॉलर के शेयर बेच दिए, जो NGO के लिए पैसा इकट्ठा करती है। 2007 में उन्होंने अपनी नेट वर्थ का 95% पैसा दान दे दिया था। 2013 के अकॉर्डिंग उनका ये फाउंडेशन दुनिया का सबसे वैल्युएबल फाउंडेशन बन गया था। Bill 1995 से 2007 तक दुनिया के सबसे अमीर आदमी बने रहे, 2007 में डोनेशन की वजह से वो पीछे हो गए थे। Bill ने अपने बच्चों की सक्सेस के बारे में ये भी कहा था कि वे अपने तीनों बच्चों को अपनी बिलियन डॉलर्स की संपत्ति में से सिर्फ 10-10 मिलियन देंगे, क्योंकि वे अपने बच्चों को आलसी नहीं बनाना चाहते। आज वे जो भी काम कर रहे है सिर्फ समाज सेवा के लिए कर रहे है।
Abraham Lincoln
Abraham lincoln जो अमेरिका के 16वे प्रेज़िडेंट थे, जिनको लोग उनकी काइंडनेस, बार-बार मिली हार और लोगों को स्लेवरी से मुक्त करवाने के लिए जानते है। उनका झोपड़ी से लेकर वाइट हाउस तक का सफ़र आज के लोगों के लिए एक मिसाल कायम करता हैं, जो 1861 से 1865 तक अमेरिका के प्रेज़िडेंट रहे।
Abraham Lincoln का जन्म केंटकी के हार्डिंन काउंटी में एक लोग केबिन (लकड़ी का छोटा घर) में हुआ था, उनके पिता का नाम Thomas Lincoln था जो एक किसान थे, जब Lincoln 9 साल के थे तब उनकी माँ की डेथ हो गयी।Abraham Lincoln बचपन में तो बहुत आलसी थे लेकिन फ़ैमिली कंडीशन सही नहीं होने की वजह से उन्हें लकड़ी काटने का काम करना पड़ा, Lincoln बचपन से स्लेवरी (दासप्रथा) के बिल्कुल ख़िलाफ़ थे। उन्होंने खेत में मज़दूरी का काम भी किया और बाद में वो शहर के सबसे ईमानदार वक़ील भी कहलाये।
उन्होंने अपनी लाइफ़ में 20 साल तक वक़ालत की, इतने साल तक वक़ालत करने के बाद भी उनकी फ़ैमिली की कंडीशन ज़्यादा सही नहीं हो पाई क्योंकि वो ज़्यादातर ग़रीब लोगों के लिए केस लड़ते थे और उनसे ज़्यादा पैसे भी नहीं लेते थे, इसकी वजह ये थी कि वो केस सॉल्व करवाने में ज़्यादा ध्यान देते थे और बाद में फ़ीस मिलती या नहीं मिलती उन्हें फ़र्क नहीं पड़ता था वो बस अपना काम करते थे।
आधे से ज़्यादा केस वो कोर्टरूम के बाहर ही सॉल्व करवा देते थे ताकि किसी का केस के चक्कर में फाइनेंसियल लॉस न हो, इसी ईमानदारी की वजह से वो फाइनेंसियल तौर पर ग़रीब रहे। ऐसा नहीं है कि ईमानदारी से पैसे नहीं कमाए जा सकते लेकिन उनका प्रोफेशन और फाइनेंसियल कंडीशन भी कोर्ट केसेस पर डिपेंड थी और वो ज़्यादा पैसे भी चार्ज नहीं करते थे। एक बार उन्हें किसी क्लाइंट ने 25 डॉलर फ़ीस के तौर पर भेजे तो Lincoln ने उन्हें 10 डॉलर वापस भेज दिए क्योंकि उन्हें वो फ़ीस ज़्यादा लग रही थी, उन्होंने कभी पैसों के लिए काम नहीं किया।
जब Lincoln की शादी 1842 में Mary Todd से हुई, वो दिन Lincoln की ज़िंदगी का आखिरी दिन था जब Lincoln खुश थे (According To William H Herndon) क्योंकि उनकी पत्नी बहुत ही घमंडी और गुस्से वाली थी और साथ ही बहुत ही महत्वकांशी महिला थी। Mary Todd ने शादी से बहुत पहले ही बोल दिया था कि वो उसी व्यक्ति से शादी करेगी जो आगे जाकर अमेरिका का प्रेज़िडेंट बनेगा, जिस बात का लोग मज़ाक भी बनाया करते थे। शादी के बाद Lincoln और उनकी वाइफ़ कई दिनों तक स्प्रिंगफ़ील्ड (जहाँ Lincoln की शादी हुई) में किराए पर रहे, जहाँ उनकी वाइफ़ ने एक बार किसी बात से गुस्सा होकर Lincoln के मुँह पर गर्म चाय फेंक दी थी, लेकिन Lincoln इतने शांत इंसान थे कि उन्हें गुस्सा तक नहीं आया और वो Lincoln की शक्ल और पहनावें का मज़ाक भी बनाया करती थी।
