The Four Agreements Book Summary in Hindi – द फोर एग्रीमेंट्स में हम देखते हैं कि किस तरह से यह समाज हमें सीमाओं में रहना सिखाता है। यह किताब हमें बताती है कि कैसे यह हमाज हमें वो बना देता है जो हम नहीं हैं। इस किताब की मदद से हम जानेंगे कि किस तरह हम आजाद देश में रहकर भी समाज की बनाई गई सीमाओं में रहते हैं और अपनी जिन्दगी को कभी अपने हिसाब से नहीं जी पाते।
यह बुक किसके लिए है
लेखक
डॉन मिग्युएल रुइज़ (Don Miguel Ruiz) मेक्सिको के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। अपनी जिन्दगी के शुरुआती दिनों में वे एक सर्जन थे। एक कार एक्सिडेंट ने उनकी जिन्दगी बदल दी और तभी से वे आध्यात्म के क्षेत्र में आ गए। वे एक लेखक हैं और उन्होंने बहुत सी बेस्ट सेलिंग किताबें लिखी हैं जिसमें द फोर एग्रीमेंट्स भी शामिल है।
जेनेट मिल्स (Janet Mills) एंबर ऐलेन पब्लिशिंग की फाउन्डर हैं। वे दीपक चोपड़ा की बेस्ट सेलिंग किताब द सेवेन स्पिरिचुअल लॉस आफ सक्सेस की एडिटर और पब्लिशर भी हैं ।
क्या आपने कभी यह महसूस किया है कि आप किसी कैद में रह रहे हों? क्या आप कभी कभी कुछ अलग काम करना चाहते हैं लेकिन “लोग क्या कहेंगे” सोचकर रुक जाते हैं? क्या आप समाज की ज़रूरतों के हिसाब से अपनी जिन्दगी जीते हैं?
अगर ऊपर के सभी सवालों का जवाब हाँ है तो यह किताब आपके लिए ही लिखी गयी है। इस किताब में हम देखेंगे कि किस तरह हमें बचपन से ही हदों में रहना सिखाया जाता है और बड़े होने पर भी हम हदों में ही रहते हैं और कभी अपनी असली ताकत को नहीं पहचान पाते।
इस किताब की मदद से हम देखेंगे कि कैसे हम अपने दुखों और समाज की बनाई गई सीमाओं को तोड़कर एक नई जिन्दगी की शुरुआत कर सकते हैं और अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जी सकते हैं।
क्या आपको याद है कि बचपन में जब आपने अपने पैरेंट्स की बात मानी थी तब आपको शाबाशी मिली थी? क्या आपको याद है कि जब आपने उनकी बात मानने से इंकार किया था तो आपको सजा मिली थी?
हम में से ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा ही होता है। हमें बचपन से ही बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता है और बताया जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। धीरे धीरे ये सभी बातें हमारे दिमाग में कुछ इस तरह से बैठ जाती हैं कि बड़े होने पर भी हम उन बातों को मानते रहते हैं।
हम में से हर किसी को ईनाम और तारीफें पसंद हैं। बचपन में जब भी हम कोई अच्छा काम करते थे तब हमें ये दोनों चीजें मिलती थी। इसके साथ ही सजा से डर सभी को लगता है। इसलिए हम दो काम करने से डरते थे जिसके लिए हमें मना किया जाता था।