1854 में Lincoln ने राजनीति में क़दम रखा, इससे पहले भी वो राजनीती में क़दम रख चुके थे लेकिन कई इलेक्शन हारने के बाद उन्होंने राजनीति के सफ़र को बीच मे ही छोड़ दिया था, इस बार भी वो कई चुनाव में खड़े हुए लेकिन फिर उसे उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वो Whig पार्टी से जुड़े थे लेकिन कुछ टाइम बाद वो पार्टी ख़त्म हो गयी और उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी जॉइन की, वहाँ से उन्होंने वाइज़ प्रेज़िडेंट का चुनाव लड़ा लेकिन वो फिर से हार गए। उन्होंने ग़रीब लोगों के लिए पहले ही बहुत काम कर दिए थे और क्योंकि वो दासप्रथा को ख़त्म करना चाहते थे तो इसी सब्जेक्ट में उन्होंने एक स्पीच में कहा भी था कि वो अमेरिका का बंटवारा नहीं होने देंगे और जातिवाद और ग़ुलामी को देश से मिटा कर रहेंगे, उनकी इस स्पीच से लोग इतने प्रभावित हुए कि फाइनली इतनी हार देखने के बाद Abraham Lincoln को अमेरिका का प्रेज़िडेंट चुना गया।
1860 में वो अमेरिका के 16वे प्रेज़िडेंट के पद पर चुने गए और जैसा उन्होंने स्पीच में कहा था उन्होंने वैसा करके भी दिखाया, वो सब प्रॉमिस जो Lincoln ने लोगों से किये थे उन्होंने उसे पूरा किया। 14 अप्रैल 1865 को वाशिंगटन डी सी में फ़ोर्ड थिएटर में एक लाइव शो के दौरान उनकी हत्या हो गयी। अब तक अमेरिका में 46 प्रेज़िडेंट रहे है, उनमें से Abraham Lincoln अमेरिका के सबसे फ़ेमस प्रेज़िडेंट हैं, जिन्हें उनकी काइंडनेस और प्रिंसिपल्स के लिए जाने जाता हैं।
Mother Teresa
दुनिया में बहुत से लोग हैं जो अपने लिए जीते हैं लेकिन सिर्फ़ कुछ ही ऐसे लोग होते हैं जो दूसरों के लिए अपनी पूरी लाइफ़ लगा देते हैं, Mother Teresa उसी पर्सनालिटी का नाम है। Mother Teresa ने अपनी पूरी लाइफ़ ग़रीब, अनाथ, बेघर और बीमार लोगों की सेवा में दे दी।
Mother Teresa का रियल नाम Agnes Gonxha Bojaxhiu था, उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को Skopje, North Macedonia में हुआ था, जब उनकी उम्र 8 साल थी तब उनके पिता की डेथ हो गयी थी और वो अपने 5 भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। वो बचपन से पढ़ाई में बहुत अच्छी थी और मेहनती भी थी, उनकी बड़ी बहन एक चर्च में सिंगिंग का काम करती थी और सिर्फ़ 12 साल की उम्र में उन्हें अहसास हो गया था कि वो अपनी पूरी लाइफ़ लोगों की सेवा में स्पेंड कर देगी।