इन सभी बातों का नतीजा यह निकला कि हमें वो बना दिया गया जो हम नहीं हैं। हमें एक साँचे में ढ़ाल दिया गया और समय के साथ हम उसी आकार के हो गए। अब जब हम बड़े हो गए हैं और हमें कोई कंट्रोल नहीं कर रहा तब भी हम खुद ही उस आकार को बनाए रखने की कोशिश करते हैं ।
हमने अपने लिए ये नीयम नहीं चुने थे। ये नीयम हम पर जबरदस्ती लागू किए गए थे। बचपन से बड़े होने के सफर में हमें ना जाने कितनी तरह से कैद कर के रखा गया था। अब वक्त आ गया है कि हम उस कैद से आजाद हों।
शब्दों का हमारी जिन्दगी में बहुत महत्व होता है। अगर हम इसका सही इस्तेमाल करें तो ये हमें काफी हद तक फायदा पहुंचा सकता है। साथ ही में इसका गलत इस्तेमाल हमारे आत्म विश्वास को तोड़कर हमें कमजोर बना सकता है।
एक्ज़ाम्पल के लिए अगर आप अपने आप को आईने में देखकर ये सोचें कि आप बदसूरत लगते हैं तो आप अपना आत्म विश्वास खो देंगे और लोगों के सामने आने जाने से या उनसे बात करने में हिचकिचाएँगे। लेकिन अगर आप सोचें कि आप बहुत अच्छे दिखते हैं तो आप कहीं भी जाकर किसी से भी बात करने में नहीं हिचकिचाएँगे।
शब्दों की ताकत शरीर की ताकत से ज्यादा होती है। आप अपनी ताकत से लोगों पर बाहर से राज कर सकते हैं लेकिन अपने शब्दों की ताकत का इस्तेमाल कर आप लोगों के मन पर राज कर सकते हैं। अच्छे शब्दों से आपको इज्जत मिलेगी और इसके इस्तेमाल से आप लोगों से अपनी बात मनवा भी सकते हैं।
आप शब्दों के इस्तेमाल से किसी और का भी हौसला बढ़ा सकते हैं। अगर आप किसी से कहें कि वो यह अपना काम बहुत अच्छे से कर सकता है और उसे अपना काम मेहनत से करना चाहिए तो वो मेहनत जरूर करेगा। लेकिन अगर आप उससे कहें कि वो इस काम को कभी ढंग से नहीं कर पाएगा तो उसका भी आत्म विश्वास टूट जाएगा और वो वाकई अपना काम कभी सही से नहीं कर पाएगा।
इसलिए ये जरूरी है कि आप अपने शब्दों का इस्तेमाल सही तरह से करें। आप इसके इस्तेमाल से सबके दिलों पर राज कर सकते हैं और साथ ही अपना आत्म विश्वास भी बढ़ा सकते हैं।
हम अक्सर अपने आप को उस तरह से देखने लगते हैं जैसा लोग हमें मानते हैं। जैसे अगर किसी ने आप से स्कूल के दिनों में कहा होगा कि आप पढ़ने में बिल्कुल अच्छे नहीं हैं तो आप के अंदर यह भावना आ गई होगी कि आप स्मार्ट नहीं हैं। ठीक उसी तरह अगर आप से किसी ने कहा होता कि आप बहुत स्मार्ट हैं तो आप अपने आप को स्मार्ट समझने लगते।
हम हमेशा ही अपने आप को दूसरों की ज़रूरतों के हिसाब से ढ़ालने की कोशिश करते हैं। अगर लोग हमसे कहने लगें कि हम मोटे हो गए हैं तो हम अपना वजन कम करने में लग जाते हैं। लेकिन क्या यह जिन्दगी आपको दूसरों की शर्तों पर जीने के लिए मिली थी? क्या आपने पैदा होने के बाद कोई एग्रीमेंट साइन किया था जिसमें आपने ये कबूल किया था कि आप हमेशा दूसरों के हिसाब से जीयेंगे?
अब वक्त आ गया है कि आप अपने बारे में जाने और खुद को दूसरों के स्केल से नापना बंद करें। अगर कोई आप पर एक ऊँगली उठाता है तो आप देखिए कि तीन ऊँगलियाँ उसकी तरफ हैं। इसका मतलब वो आपके बारे में कम और अपने बारे में ज्यादा बता रहा है।
लोग अपनी सोच और अपने मूड के हिसाब से आपके बारे में अच्छी या बुरी बातें करेंगे। अगर आपके दोस्त का मूड अच्छा है तो वो आपकी तारीफ करेगा लेकिन अगर उसका मूड खराब है तो वो आप में बुराइयाँ निकालने लगेगा। ठीक उसी तरह अगर कोई आप से कहता है कि आप यह काम नहीं कर पाएंगे तो यह उसका मानना है कि आप नहीं कर पाएंगे और जरूरी नहीं है कि वो जो मानता है वो सच ही हो ।
आप अपनी जिन्दगी अपनी शर्तों पर जीना सीखिए।
हमारा दिमाग किसी भी काम को करने के लिए हमेशा कोई आसान सा रास्ता खोजता रहता है। इसलिए जब हमें कोई बात समझ में नहीं आ रही होती है तो हम अनुमान लगा लेते हैं कि इस वजह से ऐसा हो सकता है। अनुमान लगा लेने से हमें हमारे सवाल का एक संभव जवाब मिल जाता है जिससे हमें आगे सोचने की जरूरत नहीं पड़ती।
लेकिन क्या आपने कभी अनुमान लगाने से होने वाली परेशानियों के बारे में सोचा है। जैसा कि पहले ही कहा गया कि ये जरूरी नहीं है कि लोगों का मानना हमेशा सच ही हो। अगर आप किसी चीज का अंदाजा लगा रहे हैं तो इसकी बहुत बड़ी संभावना है कि आप गलत हैं।
एक्ज़ाम्पल के लिए अगर आपका दोस्त आपकी तरफ ध्यान ना दे और आप अनुमान लगा लें कि वो आप से नाराज है तो यह बिल्कुल गलत होगा। अनुमान लगाने से अच्छा है कि आप उससे पूछें कि वो ऐसा क्यों कर रहा है। सवाल पूछने से सारी बातें साफ हो जाती हैं और आगे चलकर परेशानियाँ नहीं झेलनी पड़ती हैं।
अगर आप अंदाजा लगा कर कोई काम करते हैं तो आप अपनी सोच को सच्चाई मान लेते हैं। आपको लगने लगता है कि आप जो सोच रहे हैं वही सच है और जब आप गलत साबित होते हैं तब आपको बुरा लगता है। अगर आप अंदाजा लगा लें कि आप कोई काम कर लेंगे तो आप बिना तैयारी के ही उसमें घुस जाएंगे और हारने पर बुरा महसूस करेंगे।
अनुमान लगाना रिश्तों में दरार डाल सकता है और बनते काम भी बिगाड़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप अनुमान लगाने से बचें। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप तब तक सवाल करें जब तक आपको सारी बात समझ में ना आ जाए।
हर काम में अपना पूरा जोर लगाना हमेशा अच्छा होता है। अब चाहे वो आपकी पढ़ाई हो या फिर आपकी नौकरी। अगर आप हमेशा अपने काम को अच्छे से अच्छे तरीके से करने की कोशिश करेंगे तो हारने पर भी आप ख़ुद को दोष नहीं देंगे। लेकिन अगर आपने पूरी कोशिश नहीं की तो हार जाने पर आप हमेशा अपने आप को दोष देते रहेंगे कि अगर आपने उस समय मेहनत की होती तो शायद आप आज सफल होते।
ऐसा हो सकता है कि आप किसी दिन अपना काम बहुत अच्छे से कर ले जाएं जबकि कभी कभी आप अपने काम में ठीक से मन भी ना लगा पाएँ। शायद सुबह काम करने पर आप अच्छा महसूस करें और रात में काम करने पर आप थका हुआ महसूस करें। लेकिन हालात चाहे जो भी हों आप हमेशा अपना पूरा जोर लगाते रहिए ।
क्या हो अगर आपका काम करने का मन बिल्कुल ना करता हो ? अक्सर लोगों को रोज सुबह उठने पर ये जानकर बिल्कुल खुशी नहीं होती कि आज उन्हें काम पर जाना है। ऐसे में हम क्या करें जिससे हमारा काम करने का मन करे?