जब Teresa 18 साल की हुई तो वो एक सन्यासी बन गयी और अपनी लाइफ़ को एक अलग डायरेक्शन में ले जाने लगी और अपना घर छोड़ कर आयरलैंड चली गयी, वहाँ जाकर उन्होंने Sister Of Loreto को जॉइन कर लिया और इंग्लिश सीखने लग गयी क्योंकि इंग्लिश ही वो लैंग्वेज थी जिससे कम्यूनिकेट करने में आसानी रहती थी, वहीं उनको Sister Teresa का नया नाम मिला। Sister Teresa 6 जनवरी 1929 को आयरलैंड से डारजीलिंग, इंडिया आयी, जहाँ उन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाने का काम किया, फिर उन्होंने इंडिया में सन्यासी के रूप में शपथ ली और कलकत्ता चली गयी। 1944 में वो वहाँ की स्कूल की हेडमिस्ट्रेस बन गयी।
1943 में पड़े अकाल के कारण शहर में बहुत लोगों की मौत हुई बहुत लोगो की ख़राब स्थिति में Mother Teresa ने लोगों की बहुत मदद की। 1946 में उन्होंने ग़रीब और अनाथ बच्चों के लिए पटना में नर्सिंग की ट्रेनिंग सिर्फ़ इसलिये की ताकि वो ग़रीबों का इलाज बिना किसी भेदभाव के फ्री में कर सके, जहाँ लोग बीमारियों के डर से मरीज़ों के पास में जाने से डरते थे वहीं Mother Teresa बिना किसी डर के सेवा भाव से मरीज़ों को दवाई देने और उनके घावों को साफ़ करने जाती थी। उनके इसी काम की वजह से उन्हें काफ़ी पहचान भी मिली, उन्होंने सेवा करने के लिए कान्वेंट स्कूल भी छोड़ दिया था जिससे उनके पास इनकम सोर्स भी नहीं था।
7 अक्टूबर 1950 को Mother Teresa को मिशनरी ऑफ चैरिटी बनाने की परमिशन मिल चुकी थी, जिसकी स्टार्टिंग में उनके पास 12 वॉलंटियर्स ही थे, लेकिन आज उनकी आर्गेनाईजेशन में 4000 से भी ज़्यादा वॉलंटियर्स काम करते हैं, जिसका नाम Mother House Of The Missionaries Of Charity हैं। 1957 में फ़ैली लेप्रोसी (कुष्ठ रोग) बीमारी में उन्होंने लोगों का खूब इलाज किया जबकि छुआछूत की बीमारी के कारण दूसरे लोग उनके पास जाने से डरते थे, वो हमेशा ईश्वर में विश्वाश रखती थी। 1965 में उन्हें अपनी मिशनरी को बाहर के देशों में फ़ैलाने की परमिशन मिल गयी और आज 100 से ज़्यादा देशों में Mother Teresa की चलाई मुहिम से लोगों की मदद होती है, जिनके काम को बड़े-बड़े नेताओं ने सराहा है।
उनकी लाइफ़ में बहुत कंट्रोवर्शिज़ भी आई, जब वो लोगों की सेवा में लगी हुई थी तब उन पर काफ़ी आरोप लगे कि वो भारत के लोगों का धर्म परिवर्तन करने के लिए ये सब काम कर रही है, उन्हें क्रिशचन धर्म का प्रचारक समझा जाने लगा लेकिन वो उन सब बातों की तरफ़ ध्यान न देकर अपने काम मे लगी रही। उनकी लाइफ़ काफ़ी उतार-चढ़ाव से भरी रही लेकिन वो हमेशा अपने माइंड में अपने गोल को लेकर चलती रही और कई देशों में शांति भरे काम को फ़ैलाने का काम जारी रखा, उसी के चलते उन्हें 1962 में पद्मश्री से नवाज़ा गया, 1979 में उन्हें अपनी लाइफ़ में की गई सेवा और ग़रीब बच्चों और अनाथों के इलाज को ध्यान में रखते हुए नोबेल पीस प्राइज़ से नवाज़ा गया और 1980 में उन्हें भारत रत्न दिया गया। 1985 में उन्हें अमेरिका की तरफ़ से मेडल ऑफ़ फ्रीडम दिया गया।
1997 के शुरुआती दिनों में उन्हें ये एहसास हुआ कि अब उन्हें अपना पद छोड़ देना चाहिए और किसी और को उस काम के लिए चुना जाना चाहिए और उन्होंने मिशनरी ऑफ़ चैरिटी हेड के पद से रिज़ाइन कर दिया और 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में उनकी डेथ हो गयी।