अगर आप किसी बाहरी दबाव या जरूरत की वजह से काम कर रहे हैं तो आपका काम करने का मन नहीं करेगा। आज के स्कूल जाने वाले बच्चों का पढ़ाई में मन इसलिए नहीं लगता क्योंकि वे बाहरी दबाव की वजह से पढ़ते हैं। वे इसलिए पढ़ते हैं ताकि उनके मार्क्स अच्छे आएँ।
इन्हीं चीज़ों की वजह से आपका काम करने का मन नहीं करता। आप वो काम कीजिए जो आपको अच्छा लगता हो। अगर आप अपने काम से प्यार करेंगे तो आपको अपना काम बोझ नहीं लगेगा। इस तरह से काम करने पर आपका काम में मन भी लगेगा और आप हमेशा ही उसे अच्छे से कर पाएंगे।
आप दिए गए तीन रास्तों को अपना कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर सकते हैं।
> अपने सपनों को पहचानिए सबसे पहले आप यह देखिए कि – आपके सपने क्या हैं और क्यों आपने उन सपनों को अब तक पूरा नहीं किया। आप अपनी जिन्दगी को अपने सपनों की जिन्दगी के हिसाब से जीना शुरू कीजिए और अगर आपके रास्ते में कोई ऐसी बात आती है जो आपको बचपन में सिखाई गई थी तो आप उसको छोड़कर आगे बढ़ना सीखिए।
आप उन चीज़ों को पहचानिए जो आपके दुख का कारण हैं और फिर उनसे धीरे धीरे छुटकारा पाइए।
> दूसरों को माफ करना सीखिए आपके दुख का कारण यह भी हो सकता है कि आपका किसी से झगड़ा हुआ हो या फिर किसी ने आपको बुरा भला कहा हो। आप उसकी कही हुई बातों को अपने साथ लिए घूमते रहते हैं जिससे आपका दुख हमेशा बढ़ता रहता है।
आप दूसरों को माफ करना सीखिए। अगर आपको किसी बात का पछतावा हो रहा है तो आप खुद को माफ करना सीखिए। आप जब तक लोगों को माफ करना नहीं सीखेंगे तब तक आप पुरानी यादों में घूमते रहेंगे और आपके अंदर नेगेटिविटि आने लगेगी।
> हर पल का मजा लेना सीखिए आप हर दिन को कुछ इस तरह से बिताइए जैसे वो आपका आखिरी दिन हो। ऐसा करने से आप बस उन चीज़ों पर ध्यान देंगे जिनसे आपको खुशी मिलेगी और आप दुख देने वाली चीजों को बगल में रखना सीख जाएंगे। कोई भी अपनी जिन्दगी का आखिरी दिन तनाव में जी कर नहीं बिताना चाहेगा। हरदिन को आखिरी दिन समझने से आपको जिन्दगी जीने का तरीका आ जाएगा।
हमारे बचपन से ही हम अपनी जिन्दगी को दूसरों के हिसाब से जीते आ रहे हैं। हमारी खुशी और आजादी से ज्यादा जरूरी है “लोग क्या सोचेंगे”। अगर आप वाकई अपनी जिन्दगी सुकून से जीना चाहते हैं तो आपको समाज की सीमाओं को तोड़ना होगा जिससे आप अपनी असली ताकत को पहचान सकें और अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जी सकें ।
अपनी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कीजिए।
बहुत सारे लोग ना जाने कितनी बेड़ियों से बंधे होते हैं। अब वक्त आ गया है कि आप उनमें से एक को तोड़ दें। अगर आप से कहा गया है कि आपको रात में कहीं बाहर नहीं जाना है तो आप एक दिन बस ऐसे ही बाहर चले जाइए। आप अपने रास्ते की रुकावटों को तोड़कर अपने आप को आजाद कीजिए।
तो आपको आज का यह The Four Agreements Book Summary कैसा लगा ?
अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट में जरूर बताये।
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आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.
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